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ऊना जिला के कानूनगो की सीनियोरिटी लिस्ट का मामला, हाईकोर्ट ने दिया राजस्व विभाग को एक हफ्ते का समय, अवमानना की लटकी तलवार - HIMACHAL HIGH COURT

हिमाचल हाईकोर्ट ने जिला ऊना में काननूगो सीनियोरिटी लिस्ट मामले में राजस्व विभाग को कोर्ट के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (FILE)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 8, 2024, 9:04 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में काननूगो की सीनियोरिटी लिस्ट को नए सिरे से जारी करने के मामले में हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है. हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने राजस्व विभाग को एक हफ्ते का समय दिया है. ये अवसर शर्त के साथ दिया गया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की खंडपीठ ने इस मामले के आदेशों की अनुपालना में विफल रहने पर प्रतिवादियों को कड़ी सजा के लिए तैयार रहने को कहा है. हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को सिविल कारावास सहित उनके खिलाफ प्रतिकूल आदेश जारी करने या न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए उचित कॉस्ट लगाने की शर्त लगाई है.

मामले के अनुसार हाईकोर्ट ने ऊना जिले के कानूनगो की 8 मई 2020 को जारी सीनियोरिटी लिस्ट को रद्द करते हुए इसे पुन: जारी करने के आदेश जारी किए थे। हाईकोर्ट ने ऊना जिला में तैनात कानूनगो की वरिष्ठता सूची को निर्धारित करने बाबत 10 जुलाई 1997 को जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों के अमल को गैरकानूनी ठहराया था। हाईकोर्ट ने 8 मई 2020 को जारी कानूनगो की वरिष्ठता सूची के आधार पर प्रमोट किए गए नायब तहसीलदारों की नियुक्तियों को भी रद्द करने के आदेश जारी किए थे.

गौरतलब है कि प्रार्थी कुलदीप कुमार व अन्यों ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट समक्ष याचिका दाखिल कर 20 फरवरी 2020 को राज्य सरकार द्वारा जारी पत्र को यह कहकर चुनौती दी थी कि यह भर्ती एवं प्रमोशन नियम-1992 के विपरीत जारी किया गया है. पत्र जारी करने के पीछे 30 जून 1997 को राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों का हवाला दिया गया था. इसके तहत ऊना के कानूनगो की सीनियोरिटी सूची बदल दी गई और निजी तौर पर बनाए गए प्रतिवादियों को उनसे ऊपर लिस्ट में स्थान दे दिया गया.

प्रार्थियों को वर्ष 1998 में भर्ती एवं प्रोन्नति नियम-1992 के तहत पटवारी के पदों पर नियुक्त किया गया था. उनकी वरिष्ठता नियम 15 (ए) व 15 (बी) के तहत निर्धारित की गई थी. प्रार्थियों की दलील थी कि कार्यकारी निर्देश भर्ती एवं प्रोन्नति नियमों की जगह नहीं ले सकते. सरकार ने इस फैसले के दृष्टिगत अन्य जिलों के पटवारियों और कानूनगो की वरिष्ठता सूची में बदलाव की कवायद शुरू कर दी थी. परंतु हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अन्य जिलों के याचिकाकर्ताओं से जुड़े मामलों में पटवारियों की 24 जनवरी 2000 के बाद से लेकर अब तक की तय की गई वरिष्ठता सूची और प्रमोशन में बदलाव करने पर रोक लगा दी थी.

ये भी पढ़ें: तीन साल का सामान्य कार्यकाल पूरा करने की अनुमति के बिना ट्रांसफर करना गलत, हाईकोर्ट ने कहा-कानून की नजर में ये स्वीकार नहीं

शिमला: हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में काननूगो की सीनियोरिटी लिस्ट को नए सिरे से जारी करने के मामले में हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है. हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने राजस्व विभाग को एक हफ्ते का समय दिया है. ये अवसर शर्त के साथ दिया गया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की खंडपीठ ने इस मामले के आदेशों की अनुपालना में विफल रहने पर प्रतिवादियों को कड़ी सजा के लिए तैयार रहने को कहा है. हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को सिविल कारावास सहित उनके खिलाफ प्रतिकूल आदेश जारी करने या न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए उचित कॉस्ट लगाने की शर्त लगाई है.

मामले के अनुसार हाईकोर्ट ने ऊना जिले के कानूनगो की 8 मई 2020 को जारी सीनियोरिटी लिस्ट को रद्द करते हुए इसे पुन: जारी करने के आदेश जारी किए थे। हाईकोर्ट ने ऊना जिला में तैनात कानूनगो की वरिष्ठता सूची को निर्धारित करने बाबत 10 जुलाई 1997 को जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों के अमल को गैरकानूनी ठहराया था। हाईकोर्ट ने 8 मई 2020 को जारी कानूनगो की वरिष्ठता सूची के आधार पर प्रमोट किए गए नायब तहसीलदारों की नियुक्तियों को भी रद्द करने के आदेश जारी किए थे.

गौरतलब है कि प्रार्थी कुलदीप कुमार व अन्यों ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट समक्ष याचिका दाखिल कर 20 फरवरी 2020 को राज्य सरकार द्वारा जारी पत्र को यह कहकर चुनौती दी थी कि यह भर्ती एवं प्रमोशन नियम-1992 के विपरीत जारी किया गया है. पत्र जारी करने के पीछे 30 जून 1997 को राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए कार्यकारी निर्देशों का हवाला दिया गया था. इसके तहत ऊना के कानूनगो की सीनियोरिटी सूची बदल दी गई और निजी तौर पर बनाए गए प्रतिवादियों को उनसे ऊपर लिस्ट में स्थान दे दिया गया.

प्रार्थियों को वर्ष 1998 में भर्ती एवं प्रोन्नति नियम-1992 के तहत पटवारी के पदों पर नियुक्त किया गया था. उनकी वरिष्ठता नियम 15 (ए) व 15 (बी) के तहत निर्धारित की गई थी. प्रार्थियों की दलील थी कि कार्यकारी निर्देश भर्ती एवं प्रोन्नति नियमों की जगह नहीं ले सकते. सरकार ने इस फैसले के दृष्टिगत अन्य जिलों के पटवारियों और कानूनगो की वरिष्ठता सूची में बदलाव की कवायद शुरू कर दी थी. परंतु हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अन्य जिलों के याचिकाकर्ताओं से जुड़े मामलों में पटवारियों की 24 जनवरी 2000 के बाद से लेकर अब तक की तय की गई वरिष्ठता सूची और प्रमोशन में बदलाव करने पर रोक लगा दी थी.

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