जयपुर. ईआरसीपी परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने क्षेत्र का हवाई दौरा किया. इसके बाद केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि 5 साल तक परियोजना को लेकर हर स्तर पर राजनीति हुई. पीने के पानी और सिंचाई का संकट था और तो और योजना को हथियार के रूप में प्रयोग किया गया. अब परियोजना का एमओयू हो चुका है. प्रदेश में ईआरसीपी परियोजना से 21 जिलों को पीने और सिंचाई का पानी मिलेगा. 5 साल में परियोजना को पूरा करने का काम होगा. पहले वाले लोग फिर से राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं. कुछ लोगों के लिए राजनीति ही काम है. विधानसभा में भी इसको लेकर टिप्पणी की गई.
राज्य के 21 जिलों को अगले 20 साल तक मिलेगा पानी : शेखावत ने कहा कि इस परियोजना से राजस्थान के 21 जिलों को अगले 20 साल तक पीने और सिंचाई के लिए पानी मिलेगा. इस परियोजना के लिए 40 हजार करोड़ केंद्र और 4 हजार करोड़ दोनों राज्य देंगे. केंद्रीय मंत्री ने 2004 की मूल पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना, 2016 में राजस्थान सरकार की ओर से बनाई गई ईआरसीपी, 2023 में राजस्थान की ओर से बनाई गई नवनीरा-गलवा-बीसलपुर-ईसरदा लिंग और भारत सरकार की संशोधित पीकेसी-ईआरसीपी आईएलआर परियोजना की जानकारी दी.
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योजना पर 5 साल हुई राजनीति : केंद्रीय मंत्री ने ईआरसीपी योजना को लेकर कहा कि पिछले 5 साल तक राजनीति होती रही. 13 जिलों के लिए लाइफ लाइन परियोजना को राजनीतिक अपेक्षा के आधार पर हथियार के रूप में उपयोग किया गया. राजस्थान को 5 साल तक पीछे धकेलने का काम हुआ है, लेकिन अब ईआरसीपी योजना को लेकर एमओयू पर राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार के हस्ताक्षर हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि 2004 में ईआरसीपी परियोजना बनाई गई थी, लेकिन मध्यप्रदेश और राजस्थान में सहमति नहीं बन पाई थी.
राजे सरकार ने 2016 में की थी परियोजना की परिकल्पना : उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे सरकार ने 2016 में परियोजना की परिकल्पना की थी. इसकी डीपीआर बनाने की जिम्मेदारी 2016 में एक कंपनी को दी गई थी. कंपनी ने 2017 में डीपीआर बनाकर सौंप दी थी. डीपीआर 50 फीसदी निर्भरता के आधार पर डीपीआर बनाई गई थी, जबकि 75 फीसदी निर्भरता के आधार पर बनाई जाती है. केंद्र सरकार ने 75 फीसदी निर्भरता पर प्रोजेक्ट बनाना तय किया. प्रदेश के 13 जिलों को 1723 एमसीएम पेयजल की आवश्यकता है. 80 लाख हेक्टेयर की सिंचाई की जाती है. हर जिले की आवश्यकता के आधार पर योजना बनाई गई है. योजना को राष्ट्रीय परियोजना बनाने के लिए सबसे ज्यादा राजनीति हुई है. योजना के प्रस्ताव को सीडब्लूसी स्वीकृति देती है. यही राजस्थान सरकार फेल हो गई थी. प्रस्ताव 50 प्रतिशत के आधार पर था, लेकिन नियम के अनुसार 75 प्रतिशत निर्भरता के साथ योजनाबद्ध किया जाना चाहिए था.
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मुझे नकारा, निकम्मा कहा गया : राजस्थान के 13 जिलों अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, अजमेर, टोंक, बूंदी, कोटा, बारां और झालावाड़ को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नए कमांड एरिया बनाने की योजना बनाई गई थी. इसके तहत लगभग 2 लाख हेक्टेयर में से 9 जिलों में लगभग 80 हजार हेक्टेयर की मौजूदा कमांड को स्थिर करने और औद्योगिक आवश्यकता के लिए 286 एमसीएम पानी देने के लिए करीब 40 हजार करोड़ रुपए की लागत के साथ परियोजना बनाई गई थी. शेखावत ने कहा कि मुझे नकारा, निकम्मा जैसे आभूषण पहनाए गए. जमकर राजनीतिक बयानबाजी की गई. 2018 में इस प्रोजेक्ट को लेकर मध्यप्रदेश और वसुंधरा राजे सरकार में ऑब्जेक्शन कर दिया गया था. इसके बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रोजेक्ट पर सहमति नहीं दी थी.
कमलनाथ ने लिखा था खत : शेखावत ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने केवल तीन जिले जयपुर, अजमेर और टोंक को 520 एमसीएम पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए एनजीबीआई लिंक की योजना बनाई थी. इस परियोजना के अंतर्गत सिंचाई की कोई योजना नहीं थी. ईआरसीपी प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने पर शेखावत ने कहा कि तत्कालीन एमपी सरकार ने सीडब्ल्यूसी में इस पर ऑब्जेक्शन किया था. वहीं, कमलनाथ सरकार ने अशोक गहलोत को पत्र लिख कर इसे एमपी के हितों के विपरीत बताया था. उस दौरान एमपी सरकार ने 50 फ़ीसदी डिपेंडबिलिटी पर भी ऑब्जेक्शन किया था. हमने राजस्थान की पूर्व सरकार के समय कई बार बैठक की, लेकिन मुख्यमंत्री या उनका कोई मंत्री बैठक नहीं आया.