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दिल्ली दिव्य कला मेला; इस दिव्यांग कलाकार का हुनर देख दांतों तले दबा लेंगे उंगली - DIVYA KALA MELA 2024

राम निवास दो साल की उम्र में पोलियो की गिरफ्त में आ गये थे. उन्होंने 2005 में 'दक्ष एम्पॉवर एबिलिटी फाउंडेशन' की स्थापना की.

सफलता की कहानी रामनिवास की जुबानी पूरी कहानी
सफलता की कहानी रामनिवास की जुबानी पूरी कहानी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 6 hours ago

नई दिल्ली: दिल्ली के इंडिया गेट पर 'दिव्य कला मेले' का आयोजन किया गया था. जिसका उद्देश्य दिव्यांगों की कला, हुनर और उपलब्धियों को समाज के सामने लाना था. इस मेले में राम निवास नामक एक प्रेरणादायक व्यक्ति ने अपनी भागीदारी दर्ज की है. वह लकड़ी के सजावटी सामान, डिज़ाइनर डायरी और कपड़ों के लेडीज पर्स जैसे उत्पादों को बेचकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. राम निवास को इस मेले में शामिल होने का मौका दूसरी बार मिला है और वह इसे अपने लिए एक विशेष अवसर मानते हैं.

संघर्ष से प्रेरणा की ओर

राम निवास का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है. वह एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं और दो साल की उम्र में पोलियो की गिरफ्त में आ गये थे. उनके शरीर ने उन्हें बाधित किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनके परिवार का समर्थन और उनकी खुद की मेहनत ने उन्हें दिव्यांग संस्था का निदेशक बना दिया, जहां वे अन्य दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

प्रेरणादायी: सामाजिक तानों ने दी आगे बढ़ने की प्रेरणा (ETV Bharat)

राम निवास का कहना है, "बचपन में हर समय तानों और नकारात्मकता का सामना करना पड़ा. यह अनुभव मुझे तोड़ने वाला था. लेकिन मेरे जीजा ने मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और कंप्यूटर की ट्रेनिंग दिलवाई." इसी प्रेरणा ने उन्हें नए अवसरों की ओर अग्रसर किया और वे लकड़ी के सामान बनाने की कला में पारंगत हो गए.

सामुदायिक सहायता और विकास

राम निवास ने 2005 में राजस्थान महिला कल्याण मंडल से जुड़कर समाज के लिए रोल मॉडल बनने की ठानी. उन्होंने 'दक्ष एम्पॉवर एबिलिटी फाउंडेशन' की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य दिव्यांगों को अर्थोपार्जन के अवसर प्रदान करना है. उनकी ट्रेनिंग कार्यक्रम में दिव्यांगों को लकड़ी का सामान बनाने की 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसके बाद उन्हें प्लेसमेंट भी किया जाता है. अब तक, हजारों दिव्यांगों को इस प्रशिक्षण के माध्यम से रोजगार मिला है.

इंडिया गेट पर लगा मेला
इंडिया गेट पर लगा मेला (ETV Bharat)

परिवार का समर्थन

राम निवास का परिवार उनके लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है. उनके माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों के साथ-साथ 7 भाई-बहनों का परिवार है, जिसमें चार बहनें बड़ी हैं. परिवार का सबसे बड़ा बेटा होने के नाते राम निवास के ऊपर अभिभावकीय जिम्मेदारियों का बोझ था. लेकिन अब, जब उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, वह बेहतर तरीके से अपने परिवार का समर्थन कर पा रहे हैं. उनकी सालाना आय लगभग 4 लाख रुपये हो गई है, जिससे परिवार सामाजिक सम्मान भी प्राप्त कर रहा है.

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संघर्ष से प्रेरणा की ओर

राम निवास का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है. वह एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं और दो साल की उम्र में पोलियो की गिरफ्त में आ गये थे. उनके शरीर ने उन्हें बाधित किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनके परिवार का समर्थन और उनकी खुद की मेहनत ने उन्हें दिव्यांग संस्था का निदेशक बना दिया, जहां वे अन्य दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

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राम निवास का कहना है, "बचपन में हर समय तानों और नकारात्मकता का सामना करना पड़ा. यह अनुभव मुझे तोड़ने वाला था. लेकिन मेरे जीजा ने मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और कंप्यूटर की ट्रेनिंग दिलवाई." इसी प्रेरणा ने उन्हें नए अवसरों की ओर अग्रसर किया और वे लकड़ी के सामान बनाने की कला में पारंगत हो गए.

सामुदायिक सहायता और विकास

राम निवास ने 2005 में राजस्थान महिला कल्याण मंडल से जुड़कर समाज के लिए रोल मॉडल बनने की ठानी. उन्होंने 'दक्ष एम्पॉवर एबिलिटी फाउंडेशन' की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य दिव्यांगों को अर्थोपार्जन के अवसर प्रदान करना है. उनकी ट्रेनिंग कार्यक्रम में दिव्यांगों को लकड़ी का सामान बनाने की 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसके बाद उन्हें प्लेसमेंट भी किया जाता है. अब तक, हजारों दिव्यांगों को इस प्रशिक्षण के माध्यम से रोजगार मिला है.

इंडिया गेट पर लगा मेला
इंडिया गेट पर लगा मेला (ETV Bharat)

परिवार का समर्थन

राम निवास का परिवार उनके लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है. उनके माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों के साथ-साथ 7 भाई-बहनों का परिवार है, जिसमें चार बहनें बड़ी हैं. परिवार का सबसे बड़ा बेटा होने के नाते राम निवास के ऊपर अभिभावकीय जिम्मेदारियों का बोझ था. लेकिन अब, जब उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, वह बेहतर तरीके से अपने परिवार का समर्थन कर पा रहे हैं. उनकी सालाना आय लगभग 4 लाख रुपये हो गई है, जिससे परिवार सामाजिक सम्मान भी प्राप्त कर रहा है.

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