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उत्तराखंड में सौर ऊर्जा और जियोथर्मल एनर्जी की हैं बड़ी संभावनाएं, जानें नवीकरणीय क्यों है जरूरी - Akshay Urja Diwas 2024 - AKSHAY URJA DIWAS 2024

Akshay Urja Diwas 2024 मौजूदा समय में इलेक्ट्रिक के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा यानी रिन्यूएबल एनर्जी पर जोर दिया जा रहा है, ताकि आने वाले समय में जीवाश्म ईंधन से होने वाले नुकसान को ना के बराबर किया जा सके. अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 20 अगस्त को भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस मनाया जाता है. इसी बीच उत्तराखंड में भी रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) पर विशेष जोर दिया जा रहा है.

Akshay Urja Diwas 2024
भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 20, 2024, 5:15 PM IST

उत्तराखंड में सौर ऊर्जा और जियोथर्मल एनर्जी की हैं बड़ी संभावनाएं (VIDEO-ETV Bharat)

देहरादून: देश-दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिसकी मुख्य वजह जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक इस्तेमाल करना है. उत्तराखंड सरकार भी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) पर विशेष जोर दे रही है. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश में जियोथर्मल एनर्जी एक बेहतर रिन्यूएबल एनर्जी साबित हो सकती है. यही वजह है कि राज्य सरकार रिन्यूएबल एनर्जी के रूप में जियोथर्मल एनर्जी के उत्पादन पर फोकस कर रही है. वर्तमान समय में उत्तराखंड सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने और सौर ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रही है.

2004 में पहली बार मनाया गया था अक्षय ऊर्जा दिवस: बता दें कि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ((Ministry of New and Renewable Energy-MNRE) की ओर से हर साल भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जन्मदिन (20अगस्त) पर नवीकरणीय ऊर्जा के महत्व के प्रति जनता को जागरूक करने और अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए अक्षय ऊर्जा दिवस (Akshay Urja Diwas ) मनाया जाता है. भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस पहली बार 2004 में नई दिल्ली में मनाया गया था. साथ ही एक स्मारक डाक टिकट भी जारी की गई थी.

साल 2070 तक भारत को कार्बन मुक्त करने का लक्ष्य: देश-दुनिया में जिस तरह से आधुनिक तकनीकी का विकास हो रहा है. ऐसे में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम किए जाने पर जोर दिया जा रहा है. कई देशों ने कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने का निर्णय लिया है. इसी क्रम में भारत सरकार ने साल 2070 तक देश को कार्बन मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से प्रमोट किया जा रहा है, इसके लिए भारी भरकम सब्सिडी भी दी जा रही है, ताकि लोग जीवाश्म ईंधन की बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करें.

मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना से जुड़ रहे लोग: उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना को 2020 में शुरू किया था, लेकिन योजना की गाइडलाइन में कुछ कमियां होने के चलते सही ढंग से लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाया. ऐसे में इस योजना के तहत 2020 से 2023 तक 148 लोगों ने ही प्लांट लगाए, जिसकी कुल क्षमता 3.5 मेगावाट है. जिसके चलते फिर 2023 में मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना की गाइडलाइन को ठीक किया गया, जिससे मात्र एक साल में 750 लोगों को 133 मेगावाट क्षमता के एलोटमेट ऑर्डर हो चुके हैं. साथ ही तमाम लोगों ने आवेदन किए हैं, जिसका परीक्षण किया जा रहा है.

उत्तराखंड में सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए किए ये प्रावधान

  • प्रदेश में सौर ऊर्जा को तेजी से बढ़ावा देने के लिए साल 2026 तक राज्य के सभी सरकारी भवनों पर सोलर पावर प्लांट स्थापित करने के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.
  • रूफटॉप सोलर प्लांट को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से संयुक्त रूप से 70 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही है.
  • पीएम सूर्यघर योजना के तहत रूफटॉप सोलर पावर प्लांट की स्थापना के लिए प्रदेश के 734 लाभार्थियों को 3.72 करोड़ रुपए का अनुदान दिया गया है.
  • घरेलू और गैर घरेलू उपभोक्ताओं के लिए सोलर वाटर हीटर संयंत्र की स्थापना पर 30 से 50 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाएगा.
  • मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत सोलर पावर प्लांट की स्थापना के लिए 750 लोगों को 133 मेगावाट क्षमता के सोलर पावर प्लांट दिये गये हैं.
  • साल 2026 तक 250 मेगावाट की क्षमता वाले सोलर प्लांट के स्थापना का लक्ष्य रखा गया है.

उत्तराखंड में संंचालित मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना: ऊर्जा सचिव मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत 20 किलोवाट और 25 किलोवाट तक के प्रोजेक्ट लगाने का प्रावधान किया गया था, जिसमें लोग अपनी रुचि नहीं दिखा रहे थे, जिससे सौर ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल को लेकर मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना की गाइडलाइन में संशोधन किया गया, जिसके तहत 200 किलोवाट तक के प्रोजेक्ट को इस योजना से लाभ मिल सकता है, जिसका नतीजा ये है कि प्रदेश में कुछ सोलर विलेज भी बने हैं, जहां सोलर पैनल के नीचे लोग खेती करते हैं.

सर्दियों के मौसम में नदियों का गिरता है जलस्तर: मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि जियोथर्मल एनर्जी के क्षेत्र में जाने के लिए कई महत्वपूर्ण वजह हैं, जिसके तहत विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में बसे लोड नाम का एक शब्द होता है, जिसका मतलब है कि हर समय बिजली का उत्पादन हो, लेकिन प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सर्दियों के मौसम में नदियों का जलस्तर गिर जाता है, जिसके चलते हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का विद्युत उत्पादन भी घट जाता है. इसी तरह सोलर एनर्जी में दिन के समय विद्युत उत्पादन होता है, लेकिन रात को विद्युत उत्पादन नहीं हो पता है. ऐसे में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और सोलर एनर्जी में सीजनल और डेली वेरिएशन रहता है. यही वजह है कि कोयला और गैस बेस्ड पावर प्लांट्स को लगाया जाता है, ताकि बेस लोड को पूरा किया जा सके, लेकिन इससे कार्बन का उत्सर्जन काफी अधिक होता है.

जियोथर्मल एनर्जी बिल्कुल क्लीन एनर्जी: उत्तराखंड में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग के जरिए विद्युत का उत्पादन किया जाए, क्योंकि इससे पर्यावरण को कोई भी क्षति नहीं पहुंचती है, क्योंकि जियोथर्मल एनर्जी बिल्कुल क्लीन एनर्जी है. दरअसल कोयले को जलाकर कर स्टीम बनाया जाता है और इस स्टीम के जरिए टरबाइन को घुमाया जाता है, तब जाकर बिजली का उत्पादन होता है, लेकिन स्प्रिंग में जमीन के अंदर से ही स्टीम आ रहा है, जो सीधे टरबाइन को घुमाने का काम करेगा, जिससे विद्युत उत्पादन किया जा सकेगा. लिहाजा इससे कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता है और यह क्लीन और ग्रीन एनर्जी में आता है.

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2004 में पहली बार मनाया गया था अक्षय ऊर्जा दिवस: बता दें कि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ((Ministry of New and Renewable Energy-MNRE) की ओर से हर साल भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जन्मदिन (20अगस्त) पर नवीकरणीय ऊर्जा के महत्व के प्रति जनता को जागरूक करने और अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए अक्षय ऊर्जा दिवस (Akshay Urja Diwas ) मनाया जाता है. भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस पहली बार 2004 में नई दिल्ली में मनाया गया था. साथ ही एक स्मारक डाक टिकट भी जारी की गई थी.

साल 2070 तक भारत को कार्बन मुक्त करने का लक्ष्य: देश-दुनिया में जिस तरह से आधुनिक तकनीकी का विकास हो रहा है. ऐसे में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम किए जाने पर जोर दिया जा रहा है. कई देशों ने कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने का निर्णय लिया है. इसी क्रम में भारत सरकार ने साल 2070 तक देश को कार्बन मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से प्रमोट किया जा रहा है, इसके लिए भारी भरकम सब्सिडी भी दी जा रही है, ताकि लोग जीवाश्म ईंधन की बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करें.

मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना से जुड़ रहे लोग: उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना को 2020 में शुरू किया था, लेकिन योजना की गाइडलाइन में कुछ कमियां होने के चलते सही ढंग से लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाया. ऐसे में इस योजना के तहत 2020 से 2023 तक 148 लोगों ने ही प्लांट लगाए, जिसकी कुल क्षमता 3.5 मेगावाट है. जिसके चलते फिर 2023 में मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना की गाइडलाइन को ठीक किया गया, जिससे मात्र एक साल में 750 लोगों को 133 मेगावाट क्षमता के एलोटमेट ऑर्डर हो चुके हैं. साथ ही तमाम लोगों ने आवेदन किए हैं, जिसका परीक्षण किया जा रहा है.

उत्तराखंड में सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए किए ये प्रावधान

  • प्रदेश में सौर ऊर्जा को तेजी से बढ़ावा देने के लिए साल 2026 तक राज्य के सभी सरकारी भवनों पर सोलर पावर प्लांट स्थापित करने के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.
  • रूफटॉप सोलर प्लांट को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से संयुक्त रूप से 70 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही है.
  • पीएम सूर्यघर योजना के तहत रूफटॉप सोलर पावर प्लांट की स्थापना के लिए प्रदेश के 734 लाभार्थियों को 3.72 करोड़ रुपए का अनुदान दिया गया है.
  • घरेलू और गैर घरेलू उपभोक्ताओं के लिए सोलर वाटर हीटर संयंत्र की स्थापना पर 30 से 50 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाएगा.
  • मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत सोलर पावर प्लांट की स्थापना के लिए 750 लोगों को 133 मेगावाट क्षमता के सोलर पावर प्लांट दिये गये हैं.
  • साल 2026 तक 250 मेगावाट की क्षमता वाले सोलर प्लांट के स्थापना का लक्ष्य रखा गया है.

उत्तराखंड में संंचालित मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना: ऊर्जा सचिव मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत 20 किलोवाट और 25 किलोवाट तक के प्रोजेक्ट लगाने का प्रावधान किया गया था, जिसमें लोग अपनी रुचि नहीं दिखा रहे थे, जिससे सौर ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल को लेकर मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना की गाइडलाइन में संशोधन किया गया, जिसके तहत 200 किलोवाट तक के प्रोजेक्ट को इस योजना से लाभ मिल सकता है, जिसका नतीजा ये है कि प्रदेश में कुछ सोलर विलेज भी बने हैं, जहां सोलर पैनल के नीचे लोग खेती करते हैं.

सर्दियों के मौसम में नदियों का गिरता है जलस्तर: मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि जियोथर्मल एनर्जी के क्षेत्र में जाने के लिए कई महत्वपूर्ण वजह हैं, जिसके तहत विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में बसे लोड नाम का एक शब्द होता है, जिसका मतलब है कि हर समय बिजली का उत्पादन हो, लेकिन प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सर्दियों के मौसम में नदियों का जलस्तर गिर जाता है, जिसके चलते हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का विद्युत उत्पादन भी घट जाता है. इसी तरह सोलर एनर्जी में दिन के समय विद्युत उत्पादन होता है, लेकिन रात को विद्युत उत्पादन नहीं हो पता है. ऐसे में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और सोलर एनर्जी में सीजनल और डेली वेरिएशन रहता है. यही वजह है कि कोयला और गैस बेस्ड पावर प्लांट्स को लगाया जाता है, ताकि बेस लोड को पूरा किया जा सके, लेकिन इससे कार्बन का उत्सर्जन काफी अधिक होता है.

जियोथर्मल एनर्जी बिल्कुल क्लीन एनर्जी: उत्तराखंड में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग के जरिए विद्युत का उत्पादन किया जाए, क्योंकि इससे पर्यावरण को कोई भी क्षति नहीं पहुंचती है, क्योंकि जियोथर्मल एनर्जी बिल्कुल क्लीन एनर्जी है. दरअसल कोयले को जलाकर कर स्टीम बनाया जाता है और इस स्टीम के जरिए टरबाइन को घुमाया जाता है, तब जाकर बिजली का उत्पादन होता है, लेकिन स्प्रिंग में जमीन के अंदर से ही स्टीम आ रहा है, जो सीधे टरबाइन को घुमाने का काम करेगा, जिससे विद्युत उत्पादन किया जा सकेगा. लिहाजा इससे कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता है और यह क्लीन और ग्रीन एनर्जी में आता है.

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