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स्टोन क्रशरों का 50 करोड़ का जुर्माना माफ करने का मामला, 5 नंवबर को होगी अगली सुनवाई

हाईकोर्ट में आज नैनताल के पूर्व DM द्वारा स्टोन क्रशरों का 50 करोड़ से अधिक का जुर्माना माफ करने के मामले में सुनवाई हुई.

NAINITAL HIGH COURT
उत्तराखंड हाईकोर्ट (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 23, 2024, 5:04 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल के पूर्व जिलाधिकारी द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न स्टोन क्रशरों के अवैध खनन एवं भंडारण पर लगाये गए करीब 50 करोड़ से अधिक का जुर्माना माफ करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 5 नंवबर की तारीख निर्धारित की है.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि जो शपथ पत्र पूर्व के आदेश पर सचिव खनन ने आज पेश किया है, उस पर अपना जवाब दे सकते हैं. पिछली तारीख को कोर्ट ने सचिव खनन से पूछा था कि क्या जिला अधिकारी को यह पावर है कि वह पहले शिकायत पर जुर्माना आरोपित करे, फिर रिकवरी का नोटिस जारी करे और बाद में उसका जुर्माना सुनवाई के बाद माफ कर दें.

उस नियमावली को कोर्ट में पेश करें, जो आज राज्य सरकार ने शपथपत्र के माध्यम से पेश की, जिस पर पर याचिकाकर्ता ने असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि जिलाधिकारी को अपने ही आदेश की रिव्यू की पावर नहीं है. यहां तो पहले जिलाधिकारी ने खुद जुर्माना आरोपित किया फिर रिकवरी का नोटिस दिया. बाद में नोटिस की सुनवाई के बाद जुर्माना माफ कर दिया. लोक प्राधिकार की ऐसी कौन नियमावली है, जिसको सभी के दंड माफ करने व दंड देने का अधिकार प्राप्त है.

मामले के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता चोरलगिया नैनीताल निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2016 -17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा कई स्टोन क्रशरों का अवैध खनन व भंडारण का जुर्माना करीब 50 करोड़ से अधिक रुपए माफ कर दिया गया. जिला अधिकारी ने उन्हीं स्टोन क्रशरों का जुर्माना माफ किया जिन पर जुर्माना करोड़ों रुपए में था और जिनका जुर्माना कम था उनका माफ नहीं किया.

वहीं, जब इसकी शिकायत मुख्य सचिव और सचिव खनन से की गई, तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है, जब याचिकाकर्ता द्वारा शासन से इसका लिखित रूप में जवाब मांगा गया, तो आज की तारीख तक उन्हें इसका लिखित जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद उनके द्वारा इसमें आरटीआई मांग कर कहा कि जिलाधिकारी को किस नियमावली के तहत अवैध खनन व भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार प्राप्त है.

आरटीआई के माध्यम से अवगत कराएं, जिसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी औद्योगिक विभाग उत्तराखंड द्वारा कहा गया कि लोक प्राधिकार के अंतर्गत यह धारित नहीं है. जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में उक्त नियम धारित नहीं है, तो जिलाधिकारी द्वारा कैसे स्टोन क्रशरों पर लगे करोड़ रुपए का जुर्माना माफ कर दिया गया, फिर उनके द्वारा 2020 में चीफ सेकेट्री को शिकायत की और चीफ सेकेट्री ने औद्योगिक सचिव से इसकी जांच कराने को कहा.

औद्योगिक सचिव ने जिला अधिकारी नैनीताल को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया. डीएम द्वारा इसकी जांच एसडीएम हल्द्वानी को सौंप दी गई, जो नहीं हुई, जबकि औद्योगिक विभाग द्वारा 21 अक्टूबर 2020 को इस पर जांच आख्या प्रस्तुत करने को कहा था, जो चार साल बीत जाने के बाद भी प्रस्तुत नहीं की गई. जनहित याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि इस पर कार्रवाई की जाे, क्योंकि यह प्रदेश के राजस्व की हानि है.

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कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि जो शपथ पत्र पूर्व के आदेश पर सचिव खनन ने आज पेश किया है, उस पर अपना जवाब दे सकते हैं. पिछली तारीख को कोर्ट ने सचिव खनन से पूछा था कि क्या जिला अधिकारी को यह पावर है कि वह पहले शिकायत पर जुर्माना आरोपित करे, फिर रिकवरी का नोटिस जारी करे और बाद में उसका जुर्माना सुनवाई के बाद माफ कर दें.

उस नियमावली को कोर्ट में पेश करें, जो आज राज्य सरकार ने शपथपत्र के माध्यम से पेश की, जिस पर पर याचिकाकर्ता ने असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि जिलाधिकारी को अपने ही आदेश की रिव्यू की पावर नहीं है. यहां तो पहले जिलाधिकारी ने खुद जुर्माना आरोपित किया फिर रिकवरी का नोटिस दिया. बाद में नोटिस की सुनवाई के बाद जुर्माना माफ कर दिया. लोक प्राधिकार की ऐसी कौन नियमावली है, जिसको सभी के दंड माफ करने व दंड देने का अधिकार प्राप्त है.

मामले के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता चोरलगिया नैनीताल निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2016 -17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा कई स्टोन क्रशरों का अवैध खनन व भंडारण का जुर्माना करीब 50 करोड़ से अधिक रुपए माफ कर दिया गया. जिला अधिकारी ने उन्हीं स्टोन क्रशरों का जुर्माना माफ किया जिन पर जुर्माना करोड़ों रुपए में था और जिनका जुर्माना कम था उनका माफ नहीं किया.

वहीं, जब इसकी शिकायत मुख्य सचिव और सचिव खनन से की गई, तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है, जब याचिकाकर्ता द्वारा शासन से इसका लिखित रूप में जवाब मांगा गया, तो आज की तारीख तक उन्हें इसका लिखित जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद उनके द्वारा इसमें आरटीआई मांग कर कहा कि जिलाधिकारी को किस नियमावली के तहत अवैध खनन व भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार प्राप्त है.

आरटीआई के माध्यम से अवगत कराएं, जिसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी औद्योगिक विभाग उत्तराखंड द्वारा कहा गया कि लोक प्राधिकार के अंतर्गत यह धारित नहीं है. जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में उक्त नियम धारित नहीं है, तो जिलाधिकारी द्वारा कैसे स्टोन क्रशरों पर लगे करोड़ रुपए का जुर्माना माफ कर दिया गया, फिर उनके द्वारा 2020 में चीफ सेकेट्री को शिकायत की और चीफ सेकेट्री ने औद्योगिक सचिव से इसकी जांच कराने को कहा.

औद्योगिक सचिव ने जिला अधिकारी नैनीताल को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया. डीएम द्वारा इसकी जांच एसडीएम हल्द्वानी को सौंप दी गई, जो नहीं हुई, जबकि औद्योगिक विभाग द्वारा 21 अक्टूबर 2020 को इस पर जांच आख्या प्रस्तुत करने को कहा था, जो चार साल बीत जाने के बाद भी प्रस्तुत नहीं की गई. जनहित याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि इस पर कार्रवाई की जाे, क्योंकि यह प्रदेश के राजस्व की हानि है.

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