देहरादूनः उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के दौरान घायल और मृतकों को सरकार द्वारा मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है. लेकिन वन विभाग के सामने इन दिनों चिंता ऐसे मृतकों को लेकर खड़ी हो गई है. जिनके वारिसों को विभाग ढूंढने से भी नहीं खोज पा रहा है. इतना ही नहीं, कई ऐसे लोग भी सामने आ रहे हैं जिन्हें संघर्ष में घायल होने का प्रमाण देना मुश्किल हो रहा है.
उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष एक बड़ी समस्या है और सरकार इस समस्या पर नियंत्रण के लिए तमाम उपाय करती रही है. प्रदेशवासियों को वन्यजीवों से संघर्ष में नुकसान पहुंचने पर सरकार ने मुआवजे का भी प्रावधान रखा है. इसी के तहत हर साल सैकड़ों लोगों को मुआवजे के लिए चिन्हित भी किया जाता है. लेकिन वन विभाग के सामने मुआवजे को लेकर कुछ ऐसी परेशानियां भी खड़ी हो रही हैं, जो विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की दौड़ धूप बढ़ा रही है.
नेपाली मूल के लोगों के सबसे ज्यादा केस: दरअसल प्रदेश में कई मामले ऐसे भी सामने आ रहे हैं जिसके कारण वन विभाग मुआवजे को लेकर अपनी प्रक्रिया को कुछ हल्का करने के लिए मजबूर हो रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि मानव वन्य जीव संघर्ष में घायल या मृतकों के वारिस विभाग को नहीं मिल पा रहे हैं. जिसके कारण वन विभाग संघर्ष में घायल या मृतक के परिजनों को मुआवजा नहीं दे पा रहा है. इसके पीछे की एक वजह यह भी है कि उत्तराखंड में कई नेपाली मूल के लोग भी निवास कर रहे हैं, जिनके परिवार नेपाल में है और उत्तराखंड में रहते हुए मानव वन्य जीव संघर्ष का शिकार होने के बाद उनका कोई वारिस नहीं मिल पाता.
सर्पदंश के शिकार व्यक्ति नहीं कर पाते साबित: वन विभाग की परेशानी केवल मृतक लोगों के वारिस ढूंढने तक ही नहीं है. कई ऐसे घायल लोग भी होते हैं जो साबित ही नहीं कर पाए कि वह मानव वन्य जीव संघर्ष के शिकार हुए हैं. ऐसे मामले सांप के काटे जाने से जुड़े होते हैं. दरअसल अधिकतर सांप ऐसे होते हैं जो जहरीले नहीं होते और जब वह किसी व्यक्ति को काटते हैं तो उक्त पीड़ित व्यक्ति कुछ देर के लिए दहशत में तो आ जाता है लेकिन बाद में वह पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है. उधर मेडिकल के दौरान यह स्पष्ट ही नहीं हो पता कि उसे कौन से वन्य जीव ने काटा या नुकसान पहुंचाया है.
मुआवजे के लिए इन औपचारिकताओं को करना होता है पूरा: मानव वन्य जीव संघर्ष में उन्हीं लोगों को मुआवजा दिया जाता है जो वारिस प्रमाण पत्र वन विभाग को दिखा पाते हैं और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के जरिए मानव वन्य जीव संघर्ष की स्थिति को स्पष्ट कर पाते हैं. इन दो औपचारिकताओं के कारण कई बार लोग वारिस प्रमाण पत्र नहीं दिखा पाते और कई बार मेडिकल रिपोर्ट में सांप के काटने की बात सामने नहीं आ पाती और इन दो वजहों के कारण लोगों को मुआवजा नहीं मिल पाता.
हालांकि, वन विभाग का कहना है कि वह पूरा प्रयास करता है कि मुआवजा लोगों तक पहुंच सके और इसके लिए वन विभाग के कर्मचारी पीड़ित के घर तक भी जांच पड़ताल करते हैं. उत्तराखंड में फिलहाल 27 ऐसे लोग हैं जिन्हें मुआवजा नहीं दिया जा पा रहा और इसके पीछे की वजह इनके वारिस का ना मिलना है.
पुरानी फाइलों को बंद करेगा विभाग: वन विभाग का कहना है कि अब विभाग ऐसे 4 से 5 साल पूराने मामलों के फाइलों को बंद करने जा रहा है जिनके वारिस नहीं मिले हैं या फिर वह वन्य जीव संघर्ष के शिकार होने का प्रमाण नहीं दे पाए हैं.
पिछले 5 साल 10 माह में वन्यजीवों के हमले में 394 लोगों की मौत
- साल 2019 में 58 लोगों ने वन्यजीवों के हमलों से जान गंवाई है
- साल 2020 में 67 लोगों ने वन्यजीवों के हमलों से जान गंवाई है
- साल 2021 में 71 लोगों ने वन्यजीवों के हमलों से जान गंवाई है
- साल 2022 में 82 लोगों ने वन्यजीवों के हमलों से जान गंवाई है
- साल 2023 में 66 लोगों ने वन्यजीवों के हमलों से जान गंवाई है
- साल 2024 में अक्टूबर माह तक 50 लोगों ने वन्यजीवों के हमलों से जान गंवाई है.
वन्यजीवों के हमले में घायल लोगों का आंकड़ा
- साल 2019 में 260 लोग वन्यजीवों के हमले से घायल हुए थे.
- साल 2020 में 324 लोग वन्यजीवों के हमले से घायल हुए थे.
- साल 2021 में 361 लोग वन्य जीवों के हमले में घायल हुए थे.
- साल 2022 में 325 लोग वन्य जीवों के हमले में घायल हुए थे.
- साल 2023 में 325 लोग वन्य जीवों के हमले में घायल हुए थे.
- साल 2024 में अक्टूबर माह तक वन्यजीवों के हमले में 224 लोग घायल हुए.
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