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स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन सोमटिया का 102 वर्ष की उम्र में निधन, 15 की उम्र में देखा था आजादी का ख्वाब

स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन सोमटिया का 102 वर्ष की आयु में राजसमंद में निधन हो गया. जानिए उनके बारे में...

स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन सोमटिया
स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन सोमटिया (ETV Bharat (File Photo))
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 10, 2024, 1:28 PM IST

Updated : Nov 10, 2024, 5:14 PM IST

राजसमंद : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मेवाड़ प्रजामंडल के योद्धा स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन सोमटिया का रविवार सुबह निधन हो गया. सुबह करीब 7:15 बजे 102 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. इस दौरान उनका पूरा परिवार उनके साथ था. सोमटिया लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पिछले दो हफ्तों से श्री गोवर्धन राजकीय जिला चिकित्सालय में भर्ती थे. उन्हें दिल की बीमारी थी व सांस लेने में तकलीफ हो रही थी.

मदनमोहन सोमटिया का जन्म 14 सितम्बर 1922 को मध्यम परिवार के रामकृष्ण जाट और नानकी बाई के घर में हुआ. सोमटिया 11 भाई बहनों में सबसे छोटे थे. उनके दो बड़े भाई नरेंद्रपाल चौधरी और राजेन्द्र सिंह चौधरी भी स्वतंत्रता सेनानी थे. सोमटिया के पुत्र योगेश कुमार चौधरी ने बताया कि उनके पिता आजादी की लड़ाई में कई बार जेल गए थे. अप्रैल 1938 में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना हुई थी. उस वक्त उनकी उम्र करीब 15 वर्ष थी, लेकिन आजादी की ऐसी दीवानगी थी कि वे अपने बड़े भाइयों के साथ इस संग्राम का हिस्सा बन गए. फिर कई बार ब्रिटिश शासन की ओर से प्रताड़ित किए गए, गिरफ्तार किए गए और जेल भेजे गए, लेकिन कभी उनके इरादों में कमी नहीं आई.

पढ़ें. नहीं रहीं सूरसागर की पूर्व विधायक सूर्यकांता व्यास, पीएम मोदी ने भी किया 'जीजी' को याद

उन्होंने बताया कि छात्र जीवन में ही मेवाड़ प्रजामंडल से जुड़ना और लोगों को जागृत करने के लिए रैलियां-जुलूस निकालना, सभाओं में भाग लेना, स्वयं सेवक के रूप में कार्य करना और पत्र संदेश एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाना उनकी दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था. उन्होंने बताया कि 1938 से 1942 तक वे कई बार पकड़े गए, लेकिन हर बार उन्हें बालक समझ कर छोड़ दिया गया. पहली बार वे 1942 में दो बार भारत छोड़ो आंदोलन में 6 माह तक जेल में रहे.

नरोत्तम चौधरी ने किया था विक्टोरिया की मूर्ति का मुंह काला : स्वतंत्रता सेनानी नरोत्तम चौधरी के पुत्र बाबूलाल चौधरी ने बताया कि वर्ष 1942 में आंदोलन को तेज करने और सरकार को चुनौती देने के लिए उदयपुर के गुलाब बाग में स्थित रानी विक्टोरिया की मूर्ति का मुंह काला करने की योजना बनाई. इस काम के लिए सोमटिया के बड़े भाई राजेन्द्र सिंह और नरोत्तम चौधरी को चुना गया था, जिन्होंने साइकल से गुलाब बाग पहुंच कर विक्टोरिया की मूर्ति का मुंह काला किया और भूमिगत हो गए. इस वाकये के बाद भी कई गिरफ्तारियां हुईं, जिसमें मदनमोहन को भी पकड़ा गया था.

पूर्व सीएम अशोक गहलोत के साथ मदनमोहन सोमटिया
पूर्व सीएम अशोक गहलोत के साथ मदनमोहन सोमटिया (ETV Bharat (File Photo))

कई बार किया गया सम्मानित : मदनमोहन सोमटिया को देश की आजादी में योगदान के साथ ही सामाजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित किया गया था. पहली बार उन्हें 2 अक्टूबर 1987 को ताम्रपत्र दिया गया. दूसरी बार 14 सितंबर 2000 को उनके जन्मदिन पर ताम्रपत्र से सम्मनित किया गया था. 14 मई 2009 को उपराष्ट्रपति भैरूसिंह शेखावत ने उनके निवास पर पहुंचकर उन्हें सम्मनित किया. वर्ष 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की ओर से उन्हें सम्मनित किया गया. इसके अलावा राज्य व जिला स्तर पर अनेकों बार उन्हें सम्मनित किया गया. पिछले वर्ष ही तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी उनके निवास स्थान पर पहुंचे और उनको सम्मनित किया.

राजसमंद : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मेवाड़ प्रजामंडल के योद्धा स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन सोमटिया का रविवार सुबह निधन हो गया. सुबह करीब 7:15 बजे 102 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. इस दौरान उनका पूरा परिवार उनके साथ था. सोमटिया लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पिछले दो हफ्तों से श्री गोवर्धन राजकीय जिला चिकित्सालय में भर्ती थे. उन्हें दिल की बीमारी थी व सांस लेने में तकलीफ हो रही थी.

मदनमोहन सोमटिया का जन्म 14 सितम्बर 1922 को मध्यम परिवार के रामकृष्ण जाट और नानकी बाई के घर में हुआ. सोमटिया 11 भाई बहनों में सबसे छोटे थे. उनके दो बड़े भाई नरेंद्रपाल चौधरी और राजेन्द्र सिंह चौधरी भी स्वतंत्रता सेनानी थे. सोमटिया के पुत्र योगेश कुमार चौधरी ने बताया कि उनके पिता आजादी की लड़ाई में कई बार जेल गए थे. अप्रैल 1938 में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना हुई थी. उस वक्त उनकी उम्र करीब 15 वर्ष थी, लेकिन आजादी की ऐसी दीवानगी थी कि वे अपने बड़े भाइयों के साथ इस संग्राम का हिस्सा बन गए. फिर कई बार ब्रिटिश शासन की ओर से प्रताड़ित किए गए, गिरफ्तार किए गए और जेल भेजे गए, लेकिन कभी उनके इरादों में कमी नहीं आई.

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उन्होंने बताया कि छात्र जीवन में ही मेवाड़ प्रजामंडल से जुड़ना और लोगों को जागृत करने के लिए रैलियां-जुलूस निकालना, सभाओं में भाग लेना, स्वयं सेवक के रूप में कार्य करना और पत्र संदेश एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाना उनकी दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था. उन्होंने बताया कि 1938 से 1942 तक वे कई बार पकड़े गए, लेकिन हर बार उन्हें बालक समझ कर छोड़ दिया गया. पहली बार वे 1942 में दो बार भारत छोड़ो आंदोलन में 6 माह तक जेल में रहे.

नरोत्तम चौधरी ने किया था विक्टोरिया की मूर्ति का मुंह काला : स्वतंत्रता सेनानी नरोत्तम चौधरी के पुत्र बाबूलाल चौधरी ने बताया कि वर्ष 1942 में आंदोलन को तेज करने और सरकार को चुनौती देने के लिए उदयपुर के गुलाब बाग में स्थित रानी विक्टोरिया की मूर्ति का मुंह काला करने की योजना बनाई. इस काम के लिए सोमटिया के बड़े भाई राजेन्द्र सिंह और नरोत्तम चौधरी को चुना गया था, जिन्होंने साइकल से गुलाब बाग पहुंच कर विक्टोरिया की मूर्ति का मुंह काला किया और भूमिगत हो गए. इस वाकये के बाद भी कई गिरफ्तारियां हुईं, जिसमें मदनमोहन को भी पकड़ा गया था.

पूर्व सीएम अशोक गहलोत के साथ मदनमोहन सोमटिया
पूर्व सीएम अशोक गहलोत के साथ मदनमोहन सोमटिया (ETV Bharat (File Photo))

कई बार किया गया सम्मानित : मदनमोहन सोमटिया को देश की आजादी में योगदान के साथ ही सामाजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित किया गया था. पहली बार उन्हें 2 अक्टूबर 1987 को ताम्रपत्र दिया गया. दूसरी बार 14 सितंबर 2000 को उनके जन्मदिन पर ताम्रपत्र से सम्मनित किया गया था. 14 मई 2009 को उपराष्ट्रपति भैरूसिंह शेखावत ने उनके निवास पर पहुंचकर उन्हें सम्मनित किया. वर्ष 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की ओर से उन्हें सम्मनित किया गया. इसके अलावा राज्य व जिला स्तर पर अनेकों बार उन्हें सम्मनित किया गया. पिछले वर्ष ही तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी उनके निवास स्थान पर पहुंचे और उनको सम्मनित किया.

Last Updated : Nov 10, 2024, 5:14 PM IST
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