नई दिल्ली: नए शैक्षणिक में अभी तक दिल्ली नगर निगम और दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को किताबें नहीं मिली है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के अधिकारियों से कई सवाल किए. हाईकोर्ट ने अधिकारियों से कहा कि सरकारी स्कूलों में छात्रों का शैक्षणिक वर्ष का पहला सत्र लगभग किताबों के बिना ही बीत गया.
अदालत ने अधिकारियों से इस कार्य में देरी का कारण पूछा. कोर्ट ने कहा, 'जब सरकार ही किताबों के प्रकाशन और वितरण पर पैसा खर्च कर रही थी तो किताबें बांटने में देर से क्यों हुई? इस साल क्या गलती हुई कि समय पर किताबें नहीं बांटीं?' कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने सवाल पूछा.
कोर्ट ने पूछा "सरकार वितरण, प्रकाशन पर पैसा खर्च कर रही है. इस खर्च का क्या फायदा जब हम इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. यहां तक कि अदालत को बताया गया कि कुछ कक्षाओं के पाठ्यक्रम में बदलाव के कारण देरी हुई. अदालत ने टिप्पणी की कि निजी स्कूलों में शिक्षण जारी रहना चाहिए. पीठ ने कहा, "पहला सत्र 1 अप्रैल से 10 मई तक लगभग समाप्त हो चुका है. आपकी अपनी स्वीकारोक्ति के अनुसार छात्र लगभग किताबों के बिना ही चले गए हैं." अदालत इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
सुनवाई में मौजूद दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने अदालत को आश्वासन दिया कि नई किताबों के वितरण में देरी के बावजूद कक्षाओं में पढ़ाई चल रही है. उन्होंने कहा कि कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को किताबें खरीदने के लिए आगे वितरण के लिए संबंधित विभाग के योजना विंग को धनराशि भेज दी गई है.
याचिकाकर्ता एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से पेश वकील अशोक अग्रवाल ने कहा कि कक्षा 1 से 12वीं तक के कई छात्रों को अभी तक किताबें और वर्दी खरीदने के लिए धनराशि नहीं मिली है. अधिकारी ने कहा कि सभी कक्षाओं के लिए वितरण प्रक्रिया चल रही है, कक्षा 6 से 8 के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव हुआ है और इसलिए, छपाई का काम चल रहा है.
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निगम और दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ते हैं 17 लाख से अधिक बच्चे: हाईकोर्ट में निगम स्कूलों में बच्चों की संख्या को लेकर दी गई जानकारी के अनुसार, निगम स्कूलों में कुल सात लाख 88 हजार 224 बच्चे पढ़ते हैं. वहीं, दिल्ली सरकार के सरकारी स्कूलों में नर्सरी से आठवीं कक्षा तक करीब 10 लाख बच्चे पढ़ते हैं. इन बच्चों को भी अभी तक किताबें उपलब्ध नहीं हो सकी हैं.