नई दिल्ली: भारतीय विश्वविद्यालयों में होने वाले दीक्षांत समारोह में एक-दो साल पहले तक गाउन और सिर पर हैट पहनकर डिग्री लेने की परंपरा थी, जिसे अंग्रेजों के जमाने की परंपरा कहा जाता है. अब धीरे-धीरे सभी भारतीय विश्वविद्यालय भारतीय परिधानाें को अपना रहे हैं. साथ ही गाउन पहनकर और सिर पर हैट लगाकर डिग्री लेने की परंपरा को खत्म कर रहे हैं.
हाल में संपन्न जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के दीक्षांत समारोह में भी छात्र-छात्राओं और शिक्षकों के लिए भारतीय परिधान कुर्ता पैजामा, साड़ी और सलवार सूट को डिग्री लेने के लिए अनिवार्य किया गया. इसके बाद 24 फरवरी को होने जा रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भी छात्र, छात्राएं और शिक्षक अब गाउन की जगह भारतीय परिधान पहनकर डिग्री प्राप्त करेंगे.
डीयू का इस बार का दीक्षांत समारोह क्यों है खास?: दिल्ली विश्वविद्यालय का इस बार का दीक्षांत समारोह इसलिए खास है कि इस बार अंग वस्त्रों को विशेष रूप से डिजाइन किया गया है. स्नातक के छात्र-छात्राओं के अंग वस्त्र का रंग अलग होगा. स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं के अंग वस्त्र का रंग अलग होगा. शिक्षक और डीयू पदाधिकारी के अंग वस्त्र का रंग अलग होगा.
इस संबंध में महाराजा अग्रसेन कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर संजीव तिवारी ने कहा कि गाउन की परंपरा 1835 में लागू की गई, जो लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का परिचायक है. भारतीय परंपरा तो गुरुकुलों की परंपरा थी. जहां पर भारतीय पोशाक और वेशभूषा में रहकर विद्यार्थी विद्या अर्जन करते थे. लेकिन, अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय परंपरा को खत्म करके अंग्रेजी परंपरा गाउन की परंपरा को लागू कर दिया गया.
2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत नियम लागूः साल 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई. इसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा पद्धति का पूरी तरह से भारतीयकरण करना और भारतीय विश्वविद्यालयों में भारतीयता, भारतीय संस्कृति और भारतीय मूल्यों की स्थापना करना है. इसी क्रम में दीक्षांत समारोह में अंग्रेजी गाउन और हैट को त्याग कर भारतीय परिधान को अपनाया जा रहा है. आने वाले समय में नई परंपरा भारतीयता और भारतीय संस्कृति को विश्वविद्यालयों में बढ़ावा देगी.
अलग-अलग रंगों के अंगवस्त्र में नजर आएंगे स्टूडेंट्सः कुलपति ने बताया कि पीजी के विद्यार्थियों के लिए फिरोजी रंग का गोल्डन बॉर्डर वाला हैंडलूम फैब्रिक का अंगवस्त्र (स्टोल) होगा, जिसके दोनों किनारों की ओर विश्वविद्यालय का लोगो और शताब्दी लोगो बने होंगे. यूजी के विद्यार्थियों के लिए पीले रंग का गोल्डन बॉर्डर वाला हैंडलूम फैब्रिक स्टोल होगा. इसके दोनों किनारों की ओर विश्वविद्यालय का लोगो और शताब्दी लोगो बने होंगे.
पीएचडी, डीएम और एमसीएच के विद्यार्थियों के लिए लाल रंग का गोल्डन बॉर्डर वाला हैंडलूम फैब्रिक स्टोल होगा, जिसके दोनों किनारों विश्वविद्यालय का लोगो और शताब्दी लोगो बने होंगे. उन्होंने बताया कि अधिकारियों के लिए बैंगनी रंग का स्टोल होगा, जबकि प्रिंसिपल और विभागाध्यक्षों के लिए मरून रंग का स्टोल होगा.
दुनिया में कहां से शुरू हुई गाउन पहनने की परंपराः बताया जाता है कि दुनिया में सबसे पहले गाउन पहनने की परंपरा यूरोप से शुरू हुई. जहां 12वीं शताब्दी में सबसे पहले विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद दीक्षांत समारोह में गाउन पहना गया. उस समय गाउन पहनने के पीछे यूरोप में पड़ने वाली भयंकर सर्दी में छात्रों को गर्मी का एहसास कराना था. इसके बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे विश्वविद्यालय का विस्तार होता गया. शिक्षा का नवीनीकरण हुआ वैसे-वैसे गाउन के रंग और डिजाइन में परिवर्तन होता गया. यूरोप से शुरुआत के समय गाउन का रंग सिर्फ काला रखा गया था.
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