शिमला: हिमाचल सरकार के कर्मचारियों के वेतन व पेंशनर्स की पेंशन सितंबर महीने में लेट आई. राज्य के इतिहास में ये पहली बार हुआ कि कर्मचारियों व पेंशनर्स को पहली तारीख को वेतन व पेंशन नहीं मिली. कर्मचारियों का वेतन पांच सितंबर व पेंशनर्स की पेंशन 10 सितंबर को आई. इसे लेकर देश भर में शोर हुआ. अब राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर रत्ती भर की भी कोई सूचना आती है तो सब उत्सुक हो जाते हैं कि आखिर माजरा क्या है.
अब एक सूचना पाठकों को ईटीवी के इस पन्ने के माध्यम से दी जा रही है. ये सूचना है तो सरकारी खजाने से ही संबंधित, लेकिन परेशान करने वाली सूचना नहीं है. तो खबर ये है कि हिमाचल सरकार का खजाना संभालने वाले आईएएस अफसर देवेश कुमार विदेश दौरे पर जा रहे हैं. वे संभवत दस दिन के लिए फ्रांस के सरकारी दौरे पर हैं, लेकिन राहत की बात ये है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन देने की तारीख से पहले ही वे विदेश से अपने प्रदेश यानी हिमाचल लौट आएंगे. ऐसे में चिंता की कोई बात नहीं है. उनके स्थान पर वर्ष 2008 बैच के आईएएस अफसर राजेश शर्मा खजाने से जुड़े मामलों को देखेंगे. देवेश कुमार राज्य सरकार के वित्त विभाग के प्रधान सचिव हैं.
देश भर में चर्चित हुआ हिमाचल का आर्थिक संकट
हिमाचल प्रदेश का आर्थिक संकट हाल ही में देश भर में छाया रहा. राज्य के इतिहास में ये पहली बार हुआ कि कर्मचारियों व पेंशनर्स को पहली तारीख को वेतन व पेंशन नहीं मिली. कर्मचारियों का वेतन पांच सितंबर व पेंशनर्स की पेंशन 10 सितंबर को आई. ये भी दिलचस्प तथ्य है कि विधानसभा के मानसून सेशन के दौरान सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की तरफ से सदन में ऐलान किया गया कि वो अपनी व मंत्रियों की सैलरी दो महीने के लिए डेफर यानी विलंबित करते हैं. इसके बाद से ही देश भर के मीडिया में ये चर्चा शुरू हो गई कि क्या हिमाचल कंगाल हो रहा है, क्या हिमाचल आर्थिक दुष्चक्र में फंस गया है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शुक्रवार को शिमला में कहा कि हिमाचल में कहीं कोई आर्थिक संकट नहीं है.
हर महीने चाहिए 2000 करोड़ रुपए
उल्लेखनीय है कि हिमाचल सरकार को कर्मचारियों के वेतन की अदायगी के लिए हर महीने 1200 करोड़ रुपए की रकम चाहिए होती है. पेंशनर्स की पेंशन का भुगतान करने के लिए 800 करोड़ रुपए मासिक चाहिए. ऐसे में ये खर्च 2000 करोड़ रुपए बनता है. हिमाचल के पास अभी केंद्र से मंजूर कर्ज लेने की लिमिट 1617 करोड़ रुपए बची है. राज्य को केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के 520 करोड़ रुपए व केंद्रीय करों की हिस्सेदारी के 740 करोड़ रुपए मिलते हैं. वैट व अन्य माध्यमों से हिमाचल का राजस्व एक हजार करोड़ रुपए अधिकतम है. ऐसे में प्रदेश में वित्तीय स्थिति गंभीर तो है ही. राज्य कर्ज के बोझ से दबा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ते हैं. हिमाचल पर अभी 87 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है. इसके मार्च 2025 में 94 हजार करोड़ पहुंचने के आसार हैं.