इंदौर। इंदौर आईआईटी के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर वेंकटेश चेल्वम व जीव विज्ञान एवं जैव चिकित्सा अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर अविनाश सोनवाणे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने दवा खोज कार्यक्रम के हिस्से के रूप में टीबी के इलाज के लिए डिज़ाइन किए गए 150 से अधिक नए जीवाणुरोधी कम्पाउंड बनाए हैं. ये कम्पाउंड पाइरिडीन रिंग फ्यूज्ड हेट्रोसाइक्लिक फैमिली से संबंधित हैं, जिसमें पाइरोलोपाइरीडीन इंडोलोपाइरीडीन और अन्य शामिल हैं.
टीबी से मौतों का ग्राफ अभी भी चिंताजनक
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाली टीबी दुनियाभर में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है, जो हर साल लगभग 1.5 मिलियन लोगों की जान लेती है. मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट (एमडीआर) और एक्सट्रीमली ड्रग-रेसिस्टेंट (एक्सडीआर) टीबी स्ट्रेन के उभरने के कारण स्थिति और खराब हो रही है, जो अधिकांश मौजूदा एंटी-टीबी दवाओं को अप्रभावी बना देती है. नया कंपाउंड प्रोटीन से जुड़कर बैक्टीरिया को खत्म करते हैं. टीबी के इलाज में एक बड़ी चुनौती यह है कि बैक्टीरिया बायोफिल्म्स नामक एक सुरक्षात्मक परत बना सकते हैं, जो दवा के प्रति सहनशीलता को बढ़ाता है और बीमारी का इलाज करना कठिन बनाता है.
टीबी के इलाज के लिए प्रभावी दवा की जरूरत
एमडीआर-टीबी का प्रभावी ढंग से इलाज करने वाली नई दवाओं की बहुत आवश्यकता है. आईआईटी इंदौर में विकसित तकनीक बैक्टीरिया की सुरक्षात्मक परत में एक प्रमुख घटक-माइकोलिक एसिड (एमए) को लक्षित करके इस आवश्यकता को पूरा करती है. एमए बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति की समग्रता और जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण है. इस टीम ने पॉलीकेटाइड सिंथेटेस 13 (पीकेएस 13) नामक एक एंजाइम पर ध्यान केंद्रित किया, जो एमए संश्लेषण के अंतिम चरण पर है शोधकर्ताओं द्वारा विकसित नए कम्पाउंड पीकेएस 13 प्रोटीन से जुड़कर एमए के निर्माण को रोकते हैं, जिससे टीबी प्रेरित करने वाले बैक्टीरिया की मृत्यु हो जाती है.
जीवाणु परीक्षण में मिले अच्छे परिणाम
कम्पाउंड का परीक्षण जीवाणु संवर्धन में किया गया है और उन्होंने आशाजनक परिणाम दिखाए हैं, वे मैक्रोफेज जैसी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाए बिना कम सांद्रता में प्रभावी थे इन कम्पाउंड ने रोगियों से अलग किए गए टीबी बैक्टीरिया को भी मार दिया, जिसमें आइसोनियाज़िड जैसी मानक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी उपभेद भी शामिल हैं. वहीं इनके आशाजनक परिणाम दवा विकास की लंबी और महंगी प्रक्रिया से बचने के प्रति आशा जगा रहे हैं.
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छोटे जानवरों पर किया जा रहा परीक्षण
वर्तमान में इन एंटी-टीबी कम्पाउंड में से सबसे शक्तिशाली का चूहों जैसे छोटे जीवों पर परीक्षण किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य एमडीआर और एक्सडीआर-टीबी के लिए उपचार में सुधार करना है. इस शोध का अंतिम लक्ष्य टीबी और दवा प्रतिरोधी टीबी के इलाज के लिए नए उपकरण प्रदान करना है, जो विकासशील और विकसित दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है. इन कम्पाउंड को विकसित करने के लिए प्रयुक्त विधि को विभिन्न रोगों के उपचार हेतु भारत और अमेरिका दोनों में पेटेंट प्रदान किया गया है.