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उत्तराखंड में नियमितीकरण का 'डबल स्टैंडर्ड', उपनल कर्मियों को लेकर 'कंफ्यूजन', जानिए पूरा मामला

उत्तराखंड में उपनल कर्मियों के नियमितीकरण मामले पर सरकार को 'सुप्रीम' झटका लग चुका है. इसके बाद सरकार दो धार में है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

UPNL Employees Regularization in Uttarakhand
उपनल कर्मियों पर 'कंफ्यूजन' (फोटो- ETV Bharat)

देहरादून: सुप्रीम कोर्ट ने उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण पर सरकार को झटका दिया है, जिसके बाद नई बहस शुरू हो गई. एक तरफ सरकार संविदा कर्मियों के नियमितीकरण के लिए पॉलिसी तैयार कर रही है तो दूसरी तरफ कोर्ट के आदेश के बावजूद उपनल कर्मियों को नियमित करने से परहेज किया जा रहा है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश पर मोहर लगा दी है, लेकिन सरकार मामले पर कंफ्यूजन में हैं.

उत्तराखंड में उपनल कर्मियों के नियमितीकरण का मुद्दा सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज करके उपनल कर्मियों को बड़ी खुशी का मौका दिया है तो सरकार की स्थिति कन्फ्यूजन वाली है. फिलहाल, इस पर सरकार रिव्यू पिटीशन के मूड में दिखाई दे रही है. हालांकि, सरकार के मंत्री खुलकर इस बात को भी नहीं कह पा रहे हैं.

वहीं, सरकार की मौजूदा स्थिति डबल स्टैंडर्ड वाली बनी हुई है. एक तरफ राज्य सरकार संविदा कर्मियों के नियमितीकरण को लेकर रेगुलेशन पॉलिसी 2024 लाने जा रही है तो दूसरी तरफ हाईकोर्ट के उपनल कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही है.

सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन के मूड में सरकार: उपनल कर्मी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अभी राहत ले ही रहे थे कि सरकार ने यह कहकर उनकी परेशानियां बढ़ा दी कि अभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का परीक्षण करवाया जा रहा है. जाहिर है कि सरकार के इस बयान का मतलब सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन की मंशा को जाहिर करना है. सरकार में वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कहते हैं कि अभी सरकार इस मामले में विचार कर रही है और अंतिम निर्णय होने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.

UPNL Employees Regularization in Uttarakhand
उपनल कर्मियों का धरना (फोटो- ETV Bharat)

नियमित ना करने के पीछे रहता है वित्तीय बोझ का तर्क: वित्तीय बोझ का तर्क देकर सरकार उपनल कर्मचारियों को नियमित करने से बचती रही है. सरकार का दावा रहा है कि राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है और ऐसी स्थिति में यदि बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नियमित किया जाता है तो सरकार पर वित्तीय बोझ बन जाएगा.उत्तराखंड इस समय करीब 80 हजार करोड़ के कर्ज में है. ऐसी स्थिति में जब उत्तराखंड का 80 फीसदी बजट अयोजनागत मद में खर्च हो रहा है, तब सरकार और ज्यादा वित्तीय भोज सहने की स्थिति में नहीं है.

उधर, तमाम ऐसे कर्मचारी संगठन वित्तीय बोझ के तर्क के सामने विधायकों की तनख्वाह बढ़ाई जाने और तमाम सरकार के फैसलों पर सवाल खड़े करते हुए इस तर्क को खारिज करते हैं. उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष विनोद कवि कहते हैं कि सरकार के पास यह बड़ा मौका है, जब सरकार कर्मचारियों को नियमित करते हुए प्रदेश में एक बेहतर संदेश दे सकती है और रोजगार देने के अपने वादे को निभा सकती है.

सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे उपनल कर्मी: उपनल कर्मचारी अपने नियमितीकरण को लेकर कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं. कुंदन कुमार बनाम उत्तराखंड सरकार याचिका पर पहली बार हाईकोर्ट ने उपनल कर्मचारियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था. साल 2018 में यह निर्णय आया और उपनल कर्मचारी के नियमित होने का रास्ता साफ हो गया.

हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि 1 साल के भीतर उपनल कर्मचारियों को नियमित करने की पॉलिसी लाई जाए और 6 महीने के भीतर इन्हें समान काम के बदले समान वेतन का लाभ दिया जाए, लेकिन सरकार ने इस फैसले को लागू करने के बजाय साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एलएलपी (SLP) लगाई.

जिस दौरान हाई कोर्ट ने निर्णय दिया, तब उत्तराखंड में उपनल कर्मचारी की संख्या करीब 18 हजार थी, जो अब बढ़कर करीब 22 हजार पहुंच गई है. हालांकि, उपनल कर्मी बता रहे हैं कि साल 2018 से अब तक 4 से 5 हजार ऐसे उपनल कर्मी भी हैं, जो पूर्व सैनिक होने के चलते सेवानिवृत हो चुके हैं.

अब सरकार रिव्यू पिटीशन की तैयारी में है और सुप्रीम कोर्ट यदि इस पिटीशन को स्वीकृत करता है तो यह मामला फिर से कुछ समय के लिए और खींच सकता है. उधर, सरकार भी चाहती है कि इस मामले में फिलहाल फैसले को रोक लिया जाए. ऐसे में आने वाले कुछ दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि उपनल कर्मचारियों का भविष्य क्या होगा.

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उत्तराखंड में उपनल कर्मियों के नियमितीकरण का मुद्दा सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज करके उपनल कर्मियों को बड़ी खुशी का मौका दिया है तो सरकार की स्थिति कन्फ्यूजन वाली है. फिलहाल, इस पर सरकार रिव्यू पिटीशन के मूड में दिखाई दे रही है. हालांकि, सरकार के मंत्री खुलकर इस बात को भी नहीं कह पा रहे हैं.

वहीं, सरकार की मौजूदा स्थिति डबल स्टैंडर्ड वाली बनी हुई है. एक तरफ राज्य सरकार संविदा कर्मियों के नियमितीकरण को लेकर रेगुलेशन पॉलिसी 2024 लाने जा रही है तो दूसरी तरफ हाईकोर्ट के उपनल कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही है.

सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन के मूड में सरकार: उपनल कर्मी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अभी राहत ले ही रहे थे कि सरकार ने यह कहकर उनकी परेशानियां बढ़ा दी कि अभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का परीक्षण करवाया जा रहा है. जाहिर है कि सरकार के इस बयान का मतलब सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन की मंशा को जाहिर करना है. सरकार में वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कहते हैं कि अभी सरकार इस मामले में विचार कर रही है और अंतिम निर्णय होने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.

UPNL Employees Regularization in Uttarakhand
उपनल कर्मियों का धरना (फोटो- ETV Bharat)

नियमित ना करने के पीछे रहता है वित्तीय बोझ का तर्क: वित्तीय बोझ का तर्क देकर सरकार उपनल कर्मचारियों को नियमित करने से बचती रही है. सरकार का दावा रहा है कि राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है और ऐसी स्थिति में यदि बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नियमित किया जाता है तो सरकार पर वित्तीय बोझ बन जाएगा.उत्तराखंड इस समय करीब 80 हजार करोड़ के कर्ज में है. ऐसी स्थिति में जब उत्तराखंड का 80 फीसदी बजट अयोजनागत मद में खर्च हो रहा है, तब सरकार और ज्यादा वित्तीय भोज सहने की स्थिति में नहीं है.

उधर, तमाम ऐसे कर्मचारी संगठन वित्तीय बोझ के तर्क के सामने विधायकों की तनख्वाह बढ़ाई जाने और तमाम सरकार के फैसलों पर सवाल खड़े करते हुए इस तर्क को खारिज करते हैं. उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष विनोद कवि कहते हैं कि सरकार के पास यह बड़ा मौका है, जब सरकार कर्मचारियों को नियमित करते हुए प्रदेश में एक बेहतर संदेश दे सकती है और रोजगार देने के अपने वादे को निभा सकती है.

सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे उपनल कर्मी: उपनल कर्मचारी अपने नियमितीकरण को लेकर कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं. कुंदन कुमार बनाम उत्तराखंड सरकार याचिका पर पहली बार हाईकोर्ट ने उपनल कर्मचारियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था. साल 2018 में यह निर्णय आया और उपनल कर्मचारी के नियमित होने का रास्ता साफ हो गया.

हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि 1 साल के भीतर उपनल कर्मचारियों को नियमित करने की पॉलिसी लाई जाए और 6 महीने के भीतर इन्हें समान काम के बदले समान वेतन का लाभ दिया जाए, लेकिन सरकार ने इस फैसले को लागू करने के बजाय साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एलएलपी (SLP) लगाई.

जिस दौरान हाई कोर्ट ने निर्णय दिया, तब उत्तराखंड में उपनल कर्मचारी की संख्या करीब 18 हजार थी, जो अब बढ़कर करीब 22 हजार पहुंच गई है. हालांकि, उपनल कर्मी बता रहे हैं कि साल 2018 से अब तक 4 से 5 हजार ऐसे उपनल कर्मी भी हैं, जो पूर्व सैनिक होने के चलते सेवानिवृत हो चुके हैं.

अब सरकार रिव्यू पिटीशन की तैयारी में है और सुप्रीम कोर्ट यदि इस पिटीशन को स्वीकृत करता है तो यह मामला फिर से कुछ समय के लिए और खींच सकता है. उधर, सरकार भी चाहती है कि इस मामले में फिलहाल फैसले को रोक लिया जाए. ऐसे में आने वाले कुछ दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि उपनल कर्मचारियों का भविष्य क्या होगा.

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