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केंद्र से नहीं मिली अनुमति तो हिमाचल में मार्च की सैलेरी पर आएगा संकट, लास्ट क्वार्टर के लिए अभी सेंक्शन नहीं हुई लोन लिमिट - HP Government Employees

Himachal Pradesh Financial Crisis, Himachal employees salary delay, Himachal Pradesh employees salary: हिमाचल प्रदेश की सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही है, कर्ज के बढ़ते बोझ के बीच आलम ये है कि कर्मचारियों को मार्च का वेतन देने के लिए केंद्र से लोन लिमिट बढ़ाने का आग्रह किया गया है.

Himachal Pradesh Financial Crisis
सांकेतिक तस्वीर.
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Feb 13, 2024, 3:12 PM IST

Updated : Feb 13, 2024, 4:56 PM IST

शिमला: आर्थिक संकट से घिरे छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल की वित्त संबंधी मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं. सुखविंदर सिंह सरकार ने जनवरी से मार्च महीने की अंतिम तिमाही के लिए केंद्र से लोन लेने की अनुमति मांगी है. हिमाचल सरकार वित्तीय वर्ष 2023-24 की लोन लिमिट में से 99 फीसदी के करीब कर्ज ले चुकी है. अब अंतिम तिमाही के लिए कम से कम 5000 करोड़ रुपए की लिमिट बढ़ाकर सेंक्शन करने की मांग की गई है. इधर, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू 17 फरवरी को बजट पेश करने वाले हैं. आर्थिक संकट से गुजर रही हिमाचल सरकार ने फरवरी माह की सैलरी का तो जैसे-तैसे इंतजाम कर लिया, लेकिन मार्च के लिए सरकार के पास लोन लिमिट बढ़ने का इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं है.

केंद्र की तरफ देखती हिमाचल सरकार

राज्य सरकार के वित्त विभाग के अफसर लोन लिमिट सेंक्शन करवाने को लेकर निरंतर केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय के संपर्क में हैं. बताया जा रहा है कि हिमाचल को अभी कम से कम एक सप्ताह और प्रतीक्षा करनी होगी. कारण ये है कि केंद्र सरकार और केरल सरकार के बीच फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस को लेकर कोई मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लगा हुआ है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधिकारी उस मामले में उलझे हुए हैं. ऐसे में हिमाचल के अनुमति संबंधी आवेदन पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।. उल्लेखनीय है कि पिछले वित्तीय वर्ष में हिमाचल को केंद्र से अनुमति मिल गई थी. तब राज्य में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार थी. तत्कालीन भाजपा सरकार ने छह हजार करोड़ रुपए की लोन लिमिट के लिए आग्रह किया था और ये सेंक्शन जनवरी 2023 में हो गई थी हालांकि तब राज्य में कांग्रेस सरकार सत्ता में आ गई थी.

मार्च की सैलरी का संकट

गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए हिमाचल सरकार की लोन लिमिट 6608 करोड़ रुपये थी. जिसमें से अब तक सरकार 6300 करोड़ रुपये का कर्ज ले चुकी है और सिर्फ 308 करोड़ रुपये की ही लिमिट बची है. जो कि आर्थिक संकट से जूझ रहे प्रदेश के लिए नाकाफी है. आलम ये है कि कर्मचारियों को मार्च महीने की सैलरी देने के लिए भी सरकार इस लोन लिमिट पर निर्भर है. इसलिये हिमाचल सरकार की ओर से वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही के लिए लोन लिमिट बढ़ाने की गुजारिश की है. हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना जनवरी महीने में लोन लिमिट की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय पहुंचे थे.

"अंतिम तिमाही के लिए हिमाचल सरकार की ओर से लोन लिमिट बढ़ाने का आग्रह किया गया है और इसे लेकर तमाम औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं. अब केंद्रीय वित्त मंत्रालय की हरी झंडी का इंतजार है" - प्रबोध सक्सेना, मुख्य सचिव, हिमाचल प्रदेश

कर्ज के सहारे चल रही हिमाचल की गाड़ी

हिमाचल में कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के बाद से अब तक 14,000 करोड़ रुपए का लोन ले लिया है. सुखविंदर सरकार ने इस साल जनवरी महीने में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था. कर्ज की ये रकम इस साल 17 जनवरी को सरकार के खजाने में आई थी. इससे पहले नवंबर 2023 में सरकार ने 800 करोड़ रुपए और अक्टूबर 2023 में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था. राज्य सरकार को कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर हर महीने 1500 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने पड़ते हैं. इसमें से अकेले 1300 करोड़ रुपए का खर्च वेतन का है. हिमाचल सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है. छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद सालाना वेतन का खर्च 15,669 करोड़ रुपए पहुंच चुका है.

ब्याज का भुगतान भी बड़ी मुसीबत
हिमाचल सरकार लिए गए कर्ज के ब्याज पर ही सालाना 4828 करोड़ रुपए चुकाने पड़ते हैं. हिमाचल में कर्ज के मकडज़ाल को लेकर कैग कई बार चेतावनी जारी कर चुका है. कैग की हर रिपोर्ट में बढ़ते कर्ज को लेकर चिंता जताई जाती है. पूर्व सीएम और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है कि सुखविंदर सरकार ने कर्ज लेने के अलावा और कोई काम नहीं किया है. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह का कहना है कि कांग्रेस सरकार पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा लिए गए कर्ज का खामियाजा भुगत रही है. सीएम सुक्खू ने कहा कि उनकी सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं. आने वाले समय में इसका असर दिखेगा.

"हिमाचल के लिए कर्ज अब एक कड़वी हकीकत है. दोनों प्रमुख दलों को राजनीति से हटकर राजस्व बढ़ाने के उपायों पर चिंतन करना होगा. आने वाले समय में ओपीएस का बोझ भी दिखने लगेगा. डीए और एरियर का भुगतान न होने से कर्मचारी वर्ग में असंतोष भी बढ़ेगा. राज्य सरकार को इस ओर ख्याल करना होगा" - केआर भारती, हिमाचल सरकार के पूर्व वित्त सचिव

ओपीएस लागू करने के साइडइफेक्ट

हिमाचल में सुखविंदर सिंह सरकार ने ओपीएस लागू की है. इससे पहले एनपीएस कंट्रीब्यूशन के बदले केंद्र सरकार से करीब 1700 करोड़ रुपए की लोन लिमिट का नुकसान हुआ है. केंद्र सरकार ने हिमाचल को ऑप्शन दिया था कि एनपीएस लागू रखी जाए और उसके बदले में लोन लिमिट बढ़ाई जाएगी. यानी हिमाचल में ओल्ड पेंशन लागू करने से लोन लिमिट में 1700 करोड़ की कटौती हो गई है. उल्लेखनीय है कि केंद्र ने सभी राज्यों की सरकारों को प्रस्ताव दिया है कि एनपीएस कंट्रीब्यूशन के बदले उतना ही लोन उन्हें मिल सकता है. ऐसे में हिमाचल इस लाभ से वंचित हो गया है.
ये भी पढ़ें: सुरसा के मुंह की तरह बढ़ कर 86,589 करोड़ हुआ कर्ज, एक साल में वेतन-पेंशन पर 15,669 करोड़ का खर्च

शिमला: आर्थिक संकट से घिरे छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल की वित्त संबंधी मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं. सुखविंदर सिंह सरकार ने जनवरी से मार्च महीने की अंतिम तिमाही के लिए केंद्र से लोन लेने की अनुमति मांगी है. हिमाचल सरकार वित्तीय वर्ष 2023-24 की लोन लिमिट में से 99 फीसदी के करीब कर्ज ले चुकी है. अब अंतिम तिमाही के लिए कम से कम 5000 करोड़ रुपए की लिमिट बढ़ाकर सेंक्शन करने की मांग की गई है. इधर, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू 17 फरवरी को बजट पेश करने वाले हैं. आर्थिक संकट से गुजर रही हिमाचल सरकार ने फरवरी माह की सैलरी का तो जैसे-तैसे इंतजाम कर लिया, लेकिन मार्च के लिए सरकार के पास लोन लिमिट बढ़ने का इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं है.

केंद्र की तरफ देखती हिमाचल सरकार

राज्य सरकार के वित्त विभाग के अफसर लोन लिमिट सेंक्शन करवाने को लेकर निरंतर केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय के संपर्क में हैं. बताया जा रहा है कि हिमाचल को अभी कम से कम एक सप्ताह और प्रतीक्षा करनी होगी. कारण ये है कि केंद्र सरकार और केरल सरकार के बीच फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस को लेकर कोई मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लगा हुआ है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधिकारी उस मामले में उलझे हुए हैं. ऐसे में हिमाचल के अनुमति संबंधी आवेदन पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।. उल्लेखनीय है कि पिछले वित्तीय वर्ष में हिमाचल को केंद्र से अनुमति मिल गई थी. तब राज्य में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार थी. तत्कालीन भाजपा सरकार ने छह हजार करोड़ रुपए की लोन लिमिट के लिए आग्रह किया था और ये सेंक्शन जनवरी 2023 में हो गई थी हालांकि तब राज्य में कांग्रेस सरकार सत्ता में आ गई थी.

मार्च की सैलरी का संकट

गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए हिमाचल सरकार की लोन लिमिट 6608 करोड़ रुपये थी. जिसमें से अब तक सरकार 6300 करोड़ रुपये का कर्ज ले चुकी है और सिर्फ 308 करोड़ रुपये की ही लिमिट बची है. जो कि आर्थिक संकट से जूझ रहे प्रदेश के लिए नाकाफी है. आलम ये है कि कर्मचारियों को मार्च महीने की सैलरी देने के लिए भी सरकार इस लोन लिमिट पर निर्भर है. इसलिये हिमाचल सरकार की ओर से वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही के लिए लोन लिमिट बढ़ाने की गुजारिश की है. हिमाचल सरकार के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना जनवरी महीने में लोन लिमिट की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय पहुंचे थे.

"अंतिम तिमाही के लिए हिमाचल सरकार की ओर से लोन लिमिट बढ़ाने का आग्रह किया गया है और इसे लेकर तमाम औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं. अब केंद्रीय वित्त मंत्रालय की हरी झंडी का इंतजार है" - प्रबोध सक्सेना, मुख्य सचिव, हिमाचल प्रदेश

कर्ज के सहारे चल रही हिमाचल की गाड़ी

हिमाचल में कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के बाद से अब तक 14,000 करोड़ रुपए का लोन ले लिया है. सुखविंदर सरकार ने इस साल जनवरी महीने में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था. कर्ज की ये रकम इस साल 17 जनवरी को सरकार के खजाने में आई थी. इससे पहले नवंबर 2023 में सरकार ने 800 करोड़ रुपए और अक्टूबर 2023 में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था. राज्य सरकार को कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर हर महीने 1500 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने पड़ते हैं. इसमें से अकेले 1300 करोड़ रुपए का खर्च वेतन का है. हिमाचल सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है. छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद सालाना वेतन का खर्च 15,669 करोड़ रुपए पहुंच चुका है.

ब्याज का भुगतान भी बड़ी मुसीबत
हिमाचल सरकार लिए गए कर्ज के ब्याज पर ही सालाना 4828 करोड़ रुपए चुकाने पड़ते हैं. हिमाचल में कर्ज के मकडज़ाल को लेकर कैग कई बार चेतावनी जारी कर चुका है. कैग की हर रिपोर्ट में बढ़ते कर्ज को लेकर चिंता जताई जाती है. पूर्व सीएम और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है कि सुखविंदर सरकार ने कर्ज लेने के अलावा और कोई काम नहीं किया है. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह का कहना है कि कांग्रेस सरकार पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा लिए गए कर्ज का खामियाजा भुगत रही है. सीएम सुक्खू ने कहा कि उनकी सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं. आने वाले समय में इसका असर दिखेगा.

"हिमाचल के लिए कर्ज अब एक कड़वी हकीकत है. दोनों प्रमुख दलों को राजनीति से हटकर राजस्व बढ़ाने के उपायों पर चिंतन करना होगा. आने वाले समय में ओपीएस का बोझ भी दिखने लगेगा. डीए और एरियर का भुगतान न होने से कर्मचारी वर्ग में असंतोष भी बढ़ेगा. राज्य सरकार को इस ओर ख्याल करना होगा" - केआर भारती, हिमाचल सरकार के पूर्व वित्त सचिव

ओपीएस लागू करने के साइडइफेक्ट

हिमाचल में सुखविंदर सिंह सरकार ने ओपीएस लागू की है. इससे पहले एनपीएस कंट्रीब्यूशन के बदले केंद्र सरकार से करीब 1700 करोड़ रुपए की लोन लिमिट का नुकसान हुआ है. केंद्र सरकार ने हिमाचल को ऑप्शन दिया था कि एनपीएस लागू रखी जाए और उसके बदले में लोन लिमिट बढ़ाई जाएगी. यानी हिमाचल में ओल्ड पेंशन लागू करने से लोन लिमिट में 1700 करोड़ की कटौती हो गई है. उल्लेखनीय है कि केंद्र ने सभी राज्यों की सरकारों को प्रस्ताव दिया है कि एनपीएस कंट्रीब्यूशन के बदले उतना ही लोन उन्हें मिल सकता है. ऐसे में हिमाचल इस लाभ से वंचित हो गया है.
ये भी पढ़ें: सुरसा के मुंह की तरह बढ़ कर 86,589 करोड़ हुआ कर्ज, एक साल में वेतन-पेंशन पर 15,669 करोड़ का खर्च

Last Updated : Feb 13, 2024, 4:56 PM IST
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