इंदौर। इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज में मरीज की जान बचाने के लिए नॉरएड्रेनालाईन के इस्तेमाल के दौरान डॉक्टरों को शंका हुई कि मरीजों को ब्लड के मामले में दी जाने वाली दवाई कारगर नहीं है. इसके बाद एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने जब सरकारी प्रयोगशाला में इस दवाई को टेस्टिंग के लिए भेजा तो ये दवाई फेल हो गई. इसी तरह जीवनरक्षक दवाई के तौर पर अस्पतालों में भेजी जाने वाली हेपरिन एट्रोपिन डोपामिन नाइट्रोग्लिसरीन और फेंटेनल नामक दवाई भी घटिया क्वालिटी की पाई गई.
इंदौर मेडिकल कॉलेज ने लिखा पत्र
इंदौर मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विस कॉरपोरेशन लिमिटेड को पत्र लिखा. इसके बाद पब्लिक हेल्थ सर्विस कॉरपोरेशन की नींद खुली. आननफानन पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड की ओर से प्रदेश के सभी चिकित्सा संस्थानों अस्पतालों और सीएमएचओ और सिविल सर्जन को पत्र लिखकर जो दवाइयां के कुछ बैच को उपयोग प्रतिबंधित करने के निर्देश दिए गए हैं, वहीं कॉरपोरेशन अब अपनी ओर से भी सभी 9 दवाइयां के बैच की जांच कर रहा है.
टेस्टिंग में घटिया क्वालिटी की मिली दवाएं
बताया जा रहा है कि ये दवाइयां हिमाचल और गुजरात की दो फार्मा कंपनियों से खरीदी जा रही थीं, जिसे मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में एंटीबायोटिक और ब्लड प्रेशर की दवाइयां को इंजेक्शन के तौर पर उपयोग किया जा रहा था. इस मामले एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित का कहना है "कुछ दवाइयां घटिया क्वालिटी की पाए जाने के बाद कारपोरेशन को अवगत कराया गया था. इन दवाइयों की लैब में जांच की गई. जिसमें ये घटिया पाई गईं. इसलिए अस्पताल में इन दवाइयां का उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है." उन्होंने बताया कि अस्पताल में मरीजों के लिए अब विभिन्न ब्रांड की वैकल्पिक दवाइयां का आर्डर दिया है, जिससे कि उपचार के दौरान दवाइयां की कमी ना हो सके.