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दिल्ली कोर्ट ने धोखाधड़ी के मामले में पूर्व MLA और पत्नी को सुनाई सजा, सरेंडर का दिया आदेश

Ranbir Singh Kharb sentenced: दिल्ली के पूर्व विधायक रणबीर सिंह खर्ब व उनकी पत्नी को सोमवार को कोर्ट ने सात साल जेल की सजा सुनाई. उनपर निवेशकों से धोखाधड़ी का मामला चल रहा था.

Ranbir Singh Kharb sentenced
Ranbir Singh Kharb sentenced
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 26, 2024, 1:14 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के एक मामले में पूर्व विधायक रणबीर सिंह खर्ब और उनकी पत्नी अनीता को सात साल जेल की सजा सुनाई है. साथ ही दोनों पर 44 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. कोर्ट ने दोनों दोषियों को सोमवार को ही सरेंडर करने का निर्देश दिया है. यह मामला ऊंचे रिटर्न का झांसा देकर निवेशकों से धोखाधड़ी से जुड़ा है.

आरोप यह था कि चिटफंड कंपनी ज्योति फेयर फाइनेंस कंपनी के माध्यम से ऊंचे रिटर्न का झांसा देकर निवेशकों से करीब तीन करोड़ रुपए ठगे. मामले में पहली शिकायत एएस हुड्डा नामक निवेशक ने 30 सितंबर, 2005 को की थी. शिकायतकर्ता ने 1998 से 2002 के बीच कंपनी में 95 लाख रुपए का निवेश किया था. जब शिकायतकर्ता ने कंपनी से रिटर्न मांगा तो उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

यह भी पढ़ें-कालकाजी मंदिर में प्रशासक की अनुमति के बिना कोई जागरण या धार्मिक आयोजन नहीं होंगे - दिल्ली हाई कोर्ट

इसके बाद एएस हुड्डा की शिकायत के आधार पर रणबीर सिंह खर्ब और अनीता खर्ब समेत कंपनी के दूसरे निदेशकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. गौरतलब है कि ज्योति फेयर फाइनेंस कंपनी का गठन 1998 में किया गया था. दिसंबर 2003 में रणबीर सिंह खर्ब विधायक बन गया, जिसके बाद वह निवेशकों को लगातार किसी न किसी बहाने से रिटर्न देने से इनकार करता रहा. बाद में वह निवेशकों को धमकाने भी लगा. इसपर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की. कोर्ट ने मामले में 2009 में दोनों को न्यायिक हिरासत में भेजा था. रणबीर सिंह खर्ब निर्दलीय विधायक हुआ करते थे.

यह भी पढ़ें-जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी को प्रदर्शन की अनुमति नहीं देने के खिलाफ दायर याचिका खारिज

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आरोप यह था कि चिटफंड कंपनी ज्योति फेयर फाइनेंस कंपनी के माध्यम से ऊंचे रिटर्न का झांसा देकर निवेशकों से करीब तीन करोड़ रुपए ठगे. मामले में पहली शिकायत एएस हुड्डा नामक निवेशक ने 30 सितंबर, 2005 को की थी. शिकायतकर्ता ने 1998 से 2002 के बीच कंपनी में 95 लाख रुपए का निवेश किया था. जब शिकायतकर्ता ने कंपनी से रिटर्न मांगा तो उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

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