शिमला: हिमाचल प्रदेश महज 68 विधानसभा सीटों वाला छोटा पहाड़ी राज्य है. इस सरकार के कार्यकाल में यहां नौ सीटों पर उपचुनाव हुए. इससे पहले ऐसी स्थिति नहीं आई थी. इतनी संख्या में उपचुनाव हिमाचल के सियासी इतिहास में संभवत नहीं हुए हैं. वैसे तो उपचुनाव में जनता सत्ताधारी दल के साथ ही चलती है, लेकिन स्थितियों के अनुसार जीत-हार का गणित प्रभावित होता है. हिमाचल में इससे पहले जब भी उपचुनाव हुए अमूमन जनता सत्ता के साथ ही रही. इस बार परिस्थितियां भिन्न हैं.
हिमाचल में नौ सीटों पर उपचुनाव हुए. पहले छह सीटों पर राज्यसभा क्रॉस वोटिंग प्रकरण के कारण उपचुनाव की नौबत आई और फिर सियासी दाव-पेंच के कारण तीन और सीटों पर उपचुनाव हुए. पहले हुए चुनाव में कांग्रेस को चार और भाजपा को दो सीटों पर जीत मिली थी. अब तीन सीटों के चुनाव में शनिवार को मतगणना होगी.
क्यों आई इतनी सीटों पर उप चुनाव की नौबत: दरअसल, हिमाचल प्रदेश में फरवरी महीने में राज्यसभा सीट पर चुनाव होना था. विधानसभा में 41 सीटों के साथ कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में थी. तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को हासिल था. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू को हाईकमान ने प्रदेश की कमान सौंपी, लेकिन कैबिनेट विस्तार को लेकर कांग्रेस के भीतर असंतोष रहा. सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा जैसे नेता कैबिनेट में जगह न मिलने और अनदेखी के कारण सीएम से नाराज थे. सीएम सुक्खू ने भी इस नाराजगी को हैंडल करने में खास रुचि नहीं दिखाई. असंतोष इस कदर बढ़ा कि प्रचंड बहुमत होने के बाद भी कांग्रेस राज्यसभा की सीट हार गई.
इसके बाद हिमाचल की सियासत में घमासान हुआ. कांग्रेस के छह विधायक बागी हो गए और हर्ष महाजन के पक्ष में वोट डाल दी. इसी प्रकार तीन इंडीपेंडेंट भी भाजपा के पाले में चले गए. विधानसभा अध्यक्ष ने फाइनेंशियल बिल के पारण के दौरान व्हिप का उल्लंघन करने पर कांग्रेस के छह विधायकों की सदस्यता रद्द कर उन्हें अयोग्य कर दिया. इस तरह छह सीटें खाली हो गईं. फिर तीन निर्दलीय विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. स्पीकर ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया. छह उपचुनाव हो गए और हाईकोर्ट से निर्दलीय विधायकों पर फैसला आने के बाद स्पीकर ने उनका त्यागपत्र मंजूर कर लिया. इसके बाद फिर से तीन उपचुनाव हुए.
देहरा में कौन होगा जनता का चेहरा: देहरा सीट पर होशियार सिंह दो बार से निर्दलीय चुनाव जीतते आ रहे हैं. इस बार कांग्रेस ने यहां से कमलेश ठाकुर को टिकट दिया. कमलेश ठाकुर सीएम सुखविंदर सिंह की पत्नी हैं. ऐसे में ये सीट हॉट सीट हो गई और सभी की नजरें इसके परिणाम पर टिकी हैं. नालागढ़ से कांग्रेस के बावा हरदीप सिंह के मुकाबले केएल ठाकुर हैं और हमीरपुर से आशीष शर्मा के मुकाबले कांग्रेस के पुष्पेंद्र वर्मा मैदान में हैं. हालांकि तीनों सीटों में चुनाव के अपने-अपने रोचक कारण हैं, लेकिन देहरा सभी की जिज्ञासा के केंद्र में है. यदि जनता ने सत्ता का साथ ही चुना तो तीनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव जीत जाएगी. यदि जनता के मन में प्रचंड बहुमत के बाद भी सत्ता को संभाल न पाने और गारंटियों को पूरा न करने का गुस्सा रहा तो भाजपा को संजीवनी मिल सकती है.
उपचुनाव के कारणों पर निर्भर रहते आए हैं परिणाम: हिमाचल में अमूमन उपचुनाव की नौबत सिटिंग एमएलए के निधन पर ही आई है. पिछली बार कांग्रेस नेता सुजान सिंह पठानिया और वीरभद्र सिंह के निधन होने पर उनकी सीटों पर क्रमश: भवानी पठानिया व संजय अवस्थी चुनाव जीते थे. तब हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार थी. उससे पहले भाजपा सरकार के ही समय में पच्छाद से सुरेश कश्यप विधायक थे. उन्हें पार्टी ने शिमला सीट से लोकसभा चुनाव लड़वाया. इसी प्रकार किशन कपूर को जो धर्मशाला से चुनाव जीत कर कैबिनेट मंत्री बने थे, उन्हें कांगड़ा सीट से लोकसभा चुनाव लड़वाया गया. सुरेश कश्यप की जगह रीना कश्यप चुनाव लड़ीं और जीत हासिल की. धर्मशाला से विशाल नेहरिया चुनाव जीते थे. ऐसे में जनता ने सत्ताधारी दल का ही साथ दिया.
कभी सहानुभूति भी नहीं आती काम: वर्ष 1998 में बैजनाथ से विधायक और कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित संतराम के निधन के बाद उपचुनाव हुआ तो उनके बेटे सुधीर शर्मा हार गए थे. भाजपा के दूलो राम को जीत मिली थी. इसी प्रकार भाजपा के बड़े नेता ठाकुर जगदेव चंद का निधन हुआ तो उनके बेटे नरेंद्र ठाकुर को उपचुनाव में पराजय मिली और अनीता वर्मा कांग्रेस से चुनाव जीत गईं. वर्ष 2011 में भाजपा के सिख नेता व कैबिनेट मंत्री हरिनारायण सैणी का निधन हुआ तो उपचुनाव में उनकी पत्नी गुरनाम कौर को पराजय मिली. श्री रेणुका जी से डॉ. प्रेम सिंह कांग्रेस के टिकट पर कई चुनाव जीते थे. उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में बेटे विनय कुमार को हार मिली और भाजपा के हिरदा राम चुनाव जीते. इसी प्रकार चंद्र कुमार को 2004 में वीरभद्र सिंह सरकार के समय लोकसभा चुनाव में उतारा गया. उनके बेटे नीरज भारती को विधानसभा सीट पर मैदान में भेजा गया पर वे चुनाव हार गए.
उपचुनाव का साल और विजेता
- 1993 में हमीरपुर सीट पर जगदेव चंद ठाकुर के निधन के बाद कांग्रेस की प्रत्याशी अनीता वर्मा ने जगदेव चंद के बेटे नरेंद्र ठाकुर को हराया.
- 1998 में तत्कालीन परागपुर सीट पर मास्टर वीरेंद्र के निधन पर भाजपा की निर्मला देवी को जीत मिली थी.
- 1998 में बैजनाथ सीट पर पंडित संतराम के बेटे सुधीर शर्मा हारे और भाजपा के दूलोराम चुनाव जीते थे.
- वर्ष 2004 में तत्कालीन गुलेर सीट पर कांग्रेस के चंद्र कुमार के लोकसभा चुनाव में उतरने पर उनके बेट नीरज भारती हारे और भाजपा के हरबंस राणा जीते.
- वर्ष 2011 में श्री रेणुका जी सीट से कांग्रेस के डॉ. प्रेम सिंह के निधन पर उनके बेटे विनय कुमार हारे और भाजपा के हिरदा राम विजयी हुए.
- वर्ष 2011 में नालागढ़ सीट पर भाजपा के सरदार हरि नारायण सिंह सैनी के निधन के बाद उनकी पत्नी गुरनाम हारी और कांग्रेस के लखविंदर सिंह राणा जीते.
- वर्ष 2014 में सुजानपुर से राजेंद्र राणा विधायकी छोड़ लोकसभा सीट पर लड़े और अनुराग ठाकुर से हारे। वहीं, उनकी पत्नी भाजपा के नरेंद्र ठाकुर से हार गई.
- वर्ष 2017 में तत्कालीन मेवा सीट से भाजपा के बड़े नेता आईडी धीमान का निधन हो गया। उनकी सीट पर बेटे डॉ. अनिल धीमान जीत गए थे.
वरिष्ठ मीडिया कर्मी ओपी वर्मा का कहना है कि उपचुनाव में परिस्थितियों के अनुसार ही जनता फैसला लेती है. जरूरी नहीं कि सत्ताधारी दल ही जीते. जनता अपना मत स्थितियों के अनुसार ही देती है. तीन उपचुनाव में भी हर सीट की परिस्थिति के अनुसार ही परिणाम आएगा.
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