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कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में बसे गांव के विस्थापन को लेकर क्या कदम उठाए, हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब - Kumbhalgarh Sanctuary - KUMBHALGARH SANCTUARY

राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ अभयारण्य में बसे एक गांव के विस्थापन का मामला लंबे समय से अटका पड़ा है. अब ग्रामीणों ने हाईकोर्ट का रुख किया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है कि गांव को विस्थापित करने के लिए क्या उपाय किए गए.

high court jodhpur ask goverment, What steps  have taken  for displacement of village situated in Kumbhalgarh Sanctuary
कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में बसे गांव के विस्थापन को लेकर क्या कदम उठाए, हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 23, 2024, 7:13 PM IST

जोधपुर. कुंभलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य के घने जंगलों के बीच स्थित खरनी टोकरी बस्ती के लोगों का जंगल के बाहर विस्थापन की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई की. राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब करते हुए पूछा है कि अब तक विस्थापन को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं?.

मुख्य न्यायाधीश मनिंदर मोहन श्रीवास्तव एवं न्यायाधीश मुन्नुरी लक्ष्मण की खंडपीठ ने ग्रामीणों की ओर से दायर याचिका पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया. अधिवक्ता ऋतुराज सिंह राठौड़ ने बताया कि गांव के लोग राणा भील समुदाय के हैं. अभयारण्य के अंदर स्थित होने की वजह से वहां सड़क, पानी, बिजली की मूलभूत सुविधाओं तक का अभाव है. गांव के लोग किसी भी प्रकार का नया निर्माण नहीं कर सकते एवं कच्चे झोपड़ों में रहने को मजबूर है. जंगल के बीच होने की वजह से जंगली जानवरों का खतरा रहता है. शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है.

पढ़ें: NTCA ने बनाई एक्सपर्ट कमेटी, कुंभलगढ़ में Tiger Reserve घोषित करने की संभावनाएं तलाशेगी कमेटी

अधिवक्ता ऋतुराज सिंह ने कोर्ट में कहा कि एक और जहां पर सरिस्का एवं रणथंभोर जैसे जंगल है, जहां राजस्थान में संरक्षित वन क्षेत्र के अंदर बसे हुए लोगों को जंगल से बाहर विस्थापन करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ता है, लेकिन मौजूदा प्रकरण में याचिकाकर्ता जंगलवासी है यदि सरकार उनकी मदद करें तो स्वयं जंगल से बाहर विस्थापित होने को तैयार हैं. उनकी बस्ती के जंगल से बाहर विस्थापन होने से जंगल, वन्यजीव एवं मनुष्य सभी के लिए लाभदायक स्थिति होगी. कुंभलगढ़ में टाइगर पुनः बसाने के लिए केंद्र सरकार के राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गई है एवं इसी संदर्भ में एनटीसीए की एक्सपर्ट कमेटी ने सर्वे किया था. इसमें भी सुझाव दिया गया था कि अभ्यारण्य के अंदर स्थित मानव बस्तियों को जल्द से जल्द अभ्यारण के बाहर विस्थापित कर दिया जाना चाहिए. इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा है.

जोधपुर. कुंभलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य के घने जंगलों के बीच स्थित खरनी टोकरी बस्ती के लोगों का जंगल के बाहर विस्थापन की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई की. राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब करते हुए पूछा है कि अब तक विस्थापन को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं?.

मुख्य न्यायाधीश मनिंदर मोहन श्रीवास्तव एवं न्यायाधीश मुन्नुरी लक्ष्मण की खंडपीठ ने ग्रामीणों की ओर से दायर याचिका पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया. अधिवक्ता ऋतुराज सिंह राठौड़ ने बताया कि गांव के लोग राणा भील समुदाय के हैं. अभयारण्य के अंदर स्थित होने की वजह से वहां सड़क, पानी, बिजली की मूलभूत सुविधाओं तक का अभाव है. गांव के लोग किसी भी प्रकार का नया निर्माण नहीं कर सकते एवं कच्चे झोपड़ों में रहने को मजबूर है. जंगल के बीच होने की वजह से जंगली जानवरों का खतरा रहता है. शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है.

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अधिवक्ता ऋतुराज सिंह ने कोर्ट में कहा कि एक और जहां पर सरिस्का एवं रणथंभोर जैसे जंगल है, जहां राजस्थान में संरक्षित वन क्षेत्र के अंदर बसे हुए लोगों को जंगल से बाहर विस्थापन करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ता है, लेकिन मौजूदा प्रकरण में याचिकाकर्ता जंगलवासी है यदि सरकार उनकी मदद करें तो स्वयं जंगल से बाहर विस्थापित होने को तैयार हैं. उनकी बस्ती के जंगल से बाहर विस्थापन होने से जंगल, वन्यजीव एवं मनुष्य सभी के लिए लाभदायक स्थिति होगी. कुंभलगढ़ में टाइगर पुनः बसाने के लिए केंद्र सरकार के राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गई है एवं इसी संदर्भ में एनटीसीए की एक्सपर्ट कमेटी ने सर्वे किया था. इसमें भी सुझाव दिया गया था कि अभ्यारण्य के अंदर स्थित मानव बस्तियों को जल्द से जल्द अभ्यारण के बाहर विस्थापित कर दिया जाना चाहिए. इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा है.

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