देहरादून: उत्तराखंड में 60 साल या इससे अधिक की उम्र वाले पेड़ों की जिंदगी को बचाने के लिए नई योजना पर विचार किया जा रहा है. वन महकमे में चल रही फाइल ये बताती है कि बुजुर्ग पेड़ों को पेंशन देने की आवश्यकताओं को जांचा जा रहा है और महकमे के विशेषज्ञ इस पर अपनी राय भी रख रहे हैं. हालांकि, फिलहाल पेड़ों को पेंशन देने से जुड़ी इस फाइल पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.
बुजुर्ग पेड़ों को भी पेंशन: इंसानों के लिए चल रही वृद्धा पेंशन की तर्ज पर बुजुर्ग पेड़ों को भी पेंशन देने की जरूरत का आकलन किया जा रहा है. उत्तराखंड वन विभाग में आए एक सुझाव के बाद विभाग के अधिकारी फिलहाल इस दिशा में विशेषज्ञों की राय जानने में जुटे हुए हैं. विभाग के भीतर अनुसंधान विंग से इस मामले में राय भी ली जा रही है. बड़ी बात यह है कि वन विभाग को सुझाव देने वाले पत्र में हरियाणा सरकार का जिक्र करते हुए उत्तराखंड में भी हरियाणा की तर्ज पर ही पेड़ों को पेंशन देने की बात कही गई है. जाहिर है कि वन विभाग को सुझाव मिलने के बाद इसका परीक्षण किया जाना बेहद जरूरी है. इसलिए विभाग ने योजना की जरूरत को लेकर अनुसंधान विंग से राय मांगी है.
वन अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं प्रबंधन से मांगे गए सुझाव: मामले में हरियाणा सरकार का जिक्र किया गया है ऐसे में वन मुख्यालय के स्तर पर अधिकारियों को निर्देशित करते हुए हरियाणा में भी ऐसी किसी योजना के चलने को लेकर पुष्टि करने के लिए कहा गया है. वन विभाग इस सुझाव के बाद यह जानना चाह रहा है कि क्या उत्तराखंड में इस तरह की किसी योजना की जरूरत है या नहीं और इसलिए हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं प्रबंधन को इसके लिए विभिन्न पहलुओं पर अपनी राय देने के लिए कहा गया है. पीसीसीएफ प्रशासन बीपी गुप्ता ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि फिलहाल दिए गए सुझाव का परीक्षण करवाया जा रहा है और सभी तथ्य सामने आने के बाद इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा.
हरियाणा में साल 2023 से शुरू हुई है योजना:-
- हरियाणा में सरकार ने प्राण वायु देवता पेंशन स्कीम के तहत 75 साल या इससे ज्यादा उम्र के पेड़ों को पेंशन देने का फैसला किया था.
- हरियाणा में साल 2023 में इस योजना को शुरू किया गया था.
- हरियाणा में ऐसे 3810 पेड़ चिन्हित किए गए थे, जिन्हें इस योजना के तहत पेंशन दी जा रही है.
- योजना के तहत हरियाणा सरकार इन पेड़ों के रखरखाव के लिए 2500 रुपए देती है.
- हरियाणा सरकार ने फिलहाल इस योजना को 5 साल के लिए तैयार किया है.
- ऐसे पेड़ों के चिन्हीकरण को लेकर भी विशेष प्रक्रिया अपनानी होती है, इसमें वन विभाग के कार्यालय में पेंशन के लिए आवेदन करना होता है.
- वन विभाग की कमेटी इस आवेदन का आकलन करती है इसके बाद पेड़ का सत्यापन होने के बाद ही पेंशन शुरू की जाती है.
उत्तराखंड में अधिकतर वन क्षेत्र: उत्तराखंड और हरियाणा में वन क्षेत्र को लेकर जमीन आसमान का अंतर है. उत्तराखंड में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 70% वन क्षेत्र है. केवल वन विभाग के अंतर्गत आने वाले वन क्षेत्र का आकलन करें तो उत्तराखंड में कुल 38000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन है, इसमें वन पंचायत के अंतर्गत आने वाले जंगल और सिविल सोयम के वन शामिल नहीं हैं. उधर हरियाणा में देखे तो यहां केवल 1559 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगल हैं. इस तरह हरियाणा के कुल भौगोलिक क्षेत्र में केवल 3.53% ही वन है.
उत्तराखंड में इस वजह से आ रही दिक्कतें: उत्तराखंड में बुजुर्ग पेड़ों को पेंशन देने को लेकर आये सुझाव पर अधिकारी मंथन तो कर रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड की खराब आर्थिक स्थिति और बड़ी संख्या में बुजुर्ग पेड़ों के होने के चलते योजना पर अंतिम मुहर लगने में दिक्कतें आ सकती हैं. देखा जाए तो प्रदेश में अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ने की संभावना के चलते प्रदेश में उम्रदराज पेड़ों को पेंशन दिया जाना मुमकिन दिखाई नहीं दे रहा.
अधिकारियों से मांगी राय: अनुसंधान के क्षेत्र में कई सालों से काम करने वाले वन विभाग के अधिकारी भी इस पर अपनी राय दे रहे हैं. मुख्य वन संरक्षक कार्य योजना संजीव चतुर्वेदी से भी इस मामले में योजना को लेकर विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई है. मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी कहते हैं कि मामले में उनसे रिपोर्ट मांगी गई थी, जिसका जवाब उनके द्वारा भेज दिया गया है और इसमें आगे की कार्रवाई मुख्यालय स्तर पर की जानी है.
उम्रदराज पेड़ों की है अधिकता: उम्र दराज पेड़ों को पेंशन देने के दौरान इसके रखरखाव की जिम्मेदारी संभालने वाले लोगों या पंचायत को इस पेंशन का भुगतान किया जाता है. उत्तराखंड में इस योजना को शुरू किया गया तो यहां हजारों की संख्या में ऐसे वृक्षों की मौजूदगी है जो अपनी 60 साल या इससे अधिक की उम्र पूरी कर चुके हैं. इस तरह प्रदेश में इस योजना को लागू किए जाने पर उत्तराखंड सरकार को भारी बजट की आवश्यकता होगी. हालांकि इसमें विशेष प्रजाति के वृक्षों को चिन्हित कर उन्हें पेंशन के लिए मानकों में रखने का भी प्रयास हो सकता है.
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