देहरादूनः उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. हालांकि, मॉनसून सीजन के दौरान आपदा आने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है. मौजूदा समय में उत्तराखंड में मॉनसून ने दस्तक दे दी है. जिसके चलते आपदा प्रबंधन विभाग मॉनसून की तैयारियों में दमखम से जुट गया है ताकि, मॉनसून सीजन के दौरान बनने वाली आपदा की स्थिति से निपटा जा सके. आपदा विभाग, हेलीकॉप्टर के साथ ड्रोन इस्तेमाल और जनसहभागिता को बढ़ाने पर जोर दे रहा है. ताकि आपदा के दौरान स्थानीय लोग क्विक रिस्पॉन्ड कर सके.
ज्यादा जानकारी देते हुए आपदा सचिव रंजीत सिन्हा ने बताया कि आपदा के दौरान हेलीकॉप्टर के साथ ड्रोन इस्तेमाल का भी रास्ता खुला हुआ है. आपदा के दौरान ड्रोन की जरूरत को देखते हुए आईटीडीए से सर्विस सेवा के रूप में ड्रोन लेने का निर्णय लिया है. क्योंकि अगर ड्रोन खरीदते हैं तो उसको खरीदने के खर्च के साथ ही ड्राइवर और ऑपरेटर का भी खर्च आता है. ऐसे में आपदा विभाग ने निर्णय लिया है कि जरूरत के समय ड्रोन प्रोवाइडर से रेंट पर ड्रोन लेकर इस्तेमाल किया जाएगा. वर्तमान समय में ड्रोन की कैपेसिटी भी बढ़ गई है. ऐसे में आपदा के दौरान जरूरत पड़ने पर ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा. हालांकि, आपदा के दृष्टिगत इस बार अगले एक साल के लिए हेलीकॉप्टर के लिए टेंडर किए गए हैं.
उन्होंने कहा कि, आपदा के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने के साथ ही क्विक रिस्पांस के लिए जन सहभागिता बहुत जरूरी है. लोकल स्तर पर वही लोग किसी भी घटना के दौरान तत्काल रिस्पॉन्ड कर सकते हैं. हर जगह तत्काल होमगार्ड, सिविल डिफेंस, पुलिस और एसडीआरएफ को नहीं भेज सकते हैं. क्योंकि इन्हें भेजने में समय लगता है. तब तक तमाम चीजें हो जाती हैं.
आपदाओं को देखते हुए 900 वालंटियर को नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (NIM) में ट्रेंड किया है. साथ ही इनको पूरी किट भी दी गई है. ऐसे में आपदा के दृष्टिगत स्थानीय लोगों को पूरी तरह से अलर्ट होना पड़ेगा. साथ ही कहा कि जन सहभागिता को बढ़ाने के लिए नीम समेत अन्य संस्थाओं ने ट्रेनिंग देने के साथ ही किट भी दे दी है.
आपदा सचिव ने बताया कि आपदा से पहले और बाद में मौसम की सटीक जानकारी होना बेहद जरूरी है. ऐसे में मौसम की सटीक जानकारी के लिए प्रदेश भर में तीन जगहों पर सुरकुंडा देवी, लैंसडाउन और मुक्तेश्वर में डॉप्लर रडार लगे हुए हैं. तीनों डॉप्लर रडार सक्रिय हैं. एक डॉप्लर रडार करीब 100 किलोमीटर के एरिया में वेदर पैटर्न को डिटेक्ट करता है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये रियल टाइम डाटा पर काम करता है. साथ ही ये रडार क्लाउड का थिकनेस और क्लाउड का लोकेशन तत्काल बताता है. ऐसे में आधे घंटे के भीतर क्या हो सकता है, उसकी सूचना इससे मिल जाती है.
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