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पूर्व प्रोफेसर ने जिंदा ही सजा ली अपनी अर्थी, हैरत में पड़े लोग, जानिए पूरा मामला - FORMER PROFESSOR SANTOSH MISHRA

हल्द्वानी में पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा जिंदा ही सजाई अपनी अर्थी, अर्थी पर लेटकर पर्यावरण प्रदूषण रोकने का दिया संदेश

Former Professor Santosh Mishra
पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा (फोटो- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 15, 2024, 7:16 PM IST

Updated : Oct 15, 2024, 8:21 PM IST

हल्द्वानी: किसी व्यक्ति के मरने के बाद विधि विधान के साथ अर्थी सजाई जाती है. जिसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन हल्द्वानी में एक अनोखा मामला सामने आया है. जहां एमबीपीजी कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा ने जिंदा ही अपनी अर्थी सजा ली. वहीं, इस तरह से पूर्व प्रोफेसर को देख लोग हैरत में पड़ गए.

पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा जिंदा ही सजाई अपनी अर्थी: एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी के पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं. समय-समय पर देहदान, अंगदान, नेत्रदान, साहित्य, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी अपनी भूमिका निभाते हुए लोगों को जागरूक करने का काम करते हैं. इस बार पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा जिंदा ही अपनी अर्थी सजाकर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया है.

पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा की अपील (वीडियो- ETV Bharat)

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण रोकने का दिया संदेश: संतोष मिश्रा बाकायदा बांस की लकड़ी और बाजार से कफन के कपड़े लेकर अपने घर आए. जहां घर के बाहर उन्होंने जिंदा ही अपनी अर्थी सजा ली. इस दौरान संतोष मिश्रा अर्थी पर लेटकर लोगों को जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण रोकने की गुहार लगाई है.

विद्युत शवदाह गृह में लोग नहीं करवा रहे अंतिम संस्कार: संतोष मिश्रा का कहना था कि हल्द्वानी नगर निगम ने आम जनमानस की वर्षों की मांग पर रानीबाग में करोड़ों की लागत से विद्युत शवदाह गृह बनाया है, लेकिन लोग अपने परिजनों की अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में नहीं करवा रहे हैं. वो लकड़ी के माध्यम से अंतिम संस्कार नदी के किनारे कर रहे हैं. जिसके चलते जलवायु और पर्यावरण हो रही है.

उनका कहना है कि नगर निगम की ओर से विद्युत शव दाह में संस्कार निशुल्क करने के बावजूद लोग इसे अपनाने में हिचक रहे हैं. जबकि, शहरों की बढ़ती आबादी और घटते जंगल इस बात के लिए आगाह कर रहे हैं कि हमें परंपरागत साधनों के साथ बिजली और गैस आधारित शवदाह गृहों को अपनाने की आवश्यकता है.

संतोष मिश्रा ने कहा कि दिल्ली समेत देश के सभी बड़े शहरों में सालों से विद्युत शवदाह गृह का इस्तेमाल अंतिम संस्कार के लिए कर रहे हैं, लेकिन रानीबाग स्थित विद्युत शवदाह में केवल लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. जबकि, आम आदमी अपने परिजनों का अंतिम संस्कार लकड़ी से कर रहे हैं.

लकड़ी के बजाय विद्युत संचालित शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने की अपील: वहीं, पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा ने इस अनोखे प्रयोग के माध्यम से लोगों से अपील की है कि शवों की अंतिम संस्कार लकड़ी के बजाय विद्युत संचालित शवदाह गृह में करें. ताकि, पर्यावरण को बचाया जा सके.

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हल्द्वानी: किसी व्यक्ति के मरने के बाद विधि विधान के साथ अर्थी सजाई जाती है. जिसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन हल्द्वानी में एक अनोखा मामला सामने आया है. जहां एमबीपीजी कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा ने जिंदा ही अपनी अर्थी सजा ली. वहीं, इस तरह से पूर्व प्रोफेसर को देख लोग हैरत में पड़ गए.

पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा जिंदा ही सजाई अपनी अर्थी: एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी के पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं. समय-समय पर देहदान, अंगदान, नेत्रदान, साहित्य, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी अपनी भूमिका निभाते हुए लोगों को जागरूक करने का काम करते हैं. इस बार पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा जिंदा ही अपनी अर्थी सजाकर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया है.

पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा की अपील (वीडियो- ETV Bharat)

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण रोकने का दिया संदेश: संतोष मिश्रा बाकायदा बांस की लकड़ी और बाजार से कफन के कपड़े लेकर अपने घर आए. जहां घर के बाहर उन्होंने जिंदा ही अपनी अर्थी सजा ली. इस दौरान संतोष मिश्रा अर्थी पर लेटकर लोगों को जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण रोकने की गुहार लगाई है.

विद्युत शवदाह गृह में लोग नहीं करवा रहे अंतिम संस्कार: संतोष मिश्रा का कहना था कि हल्द्वानी नगर निगम ने आम जनमानस की वर्षों की मांग पर रानीबाग में करोड़ों की लागत से विद्युत शवदाह गृह बनाया है, लेकिन लोग अपने परिजनों की अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में नहीं करवा रहे हैं. वो लकड़ी के माध्यम से अंतिम संस्कार नदी के किनारे कर रहे हैं. जिसके चलते जलवायु और पर्यावरण हो रही है.

उनका कहना है कि नगर निगम की ओर से विद्युत शव दाह में संस्कार निशुल्क करने के बावजूद लोग इसे अपनाने में हिचक रहे हैं. जबकि, शहरों की बढ़ती आबादी और घटते जंगल इस बात के लिए आगाह कर रहे हैं कि हमें परंपरागत साधनों के साथ बिजली और गैस आधारित शवदाह गृहों को अपनाने की आवश्यकता है.

संतोष मिश्रा ने कहा कि दिल्ली समेत देश के सभी बड़े शहरों में सालों से विद्युत शवदाह गृह का इस्तेमाल अंतिम संस्कार के लिए कर रहे हैं, लेकिन रानीबाग स्थित विद्युत शवदाह में केवल लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. जबकि, आम आदमी अपने परिजनों का अंतिम संस्कार लकड़ी से कर रहे हैं.

लकड़ी के बजाय विद्युत संचालित शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने की अपील: वहीं, पूर्व प्रोफेसर संतोष मिश्रा ने इस अनोखे प्रयोग के माध्यम से लोगों से अपील की है कि शवों की अंतिम संस्कार लकड़ी के बजाय विद्युत संचालित शवदाह गृह में करें. ताकि, पर्यावरण को बचाया जा सके.

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Last Updated : Oct 15, 2024, 8:21 PM IST
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