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शासनादेश के विरुद्ध स्पेशल काउंसिल को फीस देने का मामला, राज्य सरकार दस्तावेजों के साथ चीफ सेक्रेटरी का शपथ पत्र करेगी पेश - uttarakhand highcourt

नैनीताल हाईकोर्ट में सरकारी आदेशों के खिलाफ पैरवी करने के लिए विशेष वकील को भारी रकम देने के आरोप के मामले में सुनवाई हुई. इसी बीच कोर्ट ने दस्तावेजों के साथ चीफ सेक्रेटरी का शपथपत्र दो सप्ताह के भीतर पेश करने को कहा है.

UTTARAKHAND HIGHCOURT
नैनीताल हाईकोर्ट (PHOTO- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 24, 2024, 3:42 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा बिना न्याय विभाग की अनुमति लिए, शासनादेश के विरुद्ध जाकर उच्च न्यायालय में कुछ विशेष मामलों में सरकार की तरफ से प्रभावी पैरवी करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय से स्पेशल काउंसिल बुलाने और उन्हें प्रति सुनवाई हेतु 10 लाख रुपए दिए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की.

सरकार की तरफ से याचिका निरस्त करने की कही गई बात: मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से इस मामले में दस्तावेजों के साथ चीफ सेक्रेटरी का शपथपत्र दो सप्ताह के भीतर पेश करने को कहा है. आज हुई सुनाई पर महाधिवक्ता की तरफ से कहा गया कि यह जनहित याचिका निरस्त करने योग्य है, क्योंकि इसमें जो पक्षकार बनाए गए हैं, वर्तमान में सीएम व मुख्य स्थायी अधिवक्ता हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए जनहित याचिका से उनके नाम हटाए जाएं और जनहित याचिका को निरस्त किया जाए.

याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने जताया विरोध: इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि विपक्षियों को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया कि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने के लिए ना तो राज्य के चीफ सेक्रेटरी और ना ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली. एक केस में स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने बाद लाखों का भुगतान कर दिया. जबकि जिस दिन केस लगा हुआ था, उस दिन कोर्ट के आदेश में उनका नाम नहीं छपा था, जिसकी अनुमति शासनादेश नहीं देता. इसलिए इसकी जांच कराई जाए. उनके द्वारा जो आरोप लगाए गए हैं, वे सब जांच योग्य हैं. स्पेशल काउंसिल नियुक्ति करने के लिए सरकार को मुख्यमंत्री, चीफ सेक्रेटरी व न्याय विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक होती है. उनकी स्वीकृति के बाद ही स्पेशल काउंसिल नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन सरकार ने यहां यह प्रक्रिया नहीं अपनाई और लाखों रुपए का भुगतान कर दिया गया.

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नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा बिना न्याय विभाग की अनुमति लिए, शासनादेश के विरुद्ध जाकर उच्च न्यायालय में कुछ विशेष मामलों में सरकार की तरफ से प्रभावी पैरवी करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय से स्पेशल काउंसिल बुलाने और उन्हें प्रति सुनवाई हेतु 10 लाख रुपए दिए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की.

सरकार की तरफ से याचिका निरस्त करने की कही गई बात: मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से इस मामले में दस्तावेजों के साथ चीफ सेक्रेटरी का शपथपत्र दो सप्ताह के भीतर पेश करने को कहा है. आज हुई सुनाई पर महाधिवक्ता की तरफ से कहा गया कि यह जनहित याचिका निरस्त करने योग्य है, क्योंकि इसमें जो पक्षकार बनाए गए हैं, वर्तमान में सीएम व मुख्य स्थायी अधिवक्ता हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए जनहित याचिका से उनके नाम हटाए जाएं और जनहित याचिका को निरस्त किया जाए.

याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने जताया विरोध: इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि विपक्षियों को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया कि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने के लिए ना तो राज्य के चीफ सेक्रेटरी और ना ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली. एक केस में स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने बाद लाखों का भुगतान कर दिया. जबकि जिस दिन केस लगा हुआ था, उस दिन कोर्ट के आदेश में उनका नाम नहीं छपा था, जिसकी अनुमति शासनादेश नहीं देता. इसलिए इसकी जांच कराई जाए. उनके द्वारा जो आरोप लगाए गए हैं, वे सब जांच योग्य हैं. स्पेशल काउंसिल नियुक्ति करने के लिए सरकार को मुख्यमंत्री, चीफ सेक्रेटरी व न्याय विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक होती है. उनकी स्वीकृति के बाद ही स्पेशल काउंसिल नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन सरकार ने यहां यह प्रक्रिया नहीं अपनाई और लाखों रुपए का भुगतान कर दिया गया.

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