ETV Bharat / state

चुनावी दौर में गायब रहा पर्यावरण संतुलन का गंभीर मुद्दा, राजनीतिक दल नहीं गंभीर: गुमान सिंह - Environmental Balance Issue - ENVIRONMENTAL BALANCE ISSUE

देशभर में लोकसभा चुनाव की लहर चल रही है. इसके साथ ही प्रचंड गर्मी भी पड़ रही है. राजनीतिक दलों द्वारा कई मुद्दों को लेकर जनता से वादे किए जा रहे हैं, लेकिन इस बीच पर्यावरण संतुलन का मुद्दा चुनावी दौर में गायब है. राजनीतिक दल बिगड़ते पर्यावरण संतुलन को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं.

ENVIRONMENTAL ISSUE IN HIMACHAL
हिमाचल में पर्यावरण संतुलन एक गंभीर मुद्दा (File Photo)
author img

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 26, 2024, 2:28 PM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव हो रहे है. राजनीतिक दलों द्वारा जनता से बड़े-बड़े वादे किए जा रहे हैं, लेकिन इस बीच लगातार बिगड़ता पर्यावरण संतुलन का मुद्दा चुनाव में गायब रहा. एक ओर जहां देशभर में गर्मी सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है. वहीं, खराब होता पर्यावरण संतुलन एक गंभीर मुद्दा बन गया है. हालांकि देशभर में चल रही चुनावी हवा के बीच ये मुद्दा नजर नहीं आ रहा है.

ढालपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह ने कहा कि भारत में जहां पर्यावरण संतुलन लगातार बिगड़ता जा रहा है. वहीं, इस मसले पर देश का कोई भी राजनीतिक दल गंभीर नहीं है. लोकसभा चुनाव में विभिन्न दलों ने अपने प्रत्याशी तो खड़े किए गए, लेकिन चुनावी मुद्दे में कहीं भी पर्यावरण के मसले को ध्यान में नहीं रखा गया. जिसका खामियाजा आने वाले समय में जनता को भुगतना पड़ सकता है.

गुमान सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में बीते साल प्राकृतिक आपदा के चलते सैकड़ों लोगों की जान चली गई. प्रदेश में हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई, लेकिन उसके बाद भी सरकार व राजनीतिक दल पर्यावरण के मसले को लेकर बिल्कुल भी गंभीर दिखाई नहीं दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वह हिमालय के विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति तैयार करें, क्योंकि हिमालय में पर्यावरण संतुलन के बिगड़ने के चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं और आने वाले समय में लोगों को पेयजल संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है.

'बड़े निर्माण एवं परियोजनाओं पर रोक'

गुमान सिंह ने कहा कि हिमाचल के विकास के लिए जन सहभागिता के साथ पर्यावरण संरक्षण, टिकाऊ विकास, सम्मान जनक रोजगार और यहां की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर नीति बनाई जानी चाहिए. इसके अलावा सभी तरह के ढांचागत निर्माण के लिए स्थानीय स्तर पर भौगोलिक व भूगर्भीय अध्ययन के अनुरूप नीति बनाई जाए और सभी बड़े निर्माण कार्यों व परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए. उन्होंने कहा कि घरों और भवनों का निर्माण सुरक्षित स्थानों पर सुनिश्चित किया जाए. इसके साथ ही ऊंची बहुमंजिला इमारतों व विनाशकारी ढांचागत निर्माण पर पूरी तरह से रोक लगाई जानी चाहिए.

'प्लास्टिक व कचरा प्रबंधन के लिए ठोस नीति'

गुमान सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार को चाहिए की जल संरक्षण और लोक मित्र मिश्रित वनों के उपार्जन के लिए जन सहभागिता आधारित नीति बनाई जाए और प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए. प्रदेश में प्लास्टिक व कचरा प्रबंधन पर ठोस नीति अपनाई जाए और कृषि, वन उपज व बागवानी उपज पर आधारित प्रशोधन की लघु औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहित किया जाए.

'धारा 118 सख्ती से हो लागू'

गुमान सिंह ने कहा कि प्रदेश में राजस्व कानून की धारा 118 को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और वन अधिकार कानून को लागू किया जाए. भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक परियोजनाओं से प्रभावितों को 4 गुना मुआवजा को दिया जाए. इसके अलावा सरकारी व प्राइवेट कंपनियों द्वारा बिछाई गई बिजली की ट्रांसमिशन लाइनों के नीचे खतरे में आने वाली प्रभावित भूमि, रिहायशी घरों, मवेशी खानों का कानूनन अधिग्रहण किया जाना चाहिए और प्रभावितों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए. इसके लिए भी केंद्र सरकार को बिजली ट्रांसमिशन के लिए नया कानून लाने की जरूरत है.

ये भी पढ़ें: IIT मंडी और फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने बनाया नया कम्पोजिट मटेरियल, पर्यावरण को नुकसान से बचाने में होगा मददगार

ये भी पढ़ें: पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर आर्थिक लालच प्राकृतिक आपदाओं का मूल कारण

ये भी पढ़ें: गहरे समुद्र में खनन से विश्व को खतरा ! फिर क्या करे भारत ?

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव हो रहे है. राजनीतिक दलों द्वारा जनता से बड़े-बड़े वादे किए जा रहे हैं, लेकिन इस बीच लगातार बिगड़ता पर्यावरण संतुलन का मुद्दा चुनाव में गायब रहा. एक ओर जहां देशभर में गर्मी सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है. वहीं, खराब होता पर्यावरण संतुलन एक गंभीर मुद्दा बन गया है. हालांकि देशभर में चल रही चुनावी हवा के बीच ये मुद्दा नजर नहीं आ रहा है.

ढालपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह ने कहा कि भारत में जहां पर्यावरण संतुलन लगातार बिगड़ता जा रहा है. वहीं, इस मसले पर देश का कोई भी राजनीतिक दल गंभीर नहीं है. लोकसभा चुनाव में विभिन्न दलों ने अपने प्रत्याशी तो खड़े किए गए, लेकिन चुनावी मुद्दे में कहीं भी पर्यावरण के मसले को ध्यान में नहीं रखा गया. जिसका खामियाजा आने वाले समय में जनता को भुगतना पड़ सकता है.

गुमान सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में बीते साल प्राकृतिक आपदा के चलते सैकड़ों लोगों की जान चली गई. प्रदेश में हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई, लेकिन उसके बाद भी सरकार व राजनीतिक दल पर्यावरण के मसले को लेकर बिल्कुल भी गंभीर दिखाई नहीं दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वह हिमालय के विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति तैयार करें, क्योंकि हिमालय में पर्यावरण संतुलन के बिगड़ने के चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं और आने वाले समय में लोगों को पेयजल संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है.

'बड़े निर्माण एवं परियोजनाओं पर रोक'

गुमान सिंह ने कहा कि हिमाचल के विकास के लिए जन सहभागिता के साथ पर्यावरण संरक्षण, टिकाऊ विकास, सम्मान जनक रोजगार और यहां की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर नीति बनाई जानी चाहिए. इसके अलावा सभी तरह के ढांचागत निर्माण के लिए स्थानीय स्तर पर भौगोलिक व भूगर्भीय अध्ययन के अनुरूप नीति बनाई जाए और सभी बड़े निर्माण कार्यों व परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए. उन्होंने कहा कि घरों और भवनों का निर्माण सुरक्षित स्थानों पर सुनिश्चित किया जाए. इसके साथ ही ऊंची बहुमंजिला इमारतों व विनाशकारी ढांचागत निर्माण पर पूरी तरह से रोक लगाई जानी चाहिए.

'प्लास्टिक व कचरा प्रबंधन के लिए ठोस नीति'

गुमान सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार को चाहिए की जल संरक्षण और लोक मित्र मिश्रित वनों के उपार्जन के लिए जन सहभागिता आधारित नीति बनाई जाए और प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए. प्रदेश में प्लास्टिक व कचरा प्रबंधन पर ठोस नीति अपनाई जाए और कृषि, वन उपज व बागवानी उपज पर आधारित प्रशोधन की लघु औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहित किया जाए.

'धारा 118 सख्ती से हो लागू'

गुमान सिंह ने कहा कि प्रदेश में राजस्व कानून की धारा 118 को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और वन अधिकार कानून को लागू किया जाए. भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक परियोजनाओं से प्रभावितों को 4 गुना मुआवजा को दिया जाए. इसके अलावा सरकारी व प्राइवेट कंपनियों द्वारा बिछाई गई बिजली की ट्रांसमिशन लाइनों के नीचे खतरे में आने वाली प्रभावित भूमि, रिहायशी घरों, मवेशी खानों का कानूनन अधिग्रहण किया जाना चाहिए और प्रभावितों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए. इसके लिए भी केंद्र सरकार को बिजली ट्रांसमिशन के लिए नया कानून लाने की जरूरत है.

ये भी पढ़ें: IIT मंडी और फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने बनाया नया कम्पोजिट मटेरियल, पर्यावरण को नुकसान से बचाने में होगा मददगार

ये भी पढ़ें: पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर आर्थिक लालच प्राकृतिक आपदाओं का मूल कारण

ये भी पढ़ें: गहरे समुद्र में खनन से विश्व को खतरा ! फिर क्या करे भारत ?

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.