शिमला: हिमाचल विधानसभा के विंटर सेशन में तीसरे दिन सरकारी कर्मचारियों से जुड़े भर्ती और सेवा शर्तें विधेयक, 2024 को पारित किया गया. भाजपा विधायकों के विरोध के बीच ये विधेयक पारित हुआ. अब सरकारी कर्मचारियों को अनुबंध अवधि की सीनियोरिटी और इन्क्रीमेंट नहीं मिलेगी. बुधवार को सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सदन में इस बिल को पेश किया था. शुक्रवार को चर्चा के बाद इसे पारित किया गया. हालांकि भाजपा के विधायकों ने इस बिल का विरोध किया था, लेकिन सदन में सत्ता पक्ष का बहुमत होने के कारण बिल पारित हो गया. बड़ी बात है कि ये कानून 12 दिसंबर 2003 यानी बैक डेट से लागू माना जाएगा.
बिलासपुर सदर के भाजपा विधायक त्रिलोक जम्वाल ने बिल को कर्मचारियों के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा कि इस कानून से आने वाले समय में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी वित्तीय लाभ के लिए पात्र नहीं रह जाएंगे. जम्वाल ने कहा कि अनुबंध अवधि से जुड़े केस राज्य सरकार प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के बाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में हार गई तो उसने यानी कांग्रेस सरकार ने अब यह रास्ता रेट्रोस्पेक्टिव अपनाया है. जम्वाल का कहना था कि ये लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है. उन्होंने दावा किया कि यह कानून अदालत ने जरूर चैलेंज होगा और सरकार इसे डिफेंड भी नहीं कर पाएगी. एक तरह से यह कदम कानून की नजर में भी ठीक नहीं लग रहा.
पूर्व आईएएस अधिकारी और अब दूसरी बार चुनाव जीतकर आए भाजपा विधायक जेआर कटवाल ने कहा कि यदि सरकार ने यह फैसला लेना ही है, तो इसे रेट्रोस्पेक्टिव नहीं लेना चाहिए. कर्मचारियों की प्रमोशन और इंक्रीमेंट के लिए कई तरह की और प्रक्रियाएं भी हैं. कटवाल ने कहा कि राज्य की वित्तीय मजबूरी हो सकती है, लेकिन जो जनता नेताओं को वोट देती है, उनकी सरकार से अपेक्षा भी होती है. प्रदेश के विकास में कर्मचारियों का योगदान भी महत्वपूर्ण है. यह संवेदनशील मामला है, इसलिए इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.
वहीं, बिल का विरोध करते हुए भाजपा विधायक रणधीर शर्मा ने कहा कि अनुबंध कर्मचारी भी लोक सेवा आयोग और हमीरपुर कर्मचारी चयन आयोग से आते हैं. कर्मचारियों को कोर्ट से जो लाभ मिला है, इस बिल के जरिए सरकार उसे छीन रही है. यह बिल एक तरह से सरकार विरोधी चेहरा सामने लाता है. भाजपा विधायक हंसराज ने कहा कि पहले डिप्टी सीएम वादा करते थे कि नियुक्ति की तिथि से सीनियोरिटी का लाभ देंगे, लेकिन अब सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है. जिन कर्मचारियों ने ओल्ड पेंशन के मामले में चुनाव में कांग्रेस को मदद दी थी, अब सरकार ने उन्हीं कर्मचारियों को झटका दिया है.
बिल पर हुई चर्चा के जवाब में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि सरकार की समस्या यह है कि कर्मचारी कोर्ट में जाते हैं और रेगुलराइजेशन की मांग करते हैं. अदालत से भी ऐसे कई फैसले आए हैं, जिसमें अनुबंध नीति का कोई महत्व ही नहीं रह गया है. अब सरकार इस विधेयक के जरिए कानून में रह गई एक कमी को दूर कर रही है. इसमें यानी बिल में रेगुलर/कॉन्ट्रैक्ट लिख दिया गया था. इससे कोर्ट में जा रहे केस में सरकार हार रही थी. अब यदि इन फैसलों के कारण पिछली डेट से प्रमोशन करने लगेंगे, तो कई डिमोट हो जाएंगे. इस व्यवस्था को ठीक करने के लिए यह फैसला सरकार को करना पड़ा है.
नए कानून से जुड़े बिल में कुल 12 धाराएं हैं. इसमें राज्य सरकार ने प्रावधान किया है कि वर्ष 2003 से अब तक नियुक्त किए गए संविदा यानी अनुबंध कर्मचारियों पर नियमित नियुक्ति वाले प्रावधान लागू नहीं होंगे, न ही ये इन्हें क्लेम कर पाएंगे. नया कानून इस प्रावधान वाला है कि संविधान के अनुच्छेद 309 के अधीन सिर्फ रेगुलर कर्मचारी ही आते हैं और नॉन रेगुलर कर्मचारी पर ये सेवा शर्तें लागू नहीं होती. इसे 12 दिसंबर 2003 से ही लागू माना जाएगा. फिलहाल, इस विधेयक के पास होने से कर्मचारियों के कई वर्ग निराश हैं और विरोध भी कर रहे हैं. आने वाले समय में इस कानून के प्रभाव सामने आएंगे तो देखना होगा कि कर्मचारी राजनीति वाले इस प्रदेश में उपरोक्त कानून को लेकर क्या परिदृश्य बनता है.