शिमला: हिमाचल में आज सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक हुई. बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा की गई. इस दौरान हिमाचल प्रदेशवासियों को मिलने वाली 125 यूनिट फ्री बिजली पर कैबिनेट ने एक बड़ा फैसला लिया है. इनकम टैक्स भरने वालों को अब 125 फ्री यूनिट बिजली नहीं मिलेगी. इनमें सीएम, डिप्टी सीएम, पूर्व सीएम, विधायक, सीपीएस, सभी बोर्डों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, ओएसडी, एडवाइजर समेत सभी बड़े अधिकारी शामिल रहेंगे. गरीब परिवारों को पहले की तरह 125 यूनिट फ्री बिजली मिलती रहेगी.
सुक्खू सरकार का कहना है कि जयराम सरकार के समय घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट बिजली देने का फैसला लिया गया था, लेकिन इसका बोझ अब प्रदेश की वर्तमान सरकार पर पड़ा है. बिजली बोर्ड घाटे की स्थिति में है. कर्मचारियों को वेतन देने में मुश्किल आ रही है. हालांकि अभी तक सरकार ये नहीं बता पाई कि निशुल्क बिजली कटौती से प्रदेश सरकार का कितना पैसा बचेगा.
राज्य में पूर्व की जयराम सरकार ने पहले ही 125 यूनिट निशुल्क बिजली देने का फैसला लिया था. इस फैसले से 14 लाख से अधिक उपभोक्ता जीरो बिल की श्रेणी में आ गए थे. उपभोक्ताओं को 125 यूनिट निशुल्क बिजली देने के लिए सरकार पर प्रति माह 50 करोड़ रुपए से अधिक का बोझ पड़ रहा है. राज्य में कुल 22 लाख से अधिक घरेलू बिजली उपभोक्ता हैं. राज्य सरकार निशुल्क बिजली की एवज में हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को अनुदान देती है.
300 यूनिट बिजली के लिए 900 करोड़ से अधिक करना होगा खर्च
विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने प्रदेश की जनता को दस गारंटियां दी थी. सत्ता में आने पर इन गारंटियों को पूरा करने का दावा और वादा किया गया था. दस गारंटियों में से एक गारंटी 300 यूनिट निशुल्क बिजली से जुड़ी थी, लेकिन डेढ़ साल बाद 300 यूनिट निशुल्क बिजली वाली गारंटी का इंतजार बरकरार है. हिमाचल बेशक उर्जा राज्य है, लेकिन प्रदेश की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि मुफ्त की रेवड़ियां बांटी जा सकें. बिजली बोर्ड खुद आर्थिक संकट से घिरा हुआ है. निशुल्क बिजली के लिए उसे सरकार से अनुदान चाहिए.
300 यूनिट बिजली के लिए होगा इतना खर्च
भले अन्य राज्यों के मुकाबले हिमाचल में उर्जा संकट अपेक्षाकृत कम है. कारण ये है कि हिमाचल में जलविद्युत परियोजनाएं पर्याप्त बिजली पैदा करती हैं. गर्मियों में हिमाचल सरप्लस बिजली पड़ोसी राज्यों को बैंकिंग सिस्टम पर प्रदान करता है. वहीं, सर्दियों में बिजली का उत्पादन कम होने पर हिमाचल को अन्य राज्यों से बिजली लेनी पड़ती है. अब सुखविंदर सिंह सरकार को अपने वादे के अनुसार उपभोक्ताओं को 300 यूनिट निशुल्क बिजली देती है तो बिजली बोर्ड की सब्सिडी और अन्य खर्चों के लिए राज्य सरकार को सालाना अनुमानित 900 करोड़ रुपए खर्च करना होगा. अभी राज्य सरकार की आर्थिक हालत ये है कि खजाना इतना बड़ा बोझ उठाने के काबिल नहीं है.
सोलर पावर से पूरी हो सकती है गारंटी
सीएम सुखविंदर सिंह के अनुसार हिमाचल को सोलर पावर सेक्टर पर अधिक ध्यान देना होगा. सीएम ये कह चुके हैं कि हिमाचल यदि 250 मेगावाट सोलर पावर उत्पादन करने में सफल हो जाता है तो 300 यूनिट बिजली का वादा पूरा करने में आसानी होगी. राज्य सरकार का कहना है कि सर्दियों में हिमाचल को पड़ोसी राज्यों से बैंकिंग के आधार पर बिजली लेनी पड़ती है. यदि हिमाचल के उत्पादन में ये 250 मेगावाट अतिरिक्त जुड़ जाए तो बिजली खरीदने की जरूरत खत्म हो जाएगी. इस तरह जो पैसा बचेगा, उससे 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा आसानी से पूरा हो सकता है. सोलर पावर प्रोडक्शन के लिए खास तामझाम की जरूरत नहीं है. पर्याप्त जमीन हो तो सोलर पावर प्लांट स्थापित हो सकता है. यही नहीं, सोलर पावर प्लांट से सर्दियों में भी उत्पादन निर्बाध जारी रह सकता है. सर्दियों में नदियों में पानी कम होने से बिजली उत्पादन गिर जाता है. उस कमी को सोलर पावर से पूरा किया जा सकता है. सीएम सुखविंदर सिंह के अनुसार राज्य सरकार ने वर्ष 2023-2024 में 500 मेगावाट क्षमता की सौर ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने का लक्ष्य तय किया था.
- हिमाचल प्रदेश में 27436 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है
- इसमें से राज्य ने 11,519 मेगावाट का दोहन किया है.
- कुल दोहन में से 7.6 फीसदी हिमाचल सरकार के व शेष केंद्र सरकार के नियंत्रण में है.
- हिमाचल में औसतन 2400 मिलियन यूनिट बिजली की खपत घरेलू उपभोक्ता करते हैं.
- करीब 6000 मिलियन यूनिट बिजली उद्योग जगत की खपत है.
- हिमाचल हर साल 3000 मिलियन यूनिट के करीब बिजली देश के अन्य राज्यों को या तो बैंकिंग के आधार पर देता है अथवा बिक्री करता है.
विद्युत मामलों के जानकार हीरालाल वर्मा का कहना है कि राज्य सरकार को हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की तरफ ध्यान देना होगा. बोर्ड आर्थिक संकट में है. फंक्शनल पद खाली पड़े हैं. निशुल्क बिजली जैसी योजनाओं से आर्थिक बोझ बढ़ता है. इस समय हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड 1800 करोड़ रुपए से अधिक के घाटे में चल रहा है. ये स्थिति चिंताजनक है.