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बम और बारूद पर भारी पड़ा विकास, बस्तर में बदले हालात, सौर ऊर्जा से हो रही पढ़ाई - DEVELOPMENT IN BASTAR

बस्तर में बढ़ते विकास के संसाधनों से माओवाद प्रभावित इलाकों में बड़ा बदलाव नजर आने लगा है.

DEVELOPMENT IN BASTAR
बदल रहा है बस्तर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 3 hours ago

सुकमा: एक वक्त था जब बस्तर की पहचान बम के धमाकों और बारूद की गंध से होती थी. बीते एक दशक से बस्तर के लोगों की जिंदगी नई करवट ले रही है. बस्तर विकास की राह पर चल पड़ा है. बस्तर संभाग के सभी नक्सल प्रभावित जिले अब तेजी से विकास की दौड़ में बढ़ते जा रहे हैं. अब अबूझमाड़ से लेकर धुर नक्सल प्रभावित रहे टेकलगुडेम तक मोबाइल नेटवर्क आपका साथ नहीं छोड़ता. बस्तर के जिन घरों में कभी रेडियो पर आकाशवाणी का समाचार सुना जाता था वहां आज टीवी पहुंच चुका है. लोग दूरदर्शन के जरिए देश और दुनिया का समाचार जान रहे हैं बल्कि अपने जिले के मौसम का हाल भी पता कर रहे हैं.

बदल रहा है बस्तर: बदलते बस्तर की तस्वीर यहां के लोगों के चेहरे पर भी नजर आती है. बच्चे अब सौर ऊर्जा से जलने वाले बल्ब की रोशनी में अपना भविष्य संवार रहे हैं. युवा सेना की भर्ती में शामिल हो रहे हैं. खेल के मैदान में बस्तर और आदिम जनजाति का नाम रोशन कर रहे हैं. महिलाएं घर और खेत का काम निपटाकर घर में टीवी सेट पर फिल्में और धारावाहिक देख रही हैं. नक्सलियों ने विकास के जो रास्ते गांव वालों के लिए बंद किए थे अब वो एक एककर खुलते जा रहे हैं. ग्रामीण ये जान गए हैं कि विकास के दुश्मन सरकारी सिस्टम और उसके नुमाइंदे नहीं बल्कि ये माओवादी हैं. इन माओवादियों ने ही उनकी जिंदगी को बर्बाद करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.

अंतिम छोर तक पहुंचा विकास: कभी माओवादियों के गढ़ कहे जाने वाले पुवर्ती, सिलगेर और टेकलगुडेम जैसे इलाकों में बच्चे धूप निकलते ही अपना बस्ता संभाल स्कूल के लिए निकल जाते हैं. पुलिस ने जो कैंप इन इलाकों में बनाए हैं वहां गांव के बुजुर्ग इलाज के लिए पहुंचते हैं और अपनी बीमारी की दवाएं डॉक्टर से लेकर लौटते हैं. पहले जहां छोटी मोटी बीमारी से लोगों की मौत हो जाती थी वहीं अब केंद्र और राज्य की मदद से गंभीर बीमारियों का इलाज भी आयुष्मान कार्ड के जरिए आसानी से हो रहा है. यहां के युवा अब नक्सल हिंसा पर चर्चा नहीं करते बल्कि विकास पर बात करते हैं. बदलते बस्तर की इस तस्वीर से सरकार भी खुश है.

नियद नेल्लानार और लोन वर्राटू से बदली तस्वीर: नक्सलवाद के खात्मे के लिए और नक्सलियों के पुनर्वास के लिए सरकार ने योजनाएं चलाई. नियद नेल्लानार और लोन वर्राटू ऐसी ही दो योजनाएं हैं जिन्होने बस्तर की न सिर्फ तस्वीर बदली बल्कि माओवादियों की कमर भी तोड़ दी. सैकड़ों की संख्या में माओवादियों ने हथियार डालकर समाज की मुख्यधारा में जीवन बिताने का संकल्प लिया.

हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे गांव में टीवी होगा. पहली बार समाचार, धारावाहिक और फिल्में देखी. ऐसा लगा जैसे हम नई दुनिया से जुड़ रहे हैं. सौर लाइट और पंखों की कभी कल्पना नहीं की थी. गर्मी में अब ये पंखे हमें राहत देंगे. हम लोगों के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है. :बंजाम मडगु, ग्रामीण, पुवर्ती गांव

सौर लाइट से बच्चों की बढ़ाई आसान हो रही है. ऐसा लग रहा है जैसे हम नई दुनिया में आ गए हैं. :ग्रामीण, सुकमा

योजनाओं से आया परिवर्तन: कैंपों के स्थापित होने से ग्रामीणों को पीडीएस सिस्टम का लाभ उनके गांव में ही मिलने लगा. छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी के जरिए धुर नक्सल इलाकों में सोलर लाइटों की व्यवस्था की गई है. गांव में सोलर लाइट और पंखों का वितरण भी किया गया है. पहले जहां रात होते ही गांव वाले अपने अपने घरों में बंद हो जाते थे. अब माहौल बदल चुका है. रात के वक्त लोग बैठकर एक साथ टीवी देखते हैं. बच्चे सौर ऊर्जा की रोशनी में पढ़ाई करते हैं. महिलाएं भी सिलाई कढ़ाई का काम खाली वक्त में करती हैं.

पुवर्ती जैसे दूरदराज और माओवाद प्रभावित गांवों में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण पहुंचाना विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. ये प्रयास न केवल ग्रामीणों की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं बल्कि स्थायी ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा दे रहे हैं. :देवेश कुमार ध्रुव, कलेक्टर

सौर ऊर्जा बनेगा बेहतर विकल्प: लंबे वक्त से सुकमा जिला वन और पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में काम करता आ रहा है. सौर ऊर्जा के आने से इस दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा. जो पारंपरिक बिजली है उसपर भी हमारी आत्मनिर्भरता कम होगी. पर्यावरण को भी राहत मिलेगी. सौर ऊर्जा से प्रदूषण भी कम होगा. जल जंगल और जमीन तीनों की रक्षा भी होगी. आदिवासी हमेशा से जल जंगल और जमीन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं.

(सोर्स ANI)

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सुकमा: एक वक्त था जब बस्तर की पहचान बम के धमाकों और बारूद की गंध से होती थी. बीते एक दशक से बस्तर के लोगों की जिंदगी नई करवट ले रही है. बस्तर विकास की राह पर चल पड़ा है. बस्तर संभाग के सभी नक्सल प्रभावित जिले अब तेजी से विकास की दौड़ में बढ़ते जा रहे हैं. अब अबूझमाड़ से लेकर धुर नक्सल प्रभावित रहे टेकलगुडेम तक मोबाइल नेटवर्क आपका साथ नहीं छोड़ता. बस्तर के जिन घरों में कभी रेडियो पर आकाशवाणी का समाचार सुना जाता था वहां आज टीवी पहुंच चुका है. लोग दूरदर्शन के जरिए देश और दुनिया का समाचार जान रहे हैं बल्कि अपने जिले के मौसम का हाल भी पता कर रहे हैं.

बदल रहा है बस्तर: बदलते बस्तर की तस्वीर यहां के लोगों के चेहरे पर भी नजर आती है. बच्चे अब सौर ऊर्जा से जलने वाले बल्ब की रोशनी में अपना भविष्य संवार रहे हैं. युवा सेना की भर्ती में शामिल हो रहे हैं. खेल के मैदान में बस्तर और आदिम जनजाति का नाम रोशन कर रहे हैं. महिलाएं घर और खेत का काम निपटाकर घर में टीवी सेट पर फिल्में और धारावाहिक देख रही हैं. नक्सलियों ने विकास के जो रास्ते गांव वालों के लिए बंद किए थे अब वो एक एककर खुलते जा रहे हैं. ग्रामीण ये जान गए हैं कि विकास के दुश्मन सरकारी सिस्टम और उसके नुमाइंदे नहीं बल्कि ये माओवादी हैं. इन माओवादियों ने ही उनकी जिंदगी को बर्बाद करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.

अंतिम छोर तक पहुंचा विकास: कभी माओवादियों के गढ़ कहे जाने वाले पुवर्ती, सिलगेर और टेकलगुडेम जैसे इलाकों में बच्चे धूप निकलते ही अपना बस्ता संभाल स्कूल के लिए निकल जाते हैं. पुलिस ने जो कैंप इन इलाकों में बनाए हैं वहां गांव के बुजुर्ग इलाज के लिए पहुंचते हैं और अपनी बीमारी की दवाएं डॉक्टर से लेकर लौटते हैं. पहले जहां छोटी मोटी बीमारी से लोगों की मौत हो जाती थी वहीं अब केंद्र और राज्य की मदद से गंभीर बीमारियों का इलाज भी आयुष्मान कार्ड के जरिए आसानी से हो रहा है. यहां के युवा अब नक्सल हिंसा पर चर्चा नहीं करते बल्कि विकास पर बात करते हैं. बदलते बस्तर की इस तस्वीर से सरकार भी खुश है.

नियद नेल्लानार और लोन वर्राटू से बदली तस्वीर: नक्सलवाद के खात्मे के लिए और नक्सलियों के पुनर्वास के लिए सरकार ने योजनाएं चलाई. नियद नेल्लानार और लोन वर्राटू ऐसी ही दो योजनाएं हैं जिन्होने बस्तर की न सिर्फ तस्वीर बदली बल्कि माओवादियों की कमर भी तोड़ दी. सैकड़ों की संख्या में माओवादियों ने हथियार डालकर समाज की मुख्यधारा में जीवन बिताने का संकल्प लिया.

हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे गांव में टीवी होगा. पहली बार समाचार, धारावाहिक और फिल्में देखी. ऐसा लगा जैसे हम नई दुनिया से जुड़ रहे हैं. सौर लाइट और पंखों की कभी कल्पना नहीं की थी. गर्मी में अब ये पंखे हमें राहत देंगे. हम लोगों के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है. :बंजाम मडगु, ग्रामीण, पुवर्ती गांव

सौर लाइट से बच्चों की बढ़ाई आसान हो रही है. ऐसा लग रहा है जैसे हम नई दुनिया में आ गए हैं. :ग्रामीण, सुकमा

योजनाओं से आया परिवर्तन: कैंपों के स्थापित होने से ग्रामीणों को पीडीएस सिस्टम का लाभ उनके गांव में ही मिलने लगा. छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी के जरिए धुर नक्सल इलाकों में सोलर लाइटों की व्यवस्था की गई है. गांव में सोलर लाइट और पंखों का वितरण भी किया गया है. पहले जहां रात होते ही गांव वाले अपने अपने घरों में बंद हो जाते थे. अब माहौल बदल चुका है. रात के वक्त लोग बैठकर एक साथ टीवी देखते हैं. बच्चे सौर ऊर्जा की रोशनी में पढ़ाई करते हैं. महिलाएं भी सिलाई कढ़ाई का काम खाली वक्त में करती हैं.

पुवर्ती जैसे दूरदराज और माओवाद प्रभावित गांवों में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण पहुंचाना विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. ये प्रयास न केवल ग्रामीणों की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं बल्कि स्थायी ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा दे रहे हैं. :देवेश कुमार ध्रुव, कलेक्टर

सौर ऊर्जा बनेगा बेहतर विकल्प: लंबे वक्त से सुकमा जिला वन और पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में काम करता आ रहा है. सौर ऊर्जा के आने से इस दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा. जो पारंपरिक बिजली है उसपर भी हमारी आत्मनिर्भरता कम होगी. पर्यावरण को भी राहत मिलेगी. सौर ऊर्जा से प्रदूषण भी कम होगा. जल जंगल और जमीन तीनों की रक्षा भी होगी. आदिवासी हमेशा से जल जंगल और जमीन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं.

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