शिमला: वैसे तो हिमाचल प्रदेश को बर्फीले पहाड़ों और यहां की शुद्ध आबोहवा के तौर पर जाना जाता है. वहीं, यहां कुछ ऐसी शख्सियतें भी हुई हैं जिन्हें आजादी के इस पावन अवसर पर याद करना जरूरी है. इन शख्सियतों ने अपने काम से अपना नाम बनाया और हिमाचल प्रदेश के साथ भारत के इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई है.
श्याम सरन नेगी देश: श्याम सरन नेगी आजाद भारत के पहले वोटर थे. किन्नौर जिले से संबंध रखने वाले श्याम सरन सिंह नेगी ने देश के पहले लोकसभा चुनाव में सबसे पहले वोट डाला था. देश में पहला चुनाव 1952 की शुरुआत में हुए लेकिन बर्फबारी के अलर्ट को देखते हुए हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों में अक्टूबर 1951 में मतदान करवाया गया. श्याम सरन नेगी ने इस चुनाव में सबसे पहले वोट डाला था. इसका खुलासा साल 2007 में हुआ. श्याम सरन नेगी का निधन 5 नवंबर 2022 को 105 साल की उम्र में हुआ था.
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सत्यानंद स्टोक्स: पहाड़ी राज्य हिमाचल में सेब की सौगात लाने का श्रेय अमेरिकी मूल के सैमुअल इवान स्टोक्स को जाता है. हिमाचल आकर सैमुअल स्टोक्स सत्यानंद स्टोक्स बन गए और यहां की जमीन पर सेब के रूप में समृद्धि रोप दी. आज आलम ये है कि आपके घर पहुंचने वाला हर दूसरा सेब हिमाचल का है.
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विक्रम बत्रा: साल 1999 के कारगिल के शेरशांह रहे शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे थे. कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल की चोटियों को दुश्मनों से बचाते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था. इन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था.
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सोमनाथ शर्मा: मेजर सोमनाथ शर्मा भी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के रहने वाले थे. देश का पहला परमवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा के नाम है. कांगड़ा जिले के रहने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा चार कुमाऊं रेजिमेंट का हिस्सा थे. कबायलियों के भेष में नापाक पाकिस्तान को उन्होंने सबक सिखाया था.
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विजय कुमार: हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले से संबंध रखने वाले विजय कुमार ने साल 2012 के लंदन ओलंपिक में 25 मीटर रेपिड फायर पिस्टल इवेंट में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था. सेना में सेवाएं दे चुके विजय कुमार को पद्म श्री, खेल रत्न पुरस्कार, अर्जुन अवॉर्ड के अलावा सेना मेडल, अति विशिष्ट सेना मेडल से भी नवाजा जा चुका है.
दलाई लामा: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का घर भी हिमाचल में ही है. साल 1960 में चीन के तिब्बत पर आक्रमण के बाद दलाई लामा ने अपना देश छोड़ा और भारत में शरण ली. बता दें कि दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं और धर्मशाला से ही तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है.
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द ग्रेट खली: रेसलिंग की दुनिया में द ग्रेट खली के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात दलीप सिंह राणा हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से हैं. 7 फीट से अधिक ऊंचाई वाले खली अब रेसलिंग छोड़ चुके हैं लेकिन करीब 2 दशक तक WWE के रिंग में वह बड़े-बड़े रेस्लरों के छक्के छुड़ा चुके हैं. खली अब नए रेसलर्स को ट्रेनिंग देते हैं.
रस्किन बॉन्ड: अंग्रेजी भाषा के बेहतरीन लेखक रस्किन बॉन्ड का जन्म 19 मई, 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था. उनके पिता रॉयल एयर फोर्स में थे. रस्किन बॉन्ड ने शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई की थी. उन्हें अपने लेखन के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण अवॉर्ड से नवाजा गया है.
यशवंत सिंह परमार: डॉ. वाई एस परमार को हिमाचल प्रदेश का निर्माता कहा जाता है. वह प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थी. उल्लेखनीय है कि डॉ. वाई एस परमार ने हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए अथक प्रयास किया था. हिमाचल के गठन से लेकर हिमाचल के पूर्ण राज्य बनने तक डॉ. परमार का योगदान है.
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मनोहर सिंह : मनोहर सिंह शिमला के समीपवर्ती गांव क्वारा में जन्मे थे. मनोहर सिंह रंगमंच की दुनिया के बेताज बादशाह माने जाते थे. उन्होंने कई फिल्मों में भी काम किया. मनोहर सिंह को देश-विदेश में कई सम्मान मिले. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पहले निदेशक इब्राहिम अल्काजी मनोहर सिंह की प्रतिभा के बेहद कायल थे. मनोहर सिंह ने 1971 में एनएसडी पासआउट किया था.
मास्टर मदन: संगीत के संसार में मास्टर मदन एक ऐसे चमकते सितारे रहे हैं जिनकी संगीत साधना का प्रकाश कभी फीका नहीं होगा. 8 साल की आयु में उनके दिव्य कंठ से दो गजलें संगीत प्रेमियों के लिए अनमोल उपहार के रूप में निकली थी. "हैरत से तक रहा है जहाने वफा मुझे" और यूं ना रह-रह के हमें तरसाइए" इन दो गजलों ने समूचे संगीत संसार में मास्टर मदन के जादूयी गले की धाक जमा दी थी. शिमला मास्टर मदन की कर्मभूमि रही वह महज 15 साल की उम्र में यह संसार छोड़कर चले गए. ऐसा कहा जाता है कि मास्टर मदन की ख्याती से जलने वाले लोगों ने उन्हें धिमा जहर दिया था. एक मशहूर किस्से के अनुसार, वर्ष 1940 में महात्मा गांधी की शिमला में एक सभा थी उसी दौरान मास्टर मदन और उनके बड़े भाई मास्टर मोहन अपनी गायन कला प्रस्तुत कर रहे थे. बताया जाता है कि महात्मा गांधी की सभा की भीड़ खिंच कर मास्टर मदन की जादुई आवाज सुनने के लिए पहुंच गई. मास्टर मदन का नाम संगीत गायन का पर्याय माना जाता है.