शिमला: हिमाचल में डीए और एरियर के भुगतान को लेकर सरकार के साथ चल रही लड़ाई में कर्मचारी आपस में बंटे हुए नजर आने लगे हैं. शिमला में शनिवार को अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के दो गुटों ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से अलग अलग भेंट की. इस दौरान कर्मचारियों ने आश्वासन दिया कि वे सरकार को पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हैं. उन्हें डीए की कोई जल्दबाजी नहीं है.
'डीए की कोई जल्दबाजी नहीं': सीएम के साथ हुई अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ और शिक्षक संघ की मीटिंग समाप्त होने के बाद कैबिनेट मंत्री राजेश धर्माणी का बड़ा बयान सामने आया है. धर्माणी ने कहा कि आज मुख्यमंत्री के साथ दोनों अराजपत्रित कर्मचारी महासंघों की सौहार्दपूर्ण ढंग से मुलाकात हुई हैं. कर्मचारियों की जो उचित मांगे हैं, मुख्यमंत्री ने उन्हें मानने का आश्वासन दिया है. कर्मचारियों ने भरोसा दिया है कि हम सरकार को पूरा सहयोग देने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के बयान है कि मुख्यमंत्री ने छह महीने का समय मांगा है. इसके लिए हम सरकार के साथ पूरी तरह खड़े हैं और हमें डीए की कोई जल्दबाजी नहीं हैं. लेकिन सचिवालय कर्मचारी संघ ने सरकार को बिना मांग पत्र दिए बवाल खड़ा कर दिया है. कर्मचारी नेताओं ने जिस भाषा का उपयोग किया है, वह असभ्य भाषा की श्रेणी में आता है.
राजेश धर्माणी का बड़ा बयान: कैबिनेट मंत्री राजेश धर्माणी ने कहा कि कर्मचारी सरकार का अभिन्न अंग है. सरकार सिर्फ चुने हुए प्रतिनिधियों से नहीं चलती है. मुख्य सचिव से लेकर क्लास फोर तक सरकार का हिस्सा होते हैं. कांग्रेस सरकार हमेशा से कर्मचारियों की हितैषी रही है. सुक्खू सरकार ने कर्मचारियों को पहली ही कैबिनेट की बैठक में ओपीएस का तोहफा दिया है. इसके अतिरिक्त 15 महीने के छोटे से कार्यकाल में कर्मचारियों को 7 फीसदी डीए दिया हैं. मुख्यमंत्री ने 75 साल की आयु पूरी कर चुके पेंशनरों का पूरा एरियर क्लियर करने का भी ऐलान किया है. एनपीएस के तहत हिमाचल और कर्मचारियों का केंद्र के पास 9200 करोड़ फंसा है. अच्छा होता कर्मचारी उसके लिए धरना देते, लेकिन उसकी कर्मचारियों ने कोई बात नहीं की हैं.
भाजपा ने छोड़ा कर्ज का बोझ: राजेश धर्माणी ने कहा कि पूर्व की भाजपा सरकार 85 हजार करोड़ का कर्ज और कर्मचारियों की 9 हजार करोड़ की देनदारी विरासत में छोड़ गई है. ऐसे में हिमाचल में प्रति व्यक्ति पर 1 लाख 16 हजार 180 रुपए का कर्ज चढ़ गया है. इसी तरह से जो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट वर्ष 2021-22 में 10 हजार करोड़ थी, वह अगले साल घटकर अब 3250 करोड़ की रह जाएगी. हिमाचल में पिछली साल आई प्राकृतिक आपदा 22 हजार लोग प्रभावित हुए थे. सड़कें और पेयजल लाइनें तबाह हो गई थी. बिजली की लाइनें टूट गई थी. इसकी रेस्टोरेशन के लिए केंद्र को 9 हजार करोड़ का क्लेम भेजा गया था, लेकिन हिमाचल सरकार को फूटी कौड़ी भी नहीं मिली.