शिमला: पहाड़ी राज्य में कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बीच नौनिहालों के लिए स्कूल पहुंचना आज भी किसी जंग से कम नहीं है. आज भी कहीं नाला, कहीं रस्सियों और लकड़ी के कामचलाऊ पुलों को पार कर स्कूल की दहलीज पर पहुंचा जाता है. इसके लिए सरकार ने गांव-गांव में प्राथमिक और मीडिल स्कूल खोले थे, ताकि बच्चों को दूर-दराज के क्षेत्रों में तालीम हासिल करने के लिए ना जाना पड़े.
कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद सरकार के प्रयासों का ये परिणाम हुआ कि हिमाचल शिक्षा के क्षेत्र में कई राज्यों को पछाड़कर आगे निकला गया. 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की साक्षरता दर 82.80% पहुंच चुकी थी. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल में पुरुष साक्षरता दर 89.53% , महिला साक्षरता दर 75.93% थी. वर्तमान समय में कुल साक्षरता दर 88 प्रतिशत के करीब पहुंच चुकी है. आजादी के समय हिमाचल की साक्षरता दर सिर्फ 8 प्रतिशत से थोड़ा अधिक थी. आज हिमाचल की साक्षरता दर देश के कई राज्यों जैसे कर्नाटक, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान से अधिक है.
दिसंबर 2023 तक आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े
राज्य सरकार के दिसंबर 2023 के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में प्राइमरी स्कूलों की संख्या 10,370 है. इसके अलावा मिडिल स्कूल 1850, हाई स्कूल 960 व सीनियर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या 1984 है, जबकि 148 सरकारी महाविद्यालय हैं. छोटे पहाड़ी राज्य में सत्तर लाख की आबादी के लिए ये शैक्षणिक ढांचा काफी बेहतर है. गांवों में प्राथमिक स्कूलों को खोलने का मकसद हर बच्चे तक प्राइमरी एजुकेशन की पहुंच सुनिश्चित करना था, ताकि उन्हें घर द्वार पर शिक्षा मिल सके.
केंद्र राज्य सरकार की कई स्कॉलरशिप योजनाएं
राज्य में प्राइमरी शिक्षा के लिए 10, मिडल और हाई स्कूल के छात्रों के लिए राज्य व केंद्र स्तर पर प्रायोजित स्कॉलरशिप योजनाओं की संख्या 14 है. हिमाचल में राज्य सरकार नौवीं-दसवीं कक्षा के छात्रों को निशुल्क किताबें प्रदान करती हैं. वर्ष 2023-24 में इस योजना के तहत 1,41,956 छात्र-छात्राओं को लाभ मिला है, लेकिन अब सरकारी स्कूलों में छात्रों के घटते रुझान के चलते हिमाचल सरकार ने 433 स्कूलों को बंद करने का फैसला किया है.
शिक्षा विभाग के पास ही रहेगा मालिकाना हक
बंद होने वाले स्कूलों का अपने भवन और लैंड रिकॉर्ड में जमीन शिक्षा विभाग के नाम है. अब सवाल ये है कि सरकार ने इन स्कूल भवनों और जमीन का शिक्षा विभाग क्या करेगा. सरकार ने बंद होने वाले स्कूलों में जिम और पुस्तकालय खोलने का निर्णय किया है. जमीन और अन्य संपत्तियां भी शिक्षा विभाग के ही नाम रहेंगी.
सीएम ने जताई थी चिंता
बीते दिनों सीएम सुक्खू ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक की थी. इस दौरान सीएम ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या कम होने पर गंभीर चिंता व्यक्त की करते हुए कहा था कि 2002-2003 में सरकारी शिक्षण संस्थानों में जहां विद्यार्थियों की संख्या 1 लाख 30 हजार 466 थी. वहीं, वर्ष 2023-24 में यह संख्या घटकर 49 हजार 295 हो गई है. वर्तमान में प्रदेश में 89 प्राथमिक विद्यालयों और 10 माध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या शून्य है.
जून महीने में ही हिमाचल सरकार ने कम संख्या वाले स्कूलों को मर्ज करने की तैयारी की थी. पहले चरण में दो से कम संख्या वाले ऐसे करीब 800 स्कूलों को मर्ज करने की योजना थी, जहां साथ में ही डेढ़ से दो किलोमीटर की दूरी पर अन्य स्कूल है, ताकि छात्रों को शिक्षा के मंदिरों में जाने के लिए घरों से अधिक सफर तय न करना पड़े. हिमाचल में पिछले साल भी कम छात्रों की संख्या वाले करीब 700 स्कूल मर्ज किए गए थे.
क्यों सरकारी स्कूलों को लगा ग्रहण
अनुभवी शिक्षाविद नंदलाल गुप्ता ने कहा कि 'सरकारी स्कूलों में छात्रों को सरकार छात्रवृतियां, सस्ती और गुणवत्ता के साथ शिक्षा मुहैया करवाती है, लेकिन सरकारी स्कूलों में स्टाफ कमी, कुछ शिक्षकों का क्वालिटी एजुकेशन का तरफ ध्यान न देना और अनुशासन की कमी भी इसके पीछे कारण हैं. कई शिक्षकों के स्कूल में शराब पीकर पहुंचने की खबरें मीडिया संस्थानों में आती रहती हैं. स्टाफ की कमी, अध्यापकों की अन्य जिम्मेदारियां जैसे इलेक्शन ड्यूटी के कारण छात्र अपना पाठ्यक्रम पूरा नहीं कर पाते हैं. सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता था, सरकारी स्कूलों के छात्र अंग्रेजी भाषा में प्राइवेट स्कूलों के छात्रों से पिछड़ने के कारण करियर में कई परेशानियां झेल रहे हैं. इसके कारण छात्रों का रुझान निजी स्कूलों की तरफ हुआ. कुछ सालों से सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा की ओर ध्यान दिया है, लेकिन इसके बाद भी छात्रों की संख्या बढ़ाने में सरकारें नाकाम रही हैं. निजी स्कूलों में छात्रों को डांस, पेंटिंग, संगीत जैसे कक्षाएं भी मुहैया करवाई जाती हैं. वहीं, बच्चों को अब प्राइवेट स्कूलों में भेजना स्टेट्स सिंबल बन चुका है. लोगों की इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है.'
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