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2009 में 21 सीटें जीतने वाली बसपा कैसे शून्य पर आई, चुनाव दर चुनाव बदलता रहा जीत का आंकड़ा - Mayawati

UP Politics: ईटीवी भारत की इस स्टोरी में पढ़िए की किस-किस लोकसभा चुनाव में कितने सीटों पर बीएसपी ने अपने उम्मीदवार उतारे. किन-किन राज्यों में कितनी सीटें मिलीं और सबसे ज्यादा सीटें किस साल के लोकसभा चुनाव में मिलीं और कब बहुजन समाज पार्टी औंधे मुंह गिरी.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 17, 2024, 3:06 PM IST

बसपा के लोकसभा चुनाव के सफर पर संवाददाता अखिलेश्वर पाण्डेय की खास रिपोर्ट.

लखनऊ: UP Politics: साल 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ था. 1985 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे, लेकिन पार्टी का खाता नहीं खुल पाया. साल 1989 में पार्टी ने 245 सीटों पर देश भर में लोकसभा का चुनाव लड़ा और खाता खोला. इसी चुनाव में बसपा मुखिया मायावती भी पहली बार लोकसभा पहुंचीं. तब पार्टी को उत्तर प्रदेश में तीन सीटें तो पंजाब में एक सीट मिली थी.

इसके बाद लगातार बहुजन समाज पार्टी अपने उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाती गई और सीटों की संख्या भी लगातार बढ़ती गई, लेकिन साल 2014 का लोकसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी को शिखर से शून्य पर ले आया. पार्टी ने देशभर में 503 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट पार्टी को हासिल नहीं हुई. पार्टी का खाता भी नहीं खुला.

बहुजन समाज पार्टी ने साल 2014 में अकेले दम उत्तर प्रदेश समय देश भर में चुनाव लड़ा था, लेकिन अकेले लड़ने का पार्टी का यह फैसला चुनाव परिणाम आने के बाद पूरी तरह गलत साबित हो गया. बहुजन समाज पार्टी एक सीट भी जीतने में कामयाब नहीं हो पाई.

साल 1985 के बाद 2014 ऐसा साल आया जब पार्टी खाता नहीं खोल पाई, लेकिन बीच की अवधि के दौरान पार्टी अच्छा प्रदर्शन करने में भी कामयाब हुई. बहुजन समाज पार्टी ने 2014 में नतीजे पक्ष में न आने से सबक लेते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लिया.

नतीजा यह हुआ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई. अब 2024 का लोकसभा चुनाव फिर बहुजन समाज पार्टी अकेले ही लड़ रही है और वर्तमान में पार्टी की जो स्थिति है, उससे राजनीतिक जानकार यह भी कयास लगा रहे हैं कि कहीं बहुजन समाज पार्टी का हश्र 1985 और 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह ही न हो जाए. ऐसा ना हो कि पार्टी इस लोकसभा चुनाव में खाता ही न खोल पाए.

कब कितनी सीटों पर बसपा ने उतारे उम्मीदवार: नौवीं लोक सभा 1989 में बीएसपी 245 सीटों पर चुनाव लड़ी और चार सीटें जीतने में सफल हुई. 10वीं लोकसभा 1991 में 231 सीटों पर चुनाव लड़ी और तीन सीटें जीतने में सफल हुई.

11वीं लोकसभा चुनाव 1996 में 210 सीटों पर चुनाव लड़ी और 11 सीटों पर जीत हासिल की. 12 वीं लोकसभा में 1998 में 251 सीटों पर चुनाव लड़ी और पांच सीटें जीतने में कामयाब हुई. 13 वीं लोकसभा 1999 में 225 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 14 जीते.

14वीं लोकसभा 2004 में 435 प्रत्याशी उतारे और 19 प्रत्याशी जीते. 15 वीं लोकसभा 2009 में 500 उम्मीदवार मैदान में उतारे और 21 उम्मीदवार जीते. 16 वीं लोकसभा 2014 में 503 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और एक भी सीट नहीं मिली. 17 वीं लोकसभा 2019 में 383 सीटों पर प्रत्याशी उतारे तो 10 सांसद बनाने में बसपा सफल हुई.

ये रहा चुनाव में परफॉर्मेंस

9वीं लोकसभा में पंजाब में एक, उत्तर प्रदेश में तीन सीटें.

10वीं लोकसभा में मध्य प्रदेश में एक सीट, पंजाब में एक सीट और उत्तर प्रदेश में एक सीट.

11वीं लोकसभा में मध्य प्रदेश में दो, पंजाब में तीन और उत्तर प्रदेश में छह सीटें.

12वीं लोकसभा में हरियाणा में एक, उत्तर प्रदेश में चार.

13वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 14.

14 वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 19.

15वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 20, मध्य प्रदेश में एक.

16 वीं लोकसभा में खाता ही नहीं खुला.

17 वीं लोकसभा सीट में उत्तर प्रदेश में 10 सीटें.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन का कहना है कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की स्थिति इस दौर में सही तो नहीं कहीं जा सकती. जब इस समय गठबंधन का दौर चल रहा है तो मायावती अकेले दम चुनाव मैदान में उतरी हैं, जबकि साल 2022 के विधानसभा चुनाव अकेले लड़कर खामियाजा भी भुगत चुकी हैं.

403 सीटों में सिर्फ एक सीट ही पार्टी जीत पाई थी. अब लोकसभा चुनाव में जहां सपा कांग्रेस का आपसी गठबंधन है जो काफी मजबूत है और भारतीय जनता पार्टी एनडीए गठबंधन भी काफी स्ट्रॉन्ग है.

ऐसे में अकेले चुनाव लड़ने का बसपा का फैसला कितना सही साबित होगा यह तो चार जून को ही पता चलेगा, लेकिन अभी पार्टी की स्थिति सही नहीं है. हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने जिस तरह से इस बार लोकसभा चुनाव में अब तक कैंडिडेट उतरे हैं उससे यह भी कहा जा सकता है कि नतीजे कुछ भी हो सकते हैं.

ये भी पढ़ेंः पहले चरण का प्रचार थमने से चंद घंटे पहले यूपी में प्रियंका गांधी का पहला रोड शो, सहारनपुर में मांगे वोट

बसपा के लोकसभा चुनाव के सफर पर संवाददाता अखिलेश्वर पाण्डेय की खास रिपोर्ट.

लखनऊ: UP Politics: साल 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ था. 1985 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे, लेकिन पार्टी का खाता नहीं खुल पाया. साल 1989 में पार्टी ने 245 सीटों पर देश भर में लोकसभा का चुनाव लड़ा और खाता खोला. इसी चुनाव में बसपा मुखिया मायावती भी पहली बार लोकसभा पहुंचीं. तब पार्टी को उत्तर प्रदेश में तीन सीटें तो पंजाब में एक सीट मिली थी.

इसके बाद लगातार बहुजन समाज पार्टी अपने उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाती गई और सीटों की संख्या भी लगातार बढ़ती गई, लेकिन साल 2014 का लोकसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी को शिखर से शून्य पर ले आया. पार्टी ने देशभर में 503 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट पार्टी को हासिल नहीं हुई. पार्टी का खाता भी नहीं खुला.

बहुजन समाज पार्टी ने साल 2014 में अकेले दम उत्तर प्रदेश समय देश भर में चुनाव लड़ा था, लेकिन अकेले लड़ने का पार्टी का यह फैसला चुनाव परिणाम आने के बाद पूरी तरह गलत साबित हो गया. बहुजन समाज पार्टी एक सीट भी जीतने में कामयाब नहीं हो पाई.

साल 1985 के बाद 2014 ऐसा साल आया जब पार्टी खाता नहीं खोल पाई, लेकिन बीच की अवधि के दौरान पार्टी अच्छा प्रदर्शन करने में भी कामयाब हुई. बहुजन समाज पार्टी ने 2014 में नतीजे पक्ष में न आने से सबक लेते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लिया.

नतीजा यह हुआ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई. अब 2024 का लोकसभा चुनाव फिर बहुजन समाज पार्टी अकेले ही लड़ रही है और वर्तमान में पार्टी की जो स्थिति है, उससे राजनीतिक जानकार यह भी कयास लगा रहे हैं कि कहीं बहुजन समाज पार्टी का हश्र 1985 और 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह ही न हो जाए. ऐसा ना हो कि पार्टी इस लोकसभा चुनाव में खाता ही न खोल पाए.

कब कितनी सीटों पर बसपा ने उतारे उम्मीदवार: नौवीं लोक सभा 1989 में बीएसपी 245 सीटों पर चुनाव लड़ी और चार सीटें जीतने में सफल हुई. 10वीं लोकसभा 1991 में 231 सीटों पर चुनाव लड़ी और तीन सीटें जीतने में सफल हुई.

11वीं लोकसभा चुनाव 1996 में 210 सीटों पर चुनाव लड़ी और 11 सीटों पर जीत हासिल की. 12 वीं लोकसभा में 1998 में 251 सीटों पर चुनाव लड़ी और पांच सीटें जीतने में कामयाब हुई. 13 वीं लोकसभा 1999 में 225 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 14 जीते.

14वीं लोकसभा 2004 में 435 प्रत्याशी उतारे और 19 प्रत्याशी जीते. 15 वीं लोकसभा 2009 में 500 उम्मीदवार मैदान में उतारे और 21 उम्मीदवार जीते. 16 वीं लोकसभा 2014 में 503 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और एक भी सीट नहीं मिली. 17 वीं लोकसभा 2019 में 383 सीटों पर प्रत्याशी उतारे तो 10 सांसद बनाने में बसपा सफल हुई.

ये रहा चुनाव में परफॉर्मेंस

9वीं लोकसभा में पंजाब में एक, उत्तर प्रदेश में तीन सीटें.

10वीं लोकसभा में मध्य प्रदेश में एक सीट, पंजाब में एक सीट और उत्तर प्रदेश में एक सीट.

11वीं लोकसभा में मध्य प्रदेश में दो, पंजाब में तीन और उत्तर प्रदेश में छह सीटें.

12वीं लोकसभा में हरियाणा में एक, उत्तर प्रदेश में चार.

13वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 14.

14 वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 19.

15वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश में 20, मध्य प्रदेश में एक.

16 वीं लोकसभा में खाता ही नहीं खुला.

17 वीं लोकसभा सीट में उत्तर प्रदेश में 10 सीटें.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन का कहना है कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की स्थिति इस दौर में सही तो नहीं कहीं जा सकती. जब इस समय गठबंधन का दौर चल रहा है तो मायावती अकेले दम चुनाव मैदान में उतरी हैं, जबकि साल 2022 के विधानसभा चुनाव अकेले लड़कर खामियाजा भी भुगत चुकी हैं.

403 सीटों में सिर्फ एक सीट ही पार्टी जीत पाई थी. अब लोकसभा चुनाव में जहां सपा कांग्रेस का आपसी गठबंधन है जो काफी मजबूत है और भारतीय जनता पार्टी एनडीए गठबंधन भी काफी स्ट्रॉन्ग है.

ऐसे में अकेले चुनाव लड़ने का बसपा का फैसला कितना सही साबित होगा यह तो चार जून को ही पता चलेगा, लेकिन अभी पार्टी की स्थिति सही नहीं है. हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने जिस तरह से इस बार लोकसभा चुनाव में अब तक कैंडिडेट उतरे हैं उससे यह भी कहा जा सकता है कि नतीजे कुछ भी हो सकते हैं.

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