सिरमौर : हिमाचल प्रदेश में जिमीकंद की नई वैरायटी अब किसानों को मालामाल कर सकती है. पहले जहां 2 से 3 वर्षों में जिमीकंद की फसल तैयार होती थी. तो वहीं अब यह फसल किसान अपने खेतों में चंद महीनों में ही तैयार कर सकते हैं. भले ही यह फसल एक है, लेकिन इसके फायदे अनेक है और किसान इससे अपनी आमदनी को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं. बड़ी बात यह है कि इस फसल को बंदर आदि भी नुकसान नहीं पहुंचाते.
दरअसल जिमीकंद एक बहुवर्षीय भूमिगत सब्जी के लिए जाना जाता है. सिरमौर जिला के नाहन, पांवटा साहिब, संगड़ाह आदि क्षेत्रों में इसे अधिकतर उगाया जाता है. अमूमन जिमीकंद प्रायः 2 से 3 वर्ष में तैयार होता है, जो बाजार में अच्छे दामों में बिकता भी है. इसी बीच अब किसान इसे प्राकृतिक खेती के तहत भी उगा रहे हैं. कृषि विभाग के अंतर्गत आतमा परियोजना द्वारा गजेंद्र नामक जिमीकंद वैरायटी के बीज को उगाकर किसान इससे अच्छी खासी आदमी कमा सकते हैं. यह जिमीकंद 5 से 6 महीने में तैयार हो जाता है और पुराने जिमीकंद के मुकाबले लोगों के इसके अधिक दाम मिलेते हैं.
विकास खंड नाहन के भेड़ीवाला गांव में सोमीनाथ नाम के किसान ने इस नई वैरायटी के जिमीकंद को अपने खेतों में लगाया है. जून में लगाया गया ये जिमीकंद बड़े अच्छे से विकसित भी हो रहा है और आत्मा परियोजना के अधिकारी इस खेती का निरीक्षण भी कर रहे हैं. भेड़ीवाला के किसान सोमीनाथ ने बताया कि, 'इस बार वो प्राकृतिक खेती के तहत जिमीकंद की खेती कर रहे हैं और अच्छी फसल भी हो रही है. प्राकृतिक खेती में वो लोग इसमें जीवामृत इत्यादि का प्रयोग कर रहे हैं. उम्मीद है कि इससे अच्छी आमदनी होगी.'
वहीं, महिला किसान रीता ने बताया कि, 'आतमा परियोजना के तहत इस बार वह प्राकृतिक खेती के अंतर्गत जिमीकंद लगा रहे हैं और इसमें कोई रासायनिक खाद नहीं बल्कि जीवामृत और खट्टी लस्सी को कीट रोधक के रूप में प्रयोग कर रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि फसल अच्छी होगी और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी.'
उधर आत्मा परियोजना सिरमौर के परियोजना निदेशक डॉ. साहब सिंह ने बताया कि जिमीकंद सिरमौर के किसानों की आर्थिकी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. लिहाजा अब गजेंद्र वैरायटी के जिमीकंद के बीज को यहां के किसानों को दिया गया है, ताकि वह इसको लगाकर अच्छी आमदनी कमा सकें. उन्होंने बताया कि पुराने जिमीकंद बीज से फसल 2 से 3 वर्ष में तैयार होती थी, लेकिन यह जिमीकंद लगभग 6 महीने में तैयार हो जाता है. मार्किट में दाम भी अच्छे मिलते हैं। इसके वैल्यू एडिशन भी किया जा सकता है और इसके पत्तों, डंठल इत्यादि से कई उत्पाद बनाए जा सकते हैं। जल्द ही इसके लिए भी इन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा।
दूसरी तरफ आतमा परियोजना सिरमौर की संयुक्त परियोजना निदेशक तनुजा ने बताया कि विभाग ने भेड़ीवाला गांव में किसान सोमीनाथ को 2 क्विंटल जिमीकंद का बीज उपलब्ध करवाया था, जो बिलासपुर से मंगवाया गया था. उन्होंने बताया कि इस बीज का सबसे बड़ी खासियत यह है कि जहां पुराना बीज तैयार होने में करीब 3 साल लेता था, वहीं गजेंद्र नामक वैरायटी का यह बीज एक ही सीजन में तैयार हो जाता है. मई-जून में लगाएंगे, तो यह अक्टूबर व नवम्बर तक निकल जाएगा. उन्होंने बताया कि जिमीकंद की हमारे शरीर के लिए न्यूट्रिशन वैल्यू भी है. इसमें 5 प्रतिशत प्रोटीन, विटामिन सी, बी 6 होता है. इसके साथ-साथ पोटेशियम और मैग्नीशियम भी होता है, जो हमारे पाचन के लिए भी काफी अच्छे होते हैं. साथ ही बैड कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है. इसके पत्तों से पतोड़े, डंठल से बड़ियां भी बनाई जा सकती हैं. इसके अलावा जिमीकंद निकलने पर इसके लड्डू भी तैयार किए जा सकते हैं. मार्केट में जिमीकंद के दाम 100 से 120 रुपए किलो तक मिल जाते हैं. इससे किसानों को भी लाभ होता है. नाहन, पांवटा साहिब और संगड़ाह आदि वैली में यह जिमीकंद लगाया जा सकता है. बड़ी बात यह है कि बंदर और लावारिस पशु भी इस फसल से दूर रहते हैं और किसी तरह का नुकसान नहीं पहुुंचाते. इससे किसान अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.'
बता दें कि सिरमौर जिला में जिमीकंद बहुत मात्रा में पैदा होता है, लेकिन अब इस नई किस्म और प्राकृतिक खेती से तैयार होने वाले जिमीकंद से किसानों की जहां और अधिक आमदनी बढ़ सकेगी, तो वहीं उनकी आर्थिकी भी सुदृढ़ होगी.