शिमला: हिमाचल प्रदेश विधानसभा में जाली दस्तावेज के आधार पर नियुक्ति से जुड़े मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ की तरफ से विधानसभा पर लगाई गई 50 हजार रुपए की कॉस्ट को डबल बैंच ने सही ठहराया है. जाली दस्तावेज के आधार पर नियुक्त कर्मचारी के मामले में दी गई शिकायत पर विधानसभा ने कोई कार्रवाई नहीं की थी. इस पर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने विधानसभा पर 50 हजार की कॉस्ट लगाई थी. एकल पीठ के फैसले के खिलाफ विधानसभा की तरफ से हाईकोर्ट की डबल बैंच में अपील की थी. वहीं, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के कॉस्ट लगाने के फैसले को सही ठहराया.
हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को चुनौती देने वाली विधानसभा की अपील को भी खारिज कर दिया. खंडपीठ ने कहा कि आम तौर पर यह भारी कॉस्ट लगाने के लिए एक उपयुक्त मामला है. यही नहीं, मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने विधानसभा को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि अपीलकर्ता फिर से इस तरह की गुणवत्ताहीन अपील करने का दुस्साहस न करे. हाईकोर्ट ने कहा कि हमें वास्तव में आश्चर्य हो रहा है कि अपीलकर्ता ने इस तरह की अपील ही क्यों दाखिल की है, खासकर तब जब तथ्यात्मक मैट्रिक्स से पता चलता है कि अपीलकर्ता को एकल पीठ के फैसले से पीड़ित पक्ष नहीं माना जा सकता है.
क्या है पूरा मामला
मामले के अनुसार हाईकोर्ट ने हिमाचल विधानसभा पर जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त कर्मचारी के खिलाफ दी गई शिकायत पर कोई कार्रवाई न करने पर 50,000 रुपए की कॉस्ट लगाई थी. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने ये कॉस्ट लगाई थी. न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने कमलजीत नामक व्यक्ति की याचिका को स्वीकारते हुए विधानसभा सचिव को अपने दोषी अधिकारियों के खिलाफ मामले की जांच करने के आदेश भी दिए थे. हाईकोर्ट ने जांच को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने और इसकी रिपोर्ट आगे की आवश्यक कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखने के आदेश भी दिए थे. एकल पीठ ने याचिकाकर्ता को जूनियर ट्रांसलेटर के पद पर नियुक्ति दिए जाने के आदेश जारी किए थे. वहीं, जिस कर्मी को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त किया गया था, वह पहले ही अपने पद से त्यागपत्र दे चुका था.
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ द्वारा की गई उन टिप्पणियों को सही ठहराया, जिनमें एकल पीठ ने कहा था कि ऐसे मामलों में नियोक्ता द्वारा समय पर कार्रवाई करने से कतार में लगे अन्य अभ्यर्थियों को परेशानियों से बचाया जा सकता है. नियोक्ता से कम से कम यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह शिकायत पर किसी प्रकार की जांच शुरू करे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि नियुक्त व्यक्ति के पास पद के लिए अपेक्षित शैक्षिक मानदंड हैं या नहीं. इस सामान्य ज्ञान तर्क को धता बताते हुए नियोक्ता विधानसभा ने उपरोक्त सामान्य उपाय भी नहीं अपनाया. एकल पीठ ने कहा था कि फर्जी दस्तावेज अथवा नकली प्रमाणपत्र के आधार पर रोजगार हासिल करना एक गंभीर मामला है. लेकिन विधानसभा ने इस पर आंखें मूंद लीं, जिस कारण नियोक्ता का आचरण अशोभनीय है. एकल पीठ ने सूची में अगला स्थान होने के कारण याचिकाकर्ता को पद का हकदार माना था.
एकल पीठ ने हैरानी जताई था कि याचिकाकर्ता को पद देने के बजाय विधानसभा ने विवादित पद को पुन: विज्ञापित कर चयन प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू किया. यहां तक कि नियोक्ता यह दलील देने की हद तक चला गया कि नई चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और परिणामस्वरूप रिट याचिका निष्फल हो गई थी. एकल पीठ ने याचिका को स्वीकारते हुए विधानसभा को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्ता को 11 सितंबर 2019 को विज्ञापित जूनियर ट्रांसलेटर (ओबीसी) के पद पर दो हफ्ते के भीतर नियुक्ति प्रदान करे. इस फैसले को विधानसभा ने खंडपीठ के समक्ष अपील के माध्यम से चुनौती दी थी, लेकिन ये अपील खारिज कर दी गई.
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