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निजी स्कूलों में साधनहीन परिवारों के बच्चों को एडमिशन का मामला, 20 फीसदी कोटे पर HC ने हिमाचल सरकार से मांगी स्टेटस रिपोर्ट - Himachal High Court

निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को 20 फीसदी एडमिशन कोटे को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है. मामले की सुनवाई 5 अगस्त को निर्धारित की गई है.

HIMACHAL HIGH COURT
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 22, 2024, 10:19 AM IST

शिमला: निजी स्कूलों में कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों को एडमिशन के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है. हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग से पूछा है कि क्या निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को 20 फीसदी एडमिशन कोटा मिल रहा है या नहीं? क्या निजी स्कूलों में ऐसे बच्चों को तय कोटे के अनुसार दाखिला दिया जा रहा है या नहीं? इसी मामले में सरकार ने अदालत को बताया है कि तय कोटे की एडमिशन का रिकॉर्ड जांचने के लिए हर जिले में स्वतंत्र कमेटियों का गठन किया गया है. यह कमेटियां इन बच्चों की ओर से खर्च की गई फीस की वापसी को लेकर संबंधित दस्तावेजों की जांच भी करेंगी.

हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने इस मामले में राज्य सरकार से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है. मामले की सुनवाई 5 अगस्त को निर्धारित की गई है. इसके अलावा अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि कमेटियों ने हर जिले से जो जानकारी जुटाई है, वो खंडपीठ के समक्ष पेश की जाए.

आरटीई के तहत कमजोर वर्ग के बच्चों को मिले सुविधा

यहां बता दें कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आरटीई यानी शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों की अक्षरशः अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए कहा है. इस मामले में अदालत ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 20 से 25 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने संबंधी अनुपालना रिपोर्ट तलब की थी. कोर्ट ने सरकार को कहा था कि वह अधिनियम के प्रावधानों की अनुपालना करने का दिखावा न करें, बल्कि इसे लागू करें.

अपने पिछले आदेशों में कोर्ट ने सभी सरकारी और गैर सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को आदेश दिए थे कि वह कमजोर वर्ग से संबंधित और वंचित समूह के छात्रों को एडमिशन के लिए 25 फीसदी आरक्षण दे. उन्हें इसकी जानकारी हिंदी और अंग्रेजी भाषा में नोटिस बोर्ड पर भी लगाने के आदेश जारी किए थे. आम जनता की जानकारी के लिए नोटिस को स्कूल परिसर के बाहर चिपकाने के साथ-साथ पंचायत घर, सार्वजनिक स्थानों, पंचायतों के वार्ड, बस स्टॉप, नगर परिषद, नगरपालिका के विभिन्न वार्ड में चिपकाने के लिए भी निर्देश जारी किए थे.

स्कूलों में प्रवेश शुरू होने से पहले ऐसे छात्रों को आवेदन करने के लिए कम से कम 30 दिन का समय देने को कहा गया था. ब्लॉक प्राइमरी एजुकेशन अफसरों को आदेश दिए गए थे कि वह संबंधित जिले के शिक्षा अधिकारियों को आरक्षण की जानकारी दे. कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि वह गठित समितियों से हिदायत एकत्रित कर यह भी पता लगाए कि क्या संबंधित स्कूलों में हाईकोर्ट के आदेश की अनुपालना की जा रही है या नहीं. इस मामले में नमिता मनिकटाला ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम की अक्षरशः अनुपालना न होने का आरोप लगाया है. निजी स्कूलों पर आरोप है कि हिमाचल के ऐसे सभी शिक्षण संस्थानों में कमजोर वर्ग के छात्रों को 25 फीसदी आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. हालांकि हाईकोर्ट ने 30 अगस्त 2016 को शिक्षा का अधिकार अधिनियम की अनुपालना सुनिश्चित करने के आदेश जारी किए थे, लेकिन राज्य सरकार ने इन आदेशों की अनुपालना सिर्फ कागजों में ही की है. अब अदालत ने राज्य सरकार से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है.

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शिमला: निजी स्कूलों में कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों को एडमिशन के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है. हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग से पूछा है कि क्या निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को 20 फीसदी एडमिशन कोटा मिल रहा है या नहीं? क्या निजी स्कूलों में ऐसे बच्चों को तय कोटे के अनुसार दाखिला दिया जा रहा है या नहीं? इसी मामले में सरकार ने अदालत को बताया है कि तय कोटे की एडमिशन का रिकॉर्ड जांचने के लिए हर जिले में स्वतंत्र कमेटियों का गठन किया गया है. यह कमेटियां इन बच्चों की ओर से खर्च की गई फीस की वापसी को लेकर संबंधित दस्तावेजों की जांच भी करेंगी.

हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने इस मामले में राज्य सरकार से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है. मामले की सुनवाई 5 अगस्त को निर्धारित की गई है. इसके अलावा अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि कमेटियों ने हर जिले से जो जानकारी जुटाई है, वो खंडपीठ के समक्ष पेश की जाए.

आरटीई के तहत कमजोर वर्ग के बच्चों को मिले सुविधा

यहां बता दें कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आरटीई यानी शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों की अक्षरशः अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए कहा है. इस मामले में अदालत ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 20 से 25 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने संबंधी अनुपालना रिपोर्ट तलब की थी. कोर्ट ने सरकार को कहा था कि वह अधिनियम के प्रावधानों की अनुपालना करने का दिखावा न करें, बल्कि इसे लागू करें.

अपने पिछले आदेशों में कोर्ट ने सभी सरकारी और गैर सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को आदेश दिए थे कि वह कमजोर वर्ग से संबंधित और वंचित समूह के छात्रों को एडमिशन के लिए 25 फीसदी आरक्षण दे. उन्हें इसकी जानकारी हिंदी और अंग्रेजी भाषा में नोटिस बोर्ड पर भी लगाने के आदेश जारी किए थे. आम जनता की जानकारी के लिए नोटिस को स्कूल परिसर के बाहर चिपकाने के साथ-साथ पंचायत घर, सार्वजनिक स्थानों, पंचायतों के वार्ड, बस स्टॉप, नगर परिषद, नगरपालिका के विभिन्न वार्ड में चिपकाने के लिए भी निर्देश जारी किए थे.

स्कूलों में प्रवेश शुरू होने से पहले ऐसे छात्रों को आवेदन करने के लिए कम से कम 30 दिन का समय देने को कहा गया था. ब्लॉक प्राइमरी एजुकेशन अफसरों को आदेश दिए गए थे कि वह संबंधित जिले के शिक्षा अधिकारियों को आरक्षण की जानकारी दे. कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि वह गठित समितियों से हिदायत एकत्रित कर यह भी पता लगाए कि क्या संबंधित स्कूलों में हाईकोर्ट के आदेश की अनुपालना की जा रही है या नहीं. इस मामले में नमिता मनिकटाला ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम की अक्षरशः अनुपालना न होने का आरोप लगाया है. निजी स्कूलों पर आरोप है कि हिमाचल के ऐसे सभी शिक्षण संस्थानों में कमजोर वर्ग के छात्रों को 25 फीसदी आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. हालांकि हाईकोर्ट ने 30 अगस्त 2016 को शिक्षा का अधिकार अधिनियम की अनुपालना सुनिश्चित करने के आदेश जारी किए थे, लेकिन राज्य सरकार ने इन आदेशों की अनुपालना सिर्फ कागजों में ही की है. अब अदालत ने राज्य सरकार से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है.

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