हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश में देहरा, नालागढ़ विधानसभा सीट के साथ-साथ हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र में भी उपचुनाव हो रहे हैं. यहां से बीजेपी ने पूर्व निर्दलीय विधायक आशीष शर्मा को मैदान में उतारा है. वहीं, कांग्रेस ने पुष्पेंद्र वर्मा को दूसरी बार टिकट दिया है. 2022 का चुनाव आशीष शर्मा ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीत हासिल की थी.
हमीरपुर विधानसभा सीट पर सीधा मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी पुष्पेंद्र वर्मा और बीजेपी उम्मीदवार आशीष शर्मा के बीच ही है. आशीष शर्मा साल 2022 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर इस सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी पुष्पेंद्र वर्मा साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के प्रत्याशी थे. वहीं, उपचुनाव में भी कांग्रेस ने अपने पुराने प्रत्याशी पर ही भरोसा जताया है. पुष्पेंद्र वर्मा को साल 2022 के विधानसभा उपचुनाव में 13,017 वोट पड़े थे. पुष्पेंद्र वर्मा के पिता रणजीत सिंह भी विधायक रह चुके हैं. इस बार उपचुनाव में पुष्पेंद्र वर्मा को कांग्रेस ने दूसरी बार अपना प्रत्याशी बनाया है. वह पेशे से डॉक्टर हैं.
सीएम सुक्खू ने संभाला मोर्चा
हमीरपुर सदर विधानसभा क्षेत्र सीएम सुक्खू के नादौन विधानसभा क्षेत्र के साथ लगता है. उनका पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र और प्रदेश में सत्ता के सर्वोच्च पद पर होने के नाते एक जरनैल की तरह हमीरपुर में मोर्चा संभाला. जरनैल होने के नाते कांग्रेस की कमान संभाल रहे सीएम सुक्खू के पास विपक्ष पर दागने के लिए कई तीर थे. उन्होंने धनबल, सरकार गिराने के षड्यंत्र, बिकाऊ जैसे तीर तरकश से बीजेपी पर छोड़े. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने धनबल से सरकार गिराने का षड्यंत्र रचा है. निर्दलीय विधायक पैसों की मंडी में बीजेपी के आगे बिक गए. अब कांग्रेस जनबल के साथ इन्हें सबक सिखाएगी. वहीं, कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना कहा कि जितना एक्टिव सीएम सुक्खू देहरा में एक्टिव रहे उतने हमीरपुर में नहीं रहे. ऐसा लगा जैसे उन्हें शायद देहरा से ज्यादा प्रेम है.
बीजेपी ने दिया करारा जवाब
वहीं, कांग्रेस से निपटने के लिए बीजेपी ने भी प्रचार में अपने जरनैलों की फौज उतार दी. सीएम जयराम ठाकुर, अनुराग ठाकुर, राजीव बिंदल उपचुनाव में मंच से सीएम सुक्खू के हमलों का जवाब देते नजर आए. पूरी बीजेपी लीडरशीप ने आशीष शर्मा के लिए मोर्चा संभाल लिया. आशीष शर्मा ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और उनकी पार्टी पर हमीरपुर के विकास को लेकर सौतेला व्यवहार अपनाने का गंभीर आरोप लगाए. प्रचार के दौरान उन्होंने कहा कि जब हमीरपुर के हक और विकास के लिए उन्होंने आवाज उठाई, तो मुख्यमंत्री ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया और उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की. सीएम के परिवार पर माइनिंग पॉलिसी की धज्जियां उड़ाने के आरोप लगाए. अब प्रचार का द एंड हो चुका है और जनता अब उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेगी. इस दौरान बीजेपी ने सोशल मीडिया पर प्रचार का खूब सहारा लिया.
क्या है कहता है हमीरपुर सीट का इतिहास
हमीरपुर सीट का इतिहास बेहद रोचक रहा है. यहां पर बीजेपी का ही दबदबा देखने को मिलता रहा है. 57 सालों में यहां कांग्रेस सिर्फ तीन बार ही जीत हासिल कर पाई है. यहां पर बीजेपी का ही दबदबा देखने को मिलता रहा है. 2007 से लेकर लगातार 2022 तक बीजेपी यहां काबिज रही थी. 2022 में पहली बार किसी निर्दलीय विधायक ने बीजेपी के वर्चस्व को यहां पर चुनौती देते हुए जीत हासिल की थी. 57 सालों में कांग्रेस सिर्फ तीन बार ही इस सीट पर जीत हासिल कर पाई है. साल 1966 में भाषायी आधार पर जब पंजाब का विभाजन हुआ तो हमीरपुर भी हिमाचल का हिस्सा बन गया. हिमाचल का हिस्सा बनने के बाद साल 1967 में पहली बार हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव हुए थे.
क्या हैं उपचुनाव के मायने
सरकार बनाने के लिए बीजेपी के पास संख्या बल नहीं है, लेकिन इसके बाद भी 10 जुलाई को होने वाले उपचुनाव पर बीजेपी की पूरी नजर है. बीजेपी को अभी यहां से कुछ अप्रत्याशित तौर पर कुछ लाभ मिलने की उम्मीद है. जयराम ठाकुर ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि उपचुनाव के नतीजे हिमाचल की राजनीति की हिला देंगे. इस बयान में बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह दिया था. जानकारों का मानना है कि बीजेपी ने अभी भी हिमाचल में पांच साल से पहले सत्ता वापसी की उम्मीद नहीं छोड़ी है.