शिमला: ऊपरी शिमला के रामपुर उपमंडल के नरोला गांव के निवासी डर के साये में जी रहे हैं. कारण ये है कि वहां एक पावर प्रोजेक्ट के निर्माण में ब्लास्टिंग से भारी पत्थर गिरने की आशंका है. नरोला वासियों की इस पीड़ा पर हिमाचल हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए तत्काल उपाय करने के निर्देश दिए हैं. हाईकोर्ट ने ग्रामीणों की जीवन रक्षा के लिए तत्काल आवश्यक कार्रवाई न करने पर गहरी चिंता प्रकट की है.
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि वे यह जानकर व्यथित हैं कि गांव को पत्थर गिरने की आशंका से बचाने के लिए ढलान संरक्षण का कार्य अभी भी लालफीताशाही में फंसा हुआ है. राज्य केंद्र सरकार इस पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. अदालत ने नरोला गांव के निवासियों के जीवन की रक्षा के लिए तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने के आदेश जारी किए हैं. साथ ही केंद्र व राज्य सरकार को ग्रामीणों की इस मुश्किल घड़ी में ढलान संरक्षण (रिटेनिंग वाल)का कार्य शुरू करने की अनुमति न देने का बहाना बनाने की बजाय दो हफ्ते में समस्या का समाधान करने के आदेश जारी किए.
अदालत ने मामले की पैरवी के लिए नियुक्त कोर्ट मित्र एडवोकेट अभिषेक दुल्टा को ग्रामीणों से संपर्क कर यह पता लगाने के आदेश भी दिए कि क्या कोई निवासी भवनों को हुए नुकसान की एवज में मुआवजे से वंचित तो नहीं रह गया है? अदालत ने सारी जानकारी 4 नवंबर तक अदालत के समक्ष रखने के आदेश दिए.
लुहरी प्रोजेक्ट के कारण आया संकट: रामपुर के नरोला गांव के ऊपर बड़े पत्थर गिरने के संभावित खतरे और लहरी विद्युत प्रोजेक्ट प्रबंधन की तरफ से कथित तौर पर अवैज्ञानिक ब्लास्टिंग के कारण क्षतिग्रस्त होने से जुड़ा है. मामले की सुनवाई में बताया गया था कि रामपुर के नरोला गांव में लुहरी विद्युत परियोजना फेज-एक का निर्माण किया जा रहा है. निर्माण कार्य सतलुज जल विद्युत निगम करवा रही है. आरोप लगाया गया कि अवैज्ञानिक तरीके से ब्लास्टिंग की जा रही है. हालांकि एसजेवीएन ने इसे निराधार बताया है.
हाईकोर्ट के ध्यान में लाया गया कि सतलुज जल विद्युत निगम ने गांव की सुरक्षा के लिए डंगा लगाने का निर्णय लिया है और फंड भी जारी कर दिया है. लेकिन वन विभाग से एनओसी न मिलने के कारण डंगे का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया है. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण किन्नौर ने अदालत को स्टेट्स रिपोर्ट के माध्यम से बताया है कि ठेकेदार के अवैज्ञानिक तरीके से ब्लास्टिंग करने के कारण घरों में दरारें पड़ी हैं.
जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि गांव के ऊपर ढांक में दरारें आने से गांव में जान व माल का खतरा बना हुआ है. अदालत को बताया गया कि ठेकेदार निर्माण कार्य का मलबा सतलुज नदी में फेंक रहा है. इससे पानी के साथ साथ पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है. कोर्ट ने इन आरोपों की असलियत जानने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण किन्नौर के सचिव से रिपोर्ट तलब की थी. फिलहाल, अब सुनवाई 4 नवंबर को होगी.
ये भी पढ़ें: जानिए कौन हैं न्यायमूर्ति जीएस संधवालिया, SC कॉलेजियम ने की हिमाचल HC का अगला CJ बनाने की सिफारिश