बिलासपुर : हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले को लेकर निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है. मामले में कोर्ट ने पत्नी की याचिका पर भरण पोषण देने के निर्देश भी दिए हैं. निचली अदालत के फैसले में अदालत ने महिला के पति को नपुंसक माना था.साथ ही अलग रहने की इजाजत भी दी थी.जिसमें पति को पत्नी को भरण पोषण देना था.लेकिन पति ने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई. इस मामले हाईकोर्ट में पति ने अपनी दलील में कहा कि उसने शादी के समय ही अपनी शारीरिक कमजोरी पत्नी को बताई थी.उस दौरान पत्नी को इसमें कोई भी ऐतराज नहीं था.
पत्नी ने पति से मांगा तलाक : वहीं पत्नी अपनी याचिका में पति से तलाक लेना चाहती थी. पत्नी ने अपने वकील के माध्यम से कोर्ट को बताया कि उसका पति नपुंसक है.जिसके कारण वो शारीरिक सुख से वंचित रहती है. वैवाहिक अधिकार मिलने से वंचित होने के आधार पर उसने तलाक लिया है.निचली अदालत के तलाक के फैसले को हाईकोर्ट ने नहीं बदला और भरण पोषण जारी रखने के निर्देश दिए.
हाईकोर्ट ने नहीं बदला निचली अदालत का फैसला : तलाक के इस मामले में जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने परिवार न्यायालय के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि पति की नपुंसकता विवाह विच्छेद के लिए पर्याप्त आधार है. निचली अदालत के फैसले को बदला नहीं जा सकता. परिवार न्यायालय ने विधि सम्मत के आधार पर अपना फैसला सुनाया है. मामले को लेकर कोर्ट ने तलाक के फैसले को बरकरार रखा है. साथ की कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह विच्छेद के लिए पर्याप्त आधार के साथ ही पत्नी ऐसे मामलों में भी धारा 125 के तहत भरण पोषण राशि प्राप्त कर सकती है. कोर्ट ने पत्नी को भरण पोषण के रूप में प्रति माह 14 हजार रुपए देने का आदेश जारी किया है.