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सौ साल में 100 करोड़ धार्मिक साहित्य की छपाई; बिना सहयोग के आगे बढ़ रहा गीता प्रेस, 200 करोड़ है टर्नओवर - GEETA PRESS GORAKHPUR

दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक पुस्तकें छापने वाले संस्थानों में शामिल है गीता प्रेस, विदेश भी भेजी जाती हैं किताबें.

गीता प्रेस लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है.
गीता प्रेस लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 24, 2025, 1:31 PM IST

गोरखपुर : 'हम धार्मिक पुस्तकों की एक ऐसी संस्था को स्थापित करेंगे जो बिना लाभ के संचालित होगी और धर्म प्रचार का बड़ा केंद्र बनेगी'. ये मानना था गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयन्दका का. उनकी इस सोच को आज भी यह संस्था साकार कर रही है. किसी से एक रुपये का भी सहयोग लिए बिना ये संस्था नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है. गीता प्रेस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक पुस्तकें छापने वाले संस्थानों में शामिल है.

यहां से 100 करोड़ धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है. गीता प्रेस की स्थापना के 100 साल पूरे हो चुके हैं. इसका सालाना टर्नओवर करीब 200 करोड़ रुपये है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सुझावों का आज भी गीता प्रेस में पूरी तरह अमल होता है. इतने वर्षों के कार्यकाल में संस्था को किसी बड़े संकट से नहीं जूझना पड़ा. यहां काम करने वाले कर्मियों का भी कोई विवाद सामने नहीं आया. संस्था को धार्मिक साहित्य का मंदिर भी कहा जाता है. जानिए स्थापना से लेकर अब तक के सफर के बारे में...

बिना किसी मदद के आगे बढ़ रहा गीता प्रेस का सफर. (Video Credit; ETV Bharat)

धार्मिक पुस्तकों की छपाई का बड़ा केंद्र है गीता प्रेस : गीता प्रेस हिंदू धर्म से जुड़ी सभी पुस्तकों के छपाई का बड़ा केंद्र है. कोलकाता में इसकी स्थापना की पटकथा लिखी गई थी. संस्थापक जयदयाल गोयन्दका के मन में भगवद गीता की छपाई के लिए प्रेस की स्थापना करने का विचार आया. वर्ष 1921 में कोलकाता में उन्होंने गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की. इसी के जरिए पुस्तकों का प्रकाशन होने लगा. वह सत्संग भी सुनाते थे. गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार और घनश्याम दास जालान भी सत्संग सुनने जाते थे.

घनश्याम दास जालान
घनश्याम दास जालान (Photo Credit; ETV Bharat)
हनुमान प्रसाद पोद्दार
हनुमान प्रसाद पोद्दार (Photo Credit; ETV Bharat)

गीता को बिना किसी त्रुटि के छापने की बात आई तो कोलकाता प्रेस के मालिक ने जयदयाल जी से एक दिन कह दिया कि, शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस लगवा लीजिए. इस पर घनश्याम दास जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार में इस पुनीत कार्य के लिए जयदयाल गोयन्दका से गोरखपुर चलने की बात कही. 23 अप्रैल 1923 को 10 रुपये के किराए के भवन में गीता प्रेस की स्थापना हुई. विस्तार देने का भी क्रम भी प्रारंभ हुआ.

कई भाषाओं में होती है किताबों की छपाई.
कई भाषाओं में होती है किताबों की छपाई. (Photo Credit; ETV Bharat)

15 भाषाओं में 1800 तरह की पुस्तकों की होती है छपाई : मौजूदा समय में गीता प्रेस में आधुनिक मशीनें हैं. 15 भाषाओं में 1800 तरह की पुस्तकें यहां छापी जाती हैं. प्रेस 2 लाख स्क्वायर फीट क्षेत्रफल का है. 550 कर्मचारियों का दल, प्रूफ्र रीडिंग से लेकर प्रिंटिंग, प्रशासन से लेकर सरकुलेशन, बाइंडिंग से लेकर बिजली की सप्लाई और मशीनों के रख-रखाव का काम देखता है. मौजूदा समय में जापानी मशीनों से किताबों की छपाई कराई जारी है. इनकी कीमत करोड़ों में है. प्रेस को ईश्वर की कृपा और समाजसेवा की भावना से एक ट्रस्ट के जरिए संचालित किया जा रहा है.

ट्रस्ट में 21 लोग शामिल हैं. गीता प्रेस के विस्तार और संचालन में जिस भी तरह की भी आवश्यकता होती है ट्रस्ट के सदस्य उसे पूरा करते हैं. ट्रस्ट के सदस्य इससे एक रुपये का लाभ भी नहीं लेते. इसके द्वारा संचालित अन्य प्रकल्पों में गीता वस्त्र विभाग, आयुर्वेदिक दवाओं का उत्पादन भी शामिल है.

प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका.
प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका. (Photo Credit; ETV Bharat)

अब जानिए कौन थे जयदयाल गोयन्दका : गीता प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल कहते हैं कि जयदयाल गोयन्दका ने गोरखपुर के दो साथियों के साथ मिलकर संस्था की नींव रखी. जयदयाल जी का जन्म 1885 में राजस्थान के चुरू में हुआ था. वह 13 वर्ष की अवस्था में ही नाथ संप्रदाय के संत मंगलनाथ के संपर्क में आ गए. उनके त्याग और वैराग्य ने उन पर गहरी छाप पड़ी. इसके बाद 18 वर्ष की उम्र में वह व्यापार के लिए बांकुड़ा (बंगाल) गए. कुछ वर्षों तक व्यापार करने के बाद सब कुछ घर वालों पर छोड़कर वह श्रीमद् भागवत गीता के प्रचार में लग गए.

वह 22 वर्ष की उम्र में ही सत्संग और व्याख्यान देने लगे. ट्रस्टी देवी दयाल का कहना है कि जो संस्थाएं दान आधारित होती हैं वे वह बहुत समय तक नहीं चलती. गोयन्दका जी की इसी नीति पर गीता प्रेस प्रबंधन चला. इसके बलबूते प्रेस के अलावा इसका वस्त्र विभाग भी संचालित हुआ. चिकित्सा केंद्र भी है. यह 1923 में ही स्थापित हुआ था. इसकी शाखा गोरखपुर, कोलकाता, चुरू और स्वर्गाश्रम ऋषिकेश में संचालित होती है. इसकी 20 ब्रांच पूरे देश में काम करती है. महाकुंभ में भी गीता प्रेस ने करीब दो करोड़ रुपए की लागत की किताबों को बिक्री का काम किया.

लीला चित्र गैलरी खींचती है लोगों का ध्यान.
लीला चित्र गैलरी खींचती है लोगों का ध्यान. (Photo Credit; ETV Bharat)

लीला चित्र गैलरी खींचती है लोगों का ध्यान : ट्रस्ट के बोर्ड मेंबर अजय प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि गीता प्रेस परिसर में भगवान राम और कृष्ण की लीलाओं से लेकर उनके जन्म, महाभारत और लंका विजय से जुड़ी लीला चित्र गैलरी है. यह सभी को आकर्षित करती है. इन चित्रों को फूलों के रंग से बनाया गया है. यह पूरी तरह प्राकृतिक है. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1955 में इसका लोकार्पण किया था. शताब्दी समारोह के उद्घाटन अवसर पर वर्ष 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इसका दर्शन कर चुके हैं.

समापन अवसर पर आए पीएम मोदी भी यहां की चित्रकारी देखकर मोहित हो गए. ट्रस्ट गीता वस्त्र विभाग और आयुर्वेदिक दवाओं के क्षेत्र में भी कार्य करता है. निशुल्क परामर्श और दवाओं का वितरण किया जाता है. इससे जो भी लाभ प्राप्त होता है वह गीता प्रेस के उत्थान में खर्च किया जाता है.

कई भाषाओं में छपती हैं किताबें.
कई भाषाओं में छपती हैं किताबें. (Photo Credit; ETV Bharat)

इन 15 भाषाओं में होता है गीता का प्रकाशन : हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, तेलुगू, बांग्ला, मराठी, असमिया, तमिल, नेपाली, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, उड़िया, पंजाबी और उर्दू में गीता का प्रकाशन किया जाता है. इसके अलावा गीता अंग्रेजी में भी उपलब्ध है.

ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं गीता प्रेस की किताबें.
ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं गीता प्रेस की किताबें. (Photo Credit; ETV Bharat)

ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं गीता प्रेस की किताबें : गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी कहते हैं कि स्थापना से अब तक 100 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन करके गीता प्रेस प्रबंधन उत्साहित है. हालांकि जितनी डिमांड है हर साल उतनी पुस्तकों की छपाई नहीं हो पाती है. पिछले वर्ष तीन करोड़ पुस्तकों की छपाई हुई थी. गीता प्रेस की किताबें ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं. वेबसाइट पर भी ये अपलोड की जा चुकी हैं. उन्होंने कहा कि आज के दौर की छपाई बहुत ही खूबसूरत है. सबसे पहले 24 सितंबर 1923 को हैंड प्रेस प्रिंटिंग मशीन स्थापित हुई थी.

उस दौरान उसे 600 रुपये में खरीदा गया था. 22 अक्टूबर 1923 को बेहतर छपाई के लिए ट्रेडिल मशीन भी 2 हजार में खरीदी गई थी. शुरू से अच्छी गुणवत्ता की छपाई हो इसको लेकर सेठ जयदयाल गोयन्दका का पूरा ध्यान था. इसलिए वह लगातार मशीनों को लेकर सतर्क थे.

कई तरह की किताबें गीता प्रेस में छपती हैं.
कई तरह की किताबें गीता प्रेस में छपती हैं. (Photo Credit; ETV Bharat)

विदेश में भी होती है पुस्तकों की सप्लाई : 20 जनवरी 1924 को उन्होंने करीब 7 हजार रुपये की बड़ी रॉयल पैनबेल्ट मशीन लगाई. शुरुआती दौर में जिस किराए के मकान में गीता प्रेस शुरू हुआ था वह बहुत छोटा था. इसके बाद शेषपुर मोहल्ले में 12 जुलाई 1926 इसके लिए 10000 में जो भवन खरीदा गया, उसका धीरे-धीरे विस्तार होता गया. गीता प्रेस गीता के अलावा रामचरित मानस, कल्याण पत्रिका समेत अन्य पुस्तकों की छपाई का बड़ा केंद्र है. यहां से विदेश भी पुस्तकों की सप्लाई होती है.

प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका.
प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका. (Photo Credit; ETV Bharat)

प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका : उन्होंने बताया कि जयदयाल गोयन्दका द्वारा लिखित और उनके प्रवचनों पर भी आधारित करीब 115 पुस्तकें हैं. उनके द्वारा टीकाकृत गीता तत्वविवेचनी, उनकी सर्वाधिक प्रिय और प्रतिनिधि रचना है. यह हिंदी के अलावा बांग्ला, उड़िया कन्नड़, तमिल, तेलुगू, गुजराती, अंग्रेजी और मराठी भाषा में भी प्रकाशित हो चुकी है. गोयन्दका प्रचार से कोसों दूर रहते थे. उनका महिलाओं के लिए सख्त निर्देश था कि वह उनके सत्संग में अकेली न आएं. वह अपने परिवार या पुरुषों के साथ ही आएं. जयदयाल गोयन्दका सन 1965 में ऋषिकेश में ब्रह्मलीन हो गए थे.

आयुर्वेदिक औषधालय संचालित करता है गीता प्रेस.
आयुर्वेदिक औषधालय संचालित करता है गीता प्रेस. (Photo Credit; ETV Bharat)

लालमणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस प्रबंधन शुद्ध आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में भी वर्षों से कार्यरत है. निशुल्क आयुर्वेदिक औषधालय संचालित किया जाता है. स्वर्गाश्रम ऋषिकेश, गोरखपुर, चुरू, कोलकाता और सूरत में निशुल्क औषधि वितरण भी किया जाता है. पहले कोलकाता में भी औषधी का निर्माण होता था लेकिन अब वह बंद हो चुका है.

गीता प्रेस ट्रस्ट की तरफ से स्वर्गाश्रम ऋषिकेश में गीता भवन की स्थापना हुई है. इसमें कुल एक हजार से अधिक कमरे हैं. यहां निशुल्क रहने की व्यवस्था होती है. जो भी श्रद्धालु वहां रुकते हैं, वह सत्संग और भगवत चिंतन करते हैं. कहा जाता है कि वहां एक वट वृक्ष वाले स्थान पर स्वामी रामतीर्थ ने भी तपस्या की थी.

गीता प्रेस गोविंद भवन का हिस्सा : गीता प्रेस प्रबंधक लालमणि तिवारी बताते हैं कि गीता प्रेस अपनी धार्मिक पुस्तकों के अलावा कल्याण मासिक पत्रिका भी छापता है. इसका प्रकाशन वर्ष 1926 से होता चला रहा है. मौजूदा समय में इसके अंक पर्यावरण पर केंद्रित है. इसके शुरुआती अंकों की लगभग एक वर्ष तक छपाई श्री वेंकटेश्वर मुद्रणालय मुंबई से हुई थी. बाद में इसकी भी छपाई गोरखपुर से ही होने लगी थी. गीता प्रेस गोविंद भवन का हिस्सा है जो आज कोलकाता में महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित है. गीता के अंदर जो भी चित्र प्रकाशित होता है वह उनके लीला चित्र मंदिर से ही लिया गया होता है.

उन्होंने बताया कि गीता प्रेस की स्थापना से पहले भी बाजार में रामचरित मानस समेत कई सनातन धर्म की पुस्तकें थीं, लेकिन उनका मूल्य ज्यादा था. उनकी छपाई और बाइंडिंग भी उतनी अच्छी नहीं थी. पाठ की शुद्धता पर बड़ा सवाल होता था. सनातन की तमाम पुस्तकें संस्कृत में हैं. महाभारत का मूल सहित हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध नहीं था. कई पुराण भी हिंदी में उपलब्ध नहीं थे. गीता प्रेस ने इन सभी पुस्तकों को हिंदी अनुवाद करके सस्ते दामों में सभी को उपलब्ध कराया. नेपाल जैसे हिंदू राष्ट्र में भी वहां की राजधानी काठमांडू में गीता प्रेस का बड़ा केंद्र काम करता है.

रोजाना होती है 70 हजार से अधिक पुस्तकों की छपाई : उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में गीता प्रेस में जो मशीन लगाई गई थी, उसमें तीन कुशल व्यक्ति 1 घंटे में बड़ी मुश्किल से 100 पेज छाप पाते थे. लोगों की डिमांड बढ़ रही थी. समय के साथ इसका विस्तार होना भी आवश्यक था. ऐसे में गोयन्दका जी और हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा लिखी पुस्तक गीता हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित होने लगी. रामचरित मानस भी छपने लगी. मौजूदा समय में प्रतिदिन यहां 70 हजार से अधिक पुस्तकों की छपाई होती है.

कई दुर्लभ पांडुलिपि भी गीता प्रेस में मौजूद.
कई दुर्लभ पांडुलिपि भी गीता प्रेस में मौजूद. (Photo Credit; ETV Bharat)

अब तक 420 मिलियन गीता और 70 मिलियन से अधिक रामचरित मानस का यहां प्रकाशन हो चुका है. प्रतिदिन 600 टन से अधिक पेपर छपाई में प्रयोग किया जाता है. किताबों की मांग को देखते हुए ट्रस्ट गीडा में जमीन देख रहा है. वहां आधुनिक मशीनें लगाकर किताबों की छपाई कराई जाएगी.

गौतम अडानी भी गीता प्रेस से जुड़ेंगे : गीता प्रेस की किताबें ई-बुक फॉर्मेट में उपलब्ध हैं. स्मार्टफोन, टैबलेट और कंप्यूटर पर भी इन्हें आसानी से पढ़ा जा सकता है. देश के जाने-माने बिजनेसमैन गौतम अडानी भी गीता प्रेस प्रबंधन से जुड़ने के प्रति अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं. वह इसके लिए कभी भी गोरखपुर आ सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी, सीएम योगी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, शंकराचार्य ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज, पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य स्वामीश्री विधुशेखर भारती, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी समेत अनेक हस्तियों का आगमन गीता प्रेस में हो चुका है. पड़ोसी देश नेपाल के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटक भी गीता प्रेस भ्रमण करने के लिए पहुंचते हैं.

यह भी पढ़ें : फिल्मों और सीरियलों में भी दिखती है गीता प्रेस की चित्रकारी, रामानंद सागर, पृथ्वी राजकपूर रहे हैं इसके मुरीद

गोरखपुर : 'हम धार्मिक पुस्तकों की एक ऐसी संस्था को स्थापित करेंगे जो बिना लाभ के संचालित होगी और धर्म प्रचार का बड़ा केंद्र बनेगी'. ये मानना था गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयन्दका का. उनकी इस सोच को आज भी यह संस्था साकार कर रही है. किसी से एक रुपये का भी सहयोग लिए बिना ये संस्था नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है. गीता प्रेस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक पुस्तकें छापने वाले संस्थानों में शामिल है.

यहां से 100 करोड़ धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है. गीता प्रेस की स्थापना के 100 साल पूरे हो चुके हैं. इसका सालाना टर्नओवर करीब 200 करोड़ रुपये है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सुझावों का आज भी गीता प्रेस में पूरी तरह अमल होता है. इतने वर्षों के कार्यकाल में संस्था को किसी बड़े संकट से नहीं जूझना पड़ा. यहां काम करने वाले कर्मियों का भी कोई विवाद सामने नहीं आया. संस्था को धार्मिक साहित्य का मंदिर भी कहा जाता है. जानिए स्थापना से लेकर अब तक के सफर के बारे में...

बिना किसी मदद के आगे बढ़ रहा गीता प्रेस का सफर. (Video Credit; ETV Bharat)

धार्मिक पुस्तकों की छपाई का बड़ा केंद्र है गीता प्रेस : गीता प्रेस हिंदू धर्म से जुड़ी सभी पुस्तकों के छपाई का बड़ा केंद्र है. कोलकाता में इसकी स्थापना की पटकथा लिखी गई थी. संस्थापक जयदयाल गोयन्दका के मन में भगवद गीता की छपाई के लिए प्रेस की स्थापना करने का विचार आया. वर्ष 1921 में कोलकाता में उन्होंने गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की. इसी के जरिए पुस्तकों का प्रकाशन होने लगा. वह सत्संग भी सुनाते थे. गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार और घनश्याम दास जालान भी सत्संग सुनने जाते थे.

घनश्याम दास जालान
घनश्याम दास जालान (Photo Credit; ETV Bharat)
हनुमान प्रसाद पोद्दार
हनुमान प्रसाद पोद्दार (Photo Credit; ETV Bharat)

गीता को बिना किसी त्रुटि के छापने की बात आई तो कोलकाता प्रेस के मालिक ने जयदयाल जी से एक दिन कह दिया कि, शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस लगवा लीजिए. इस पर घनश्याम दास जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार में इस पुनीत कार्य के लिए जयदयाल गोयन्दका से गोरखपुर चलने की बात कही. 23 अप्रैल 1923 को 10 रुपये के किराए के भवन में गीता प्रेस की स्थापना हुई. विस्तार देने का भी क्रम भी प्रारंभ हुआ.

कई भाषाओं में होती है किताबों की छपाई.
कई भाषाओं में होती है किताबों की छपाई. (Photo Credit; ETV Bharat)

15 भाषाओं में 1800 तरह की पुस्तकों की होती है छपाई : मौजूदा समय में गीता प्रेस में आधुनिक मशीनें हैं. 15 भाषाओं में 1800 तरह की पुस्तकें यहां छापी जाती हैं. प्रेस 2 लाख स्क्वायर फीट क्षेत्रफल का है. 550 कर्मचारियों का दल, प्रूफ्र रीडिंग से लेकर प्रिंटिंग, प्रशासन से लेकर सरकुलेशन, बाइंडिंग से लेकर बिजली की सप्लाई और मशीनों के रख-रखाव का काम देखता है. मौजूदा समय में जापानी मशीनों से किताबों की छपाई कराई जारी है. इनकी कीमत करोड़ों में है. प्रेस को ईश्वर की कृपा और समाजसेवा की भावना से एक ट्रस्ट के जरिए संचालित किया जा रहा है.

ट्रस्ट में 21 लोग शामिल हैं. गीता प्रेस के विस्तार और संचालन में जिस भी तरह की भी आवश्यकता होती है ट्रस्ट के सदस्य उसे पूरा करते हैं. ट्रस्ट के सदस्य इससे एक रुपये का लाभ भी नहीं लेते. इसके द्वारा संचालित अन्य प्रकल्पों में गीता वस्त्र विभाग, आयुर्वेदिक दवाओं का उत्पादन भी शामिल है.

प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका.
प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका. (Photo Credit; ETV Bharat)

अब जानिए कौन थे जयदयाल गोयन्दका : गीता प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल कहते हैं कि जयदयाल गोयन्दका ने गोरखपुर के दो साथियों के साथ मिलकर संस्था की नींव रखी. जयदयाल जी का जन्म 1885 में राजस्थान के चुरू में हुआ था. वह 13 वर्ष की अवस्था में ही नाथ संप्रदाय के संत मंगलनाथ के संपर्क में आ गए. उनके त्याग और वैराग्य ने उन पर गहरी छाप पड़ी. इसके बाद 18 वर्ष की उम्र में वह व्यापार के लिए बांकुड़ा (बंगाल) गए. कुछ वर्षों तक व्यापार करने के बाद सब कुछ घर वालों पर छोड़कर वह श्रीमद् भागवत गीता के प्रचार में लग गए.

वह 22 वर्ष की उम्र में ही सत्संग और व्याख्यान देने लगे. ट्रस्टी देवी दयाल का कहना है कि जो संस्थाएं दान आधारित होती हैं वे वह बहुत समय तक नहीं चलती. गोयन्दका जी की इसी नीति पर गीता प्रेस प्रबंधन चला. इसके बलबूते प्रेस के अलावा इसका वस्त्र विभाग भी संचालित हुआ. चिकित्सा केंद्र भी है. यह 1923 में ही स्थापित हुआ था. इसकी शाखा गोरखपुर, कोलकाता, चुरू और स्वर्गाश्रम ऋषिकेश में संचालित होती है. इसकी 20 ब्रांच पूरे देश में काम करती है. महाकुंभ में भी गीता प्रेस ने करीब दो करोड़ रुपए की लागत की किताबों को बिक्री का काम किया.

लीला चित्र गैलरी खींचती है लोगों का ध्यान.
लीला चित्र गैलरी खींचती है लोगों का ध्यान. (Photo Credit; ETV Bharat)

लीला चित्र गैलरी खींचती है लोगों का ध्यान : ट्रस्ट के बोर्ड मेंबर अजय प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि गीता प्रेस परिसर में भगवान राम और कृष्ण की लीलाओं से लेकर उनके जन्म, महाभारत और लंका विजय से जुड़ी लीला चित्र गैलरी है. यह सभी को आकर्षित करती है. इन चित्रों को फूलों के रंग से बनाया गया है. यह पूरी तरह प्राकृतिक है. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1955 में इसका लोकार्पण किया था. शताब्दी समारोह के उद्घाटन अवसर पर वर्ष 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इसका दर्शन कर चुके हैं.

समापन अवसर पर आए पीएम मोदी भी यहां की चित्रकारी देखकर मोहित हो गए. ट्रस्ट गीता वस्त्र विभाग और आयुर्वेदिक दवाओं के क्षेत्र में भी कार्य करता है. निशुल्क परामर्श और दवाओं का वितरण किया जाता है. इससे जो भी लाभ प्राप्त होता है वह गीता प्रेस के उत्थान में खर्च किया जाता है.

कई भाषाओं में छपती हैं किताबें.
कई भाषाओं में छपती हैं किताबें. (Photo Credit; ETV Bharat)

इन 15 भाषाओं में होता है गीता का प्रकाशन : हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, तेलुगू, बांग्ला, मराठी, असमिया, तमिल, नेपाली, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, उड़िया, पंजाबी और उर्दू में गीता का प्रकाशन किया जाता है. इसके अलावा गीता अंग्रेजी में भी उपलब्ध है.

ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं गीता प्रेस की किताबें.
ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं गीता प्रेस की किताबें. (Photo Credit; ETV Bharat)

ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं गीता प्रेस की किताबें : गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी कहते हैं कि स्थापना से अब तक 100 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन करके गीता प्रेस प्रबंधन उत्साहित है. हालांकि जितनी डिमांड है हर साल उतनी पुस्तकों की छपाई नहीं हो पाती है. पिछले वर्ष तीन करोड़ पुस्तकों की छपाई हुई थी. गीता प्रेस की किताबें ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं. वेबसाइट पर भी ये अपलोड की जा चुकी हैं. उन्होंने कहा कि आज के दौर की छपाई बहुत ही खूबसूरत है. सबसे पहले 24 सितंबर 1923 को हैंड प्रेस प्रिंटिंग मशीन स्थापित हुई थी.

उस दौरान उसे 600 रुपये में खरीदा गया था. 22 अक्टूबर 1923 को बेहतर छपाई के लिए ट्रेडिल मशीन भी 2 हजार में खरीदी गई थी. शुरू से अच्छी गुणवत्ता की छपाई हो इसको लेकर सेठ जयदयाल गोयन्दका का पूरा ध्यान था. इसलिए वह लगातार मशीनों को लेकर सतर्क थे.

कई तरह की किताबें गीता प्रेस में छपती हैं.
कई तरह की किताबें गीता प्रेस में छपती हैं. (Photo Credit; ETV Bharat)

विदेश में भी होती है पुस्तकों की सप्लाई : 20 जनवरी 1924 को उन्होंने करीब 7 हजार रुपये की बड़ी रॉयल पैनबेल्ट मशीन लगाई. शुरुआती दौर में जिस किराए के मकान में गीता प्रेस शुरू हुआ था वह बहुत छोटा था. इसके बाद शेषपुर मोहल्ले में 12 जुलाई 1926 इसके लिए 10000 में जो भवन खरीदा गया, उसका धीरे-धीरे विस्तार होता गया. गीता प्रेस गीता के अलावा रामचरित मानस, कल्याण पत्रिका समेत अन्य पुस्तकों की छपाई का बड़ा केंद्र है. यहां से विदेश भी पुस्तकों की सप्लाई होती है.

प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका.
प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका. (Photo Credit; ETV Bharat)

प्रचार से दूर रहते थे जयदयाल गोयन्दका : उन्होंने बताया कि जयदयाल गोयन्दका द्वारा लिखित और उनके प्रवचनों पर भी आधारित करीब 115 पुस्तकें हैं. उनके द्वारा टीकाकृत गीता तत्वविवेचनी, उनकी सर्वाधिक प्रिय और प्रतिनिधि रचना है. यह हिंदी के अलावा बांग्ला, उड़िया कन्नड़, तमिल, तेलुगू, गुजराती, अंग्रेजी और मराठी भाषा में भी प्रकाशित हो चुकी है. गोयन्दका प्रचार से कोसों दूर रहते थे. उनका महिलाओं के लिए सख्त निर्देश था कि वह उनके सत्संग में अकेली न आएं. वह अपने परिवार या पुरुषों के साथ ही आएं. जयदयाल गोयन्दका सन 1965 में ऋषिकेश में ब्रह्मलीन हो गए थे.

आयुर्वेदिक औषधालय संचालित करता है गीता प्रेस.
आयुर्वेदिक औषधालय संचालित करता है गीता प्रेस. (Photo Credit; ETV Bharat)

लालमणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस प्रबंधन शुद्ध आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में भी वर्षों से कार्यरत है. निशुल्क आयुर्वेदिक औषधालय संचालित किया जाता है. स्वर्गाश्रम ऋषिकेश, गोरखपुर, चुरू, कोलकाता और सूरत में निशुल्क औषधि वितरण भी किया जाता है. पहले कोलकाता में भी औषधी का निर्माण होता था लेकिन अब वह बंद हो चुका है.

गीता प्रेस ट्रस्ट की तरफ से स्वर्गाश्रम ऋषिकेश में गीता भवन की स्थापना हुई है. इसमें कुल एक हजार से अधिक कमरे हैं. यहां निशुल्क रहने की व्यवस्था होती है. जो भी श्रद्धालु वहां रुकते हैं, वह सत्संग और भगवत चिंतन करते हैं. कहा जाता है कि वहां एक वट वृक्ष वाले स्थान पर स्वामी रामतीर्थ ने भी तपस्या की थी.

गीता प्रेस गोविंद भवन का हिस्सा : गीता प्रेस प्रबंधक लालमणि तिवारी बताते हैं कि गीता प्रेस अपनी धार्मिक पुस्तकों के अलावा कल्याण मासिक पत्रिका भी छापता है. इसका प्रकाशन वर्ष 1926 से होता चला रहा है. मौजूदा समय में इसके अंक पर्यावरण पर केंद्रित है. इसके शुरुआती अंकों की लगभग एक वर्ष तक छपाई श्री वेंकटेश्वर मुद्रणालय मुंबई से हुई थी. बाद में इसकी भी छपाई गोरखपुर से ही होने लगी थी. गीता प्रेस गोविंद भवन का हिस्सा है जो आज कोलकाता में महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित है. गीता के अंदर जो भी चित्र प्रकाशित होता है वह उनके लीला चित्र मंदिर से ही लिया गया होता है.

उन्होंने बताया कि गीता प्रेस की स्थापना से पहले भी बाजार में रामचरित मानस समेत कई सनातन धर्म की पुस्तकें थीं, लेकिन उनका मूल्य ज्यादा था. उनकी छपाई और बाइंडिंग भी उतनी अच्छी नहीं थी. पाठ की शुद्धता पर बड़ा सवाल होता था. सनातन की तमाम पुस्तकें संस्कृत में हैं. महाभारत का मूल सहित हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध नहीं था. कई पुराण भी हिंदी में उपलब्ध नहीं थे. गीता प्रेस ने इन सभी पुस्तकों को हिंदी अनुवाद करके सस्ते दामों में सभी को उपलब्ध कराया. नेपाल जैसे हिंदू राष्ट्र में भी वहां की राजधानी काठमांडू में गीता प्रेस का बड़ा केंद्र काम करता है.

रोजाना होती है 70 हजार से अधिक पुस्तकों की छपाई : उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में गीता प्रेस में जो मशीन लगाई गई थी, उसमें तीन कुशल व्यक्ति 1 घंटे में बड़ी मुश्किल से 100 पेज छाप पाते थे. लोगों की डिमांड बढ़ रही थी. समय के साथ इसका विस्तार होना भी आवश्यक था. ऐसे में गोयन्दका जी और हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा लिखी पुस्तक गीता हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित होने लगी. रामचरित मानस भी छपने लगी. मौजूदा समय में प्रतिदिन यहां 70 हजार से अधिक पुस्तकों की छपाई होती है.

कई दुर्लभ पांडुलिपि भी गीता प्रेस में मौजूद.
कई दुर्लभ पांडुलिपि भी गीता प्रेस में मौजूद. (Photo Credit; ETV Bharat)

अब तक 420 मिलियन गीता और 70 मिलियन से अधिक रामचरित मानस का यहां प्रकाशन हो चुका है. प्रतिदिन 600 टन से अधिक पेपर छपाई में प्रयोग किया जाता है. किताबों की मांग को देखते हुए ट्रस्ट गीडा में जमीन देख रहा है. वहां आधुनिक मशीनें लगाकर किताबों की छपाई कराई जाएगी.

गौतम अडानी भी गीता प्रेस से जुड़ेंगे : गीता प्रेस की किताबें ई-बुक फॉर्मेट में उपलब्ध हैं. स्मार्टफोन, टैबलेट और कंप्यूटर पर भी इन्हें आसानी से पढ़ा जा सकता है. देश के जाने-माने बिजनेसमैन गौतम अडानी भी गीता प्रेस प्रबंधन से जुड़ने के प्रति अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं. वह इसके लिए कभी भी गोरखपुर आ सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी, सीएम योगी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, शंकराचार्य ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज, पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य स्वामीश्री विधुशेखर भारती, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी समेत अनेक हस्तियों का आगमन गीता प्रेस में हो चुका है. पड़ोसी देश नेपाल के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटक भी गीता प्रेस भ्रमण करने के लिए पहुंचते हैं.

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