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एक्सपर्ट से जानिए छत्तीसगढ़ में बांस की खेती से कैसे करें अच्छी कमाई ? - bamboo farming in surguja

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Sep 18, 2024, 5:31 PM IST

अगर आप भी छत्तीसगढ़ में कृषि से लाभ कमाना चाहते हैं तो बांस की खेती आपके लिए बेहतर विकल्प है. खेती और उद्यानिकी के जानकार अजय सिंह कुशवाहा इस बात को कह रहे हैं. यहां बांस की खेती से आप कम समय में बेहतर कमाई कर सकते हैं.

bamboo farming in surguja
छत्तीसगढ़ में बांस की खेती (ETV Bharat)
बांस की खेती से कैसे होगा इनकम ? (ETV Bharat)

सरगुजा: छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है. मूल रूप से यहां धान और मक्के की फसल उगाई जाती है. बीते कुछ सालों से यहां किसान नवाचार कर रहे हैं. धान और मक्के के अलावा भी वो अलग तरह की फसल ले रहे हैं, जिससे किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा भी हो रहा है. इस तरह बांस की खेती कर भी किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. बांस का इस्तेमाल पेपर बनाने में भी किया जाता है, उत्तर छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में पेपर मिल है, जो पेपर बनाने के लिए बांस की खरीदी करती है.

अच्छी कीमत में बिकता है बांस: अगर बांस की खेती उत्तर छत्तीसगढ़ या गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में की जाए तो पेपर मिल अमलाई की दूरी कम पड़ती है. यहां तक बांस का ट्रांसपोर्टेशन भी कम पड़ता है. वहां के वेन्डर से सम्पर्क कर किसान अपने बांस को अच्छी कीमत पर बेच सकते हैं. इसके साथ ही हमेशा के लिए एक फिक्स इनकम का साधन बना सकते हैं, लेकिन इसके लिए पहले आपको ये जान लेना जरूरी है कि बांस की खेती कैसे की जाती है ?

लाखों का हो सकता है मुनाफा: बांस की खेती के बारे में अधिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने उद्यान विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अजय सिंह कुशवाहा से बात की है. उन्होंने बताया कि, "बांस की खेती काफी लाभदायक खेती है, क्योंकि आप देखेंगे कि सब्जी उत्पादक किसान हर पौधे को सपोर्ट देने में बांस की डंडी का इस्तेमाल करते हैं. वो एक डंडी 50 रुपए में खरीदते हैं. इसके साथ ही बंसोर लोग इससे टोकनी, फर्नीचर बनाते हैं. बांस एक एकड़ में 3 साल में ही 2 लाख का लाभ देती है. इसके बाद जैसे-जैसे साल बीतता हैं लाभ बढ़ता जाता है. 5 से 6 साल में एक एकड़ से किसान करीब 6 लाख रुपये कमा लेते हैं."

"बांस की टिशू कल्चर की वेरायटी जैसे बालकोवा, तिल्दा वेरायटी है. इनकी नर्सरी लगाई जाती है. यही वेरायटी उद्यान विभाग किसानों को बांस मिशन के तहत नि:शुल्क उपलब्ध कराता है. एक एकड़ में करीब 400 पौधे लगाए जा सकते हैं. करीब 5 फीट का डिस्टेंस रखना होता है. बहुत सामान्य खाद और बेहद कम पानी के उपयोग से यह तैयार हो जाता है. बांस में दीमक की समस्या आती है तो दीमक के लिए ही दवाईयों का इस्तेमाल किया जाता है.": अजय सिंह कुशवाहा , डिप्टी डायरेक्टर, उद्यान विभाग

उद्यानिकी विभाग के जानकार ने बांस के टीसू कल्चर को लेकर भी कई और जानकारियां दी है. इसकी सहायता से कितनी जल्दी किसानों को फायदा होगा इस बारे में भी बताया है.

टिशू कल्चर की वेरायटी सीधे बढ़ती है. 2-3 साल में ही किसान को लाभ मिलने लगता है, लेकिन कॉटन और देशी बांस के बीज से नर्सरी तैयार करने के बाद उसके पौधे को लगाया जाता है.": अजय सिंह कुशवाहा , डिप्टी डायरेक्टर, उद्यान विभाग

वर्तमान में बांस मिशन के तहत शासन की तरफ से बांस की खेती को बढ़ावा देने का काम चल रहा है. सरगुजा में भी पिछले साल से ये स्कीम चालू हुई है, जिसमे हम किसानों को टिशू कल्चर की वेरायटी के बांस के प्लांट उपलब्ध कराते हैं. ये प्लांट शासन की तरफ से मुफ्त में दिए जाते हैं.

नोट: खबर में प्रकाशित बातें उद्यान विभाग के डिप्टी डायरेक्टर की ओर से कही गई बातें है. ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता.

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अच्छी कीमत में बिकता है बांस: अगर बांस की खेती उत्तर छत्तीसगढ़ या गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में की जाए तो पेपर मिल अमलाई की दूरी कम पड़ती है. यहां तक बांस का ट्रांसपोर्टेशन भी कम पड़ता है. वहां के वेन्डर से सम्पर्क कर किसान अपने बांस को अच्छी कीमत पर बेच सकते हैं. इसके साथ ही हमेशा के लिए एक फिक्स इनकम का साधन बना सकते हैं, लेकिन इसके लिए पहले आपको ये जान लेना जरूरी है कि बांस की खेती कैसे की जाती है ?

लाखों का हो सकता है मुनाफा: बांस की खेती के बारे में अधिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने उद्यान विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अजय सिंह कुशवाहा से बात की है. उन्होंने बताया कि, "बांस की खेती काफी लाभदायक खेती है, क्योंकि आप देखेंगे कि सब्जी उत्पादक किसान हर पौधे को सपोर्ट देने में बांस की डंडी का इस्तेमाल करते हैं. वो एक डंडी 50 रुपए में खरीदते हैं. इसके साथ ही बंसोर लोग इससे टोकनी, फर्नीचर बनाते हैं. बांस एक एकड़ में 3 साल में ही 2 लाख का लाभ देती है. इसके बाद जैसे-जैसे साल बीतता हैं लाभ बढ़ता जाता है. 5 से 6 साल में एक एकड़ से किसान करीब 6 लाख रुपये कमा लेते हैं."

"बांस की टिशू कल्चर की वेरायटी जैसे बालकोवा, तिल्दा वेरायटी है. इनकी नर्सरी लगाई जाती है. यही वेरायटी उद्यान विभाग किसानों को बांस मिशन के तहत नि:शुल्क उपलब्ध कराता है. एक एकड़ में करीब 400 पौधे लगाए जा सकते हैं. करीब 5 फीट का डिस्टेंस रखना होता है. बहुत सामान्य खाद और बेहद कम पानी के उपयोग से यह तैयार हो जाता है. बांस में दीमक की समस्या आती है तो दीमक के लिए ही दवाईयों का इस्तेमाल किया जाता है.": अजय सिंह कुशवाहा , डिप्टी डायरेक्टर, उद्यान विभाग

उद्यानिकी विभाग के जानकार ने बांस के टीसू कल्चर को लेकर भी कई और जानकारियां दी है. इसकी सहायता से कितनी जल्दी किसानों को फायदा होगा इस बारे में भी बताया है.

टिशू कल्चर की वेरायटी सीधे बढ़ती है. 2-3 साल में ही किसान को लाभ मिलने लगता है, लेकिन कॉटन और देशी बांस के बीज से नर्सरी तैयार करने के बाद उसके पौधे को लगाया जाता है.": अजय सिंह कुशवाहा , डिप्टी डायरेक्टर, उद्यान विभाग

वर्तमान में बांस मिशन के तहत शासन की तरफ से बांस की खेती को बढ़ावा देने का काम चल रहा है. सरगुजा में भी पिछले साल से ये स्कीम चालू हुई है, जिसमे हम किसानों को टिशू कल्चर की वेरायटी के बांस के प्लांट उपलब्ध कराते हैं. ये प्लांट शासन की तरफ से मुफ्त में दिए जाते हैं.

नोट: खबर में प्रकाशित बातें उद्यान विभाग के डिप्टी डायरेक्टर की ओर से कही गई बातें है. ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता.

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