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देवरों ने जमकर लगाए रंग तो भाभियों ने बरसाए कोड़े, जानिए क्या है ये कोड़ा मार होली की प्रथा - Holi 2024

Kodamar Holi, ब्यावर जिले में धुलंडी के दूसरे दिन देवर भाभी की कोड़ा मार होली खेली गई. इस दौरान देवरों ने भाभियों को रंगों में भिगोया. इसपर भाभियों ने दवरों पर कपड़े से बने कोड़े पानी में भिगोकर बरसाए.

Kodamar Holi
Kodamar Holi
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 26, 2024, 7:06 PM IST

Updated : Mar 26, 2024, 9:44 PM IST

देवरों ने जमकर लगाए रंग तो भाभियों ने बरसाए कोड़े

ब्यावर. जिले की ऐतिहासिक देवर भाभी की कोड़ा मार होली मंगलवार को खेली गई. धूलंडी के दूसरे दिन जीनगर समाज की ओर से वर्षों से देवर भाभी की होली खेली जाती रही है. इसमें नटखट देवर भाभियों पर रंग डालते हैं. वहीं, भाभियां कपड़े का कोड़ा पानी में भिगोकर देवरों पर बरसाती हैं. इस अनूठी होली को देखने के लिए दूर दराज से बड़ी संख्या में लोग ब्यावर आए हैं.

जीनगर समाज के पदाधिकारी जवरी लाल सिसोदिया ने बताया कि देवर भाभी की होली धुलंडी के दूसरे दिन खेली जाती है. परंपरा के अनुसार कोड़ा मार होली से पहले दोपहर को चांग गेट स्थित चारभुजा नाथ मंदिर से शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा पाली बाजार और मुख्य बाजार से होते हुए मंगल बाजार के सामने पहुंची. यहां पहले से ही बड़े कड़ाव में सात तरह के रंग घोलकर रखे जाते हैं. सिसोदिया ने बताया कि कड़ाव में ठाकुर जी को भी रंग लगाया जाता है. इसके बाद देवर भाभी की प्रसिद्ध कोड़ा मार होली शुरू होती है. करीब 160 वर्षों से ब्यावर में कोड़ा मार होली खेली जा रही है. आजादी से पहले भी जीनगर समाज की ओर से इसी तरह से कोड़ा मार होली खेली जाती रही है. जीनगर समाज की इस वर्षों पुरानी परंपरा को जीवंत रखने के लिए समाज का प्रत्येक पुरुष और नारी सहयोग करते हैं.

पढ़ें. राजस्थान में यहां खेली जाती है कोड़ामार होली, सालों पुरानी पंरपरा निभा रहें ग्रामीण - Holi 2024

7 कड़ाव 7 रंग : मंगल बाजार के बीचों-बीच प्रसिद्ध देवर भाभी कोड़ा मार होली का आयोजन हुआ. रंग से भरे 7 बड़े कड़ाव होली खेलने के लिए रखे गए. इन कड़ाव में नीला, पीला, लाल, गुलाबी, हरा, केसरिया और गुलाबी रंग पानी में मिलाया जाता है. देवर इस रंग की बौछार भाभियों पर करते हैं और भाभियां बदले में नटखट देवरों की पिटाई कोड़े मारकर करती हैं.

भाभियां 2 दिन पहले से बनाकर रखती हैं कोड़ा : सिसोदिया ने बताया कि भाभियां कोड़ा बनाने की तैयारी चार दिन पहले से करतीं हैं. सूती लहरिया रंग के कपड़े को कोड़ा बनाने में उपयोग लिया जाता है. इस कपड़े को घुमाव देकर (बट) लगाया जाता है. इसके बाद दो दिन तक इस कपड़े को पानी में भिगो कर रखा जाता है. मंगलवार को जब देवर भाभी की होली शुरू हुई तो भाभियों ने देवरों पर जमकर कोड़े बरसाए. खास बात यह है कि देवर कोड़ों की मार को भाभियों का स्नेह और आशीर्वाद समझते हैं. नटखट देवर भाभियों को रंगों से भिगोते हैं, यानी देवर की शरारत पर भाभी की मार मिलती है. सही मायने में यह उत्सव देवर भाभी के स्नेह का प्रतीक है.

केवल जीनगर समाज के लोग ही होते है शामिल : देवर भाभी की कोड़ा मार होली में केवल जीनगर समाज के लोग ही शामिल रहते हैं. अन्य समाज के लोग इसमें शामिल नहीं होते. देवर भाभी की कोड़ा मार होली को देखने के लिए दूर-दराज से लोग ब्यावर आते हैं. 25 मिनट तक यह होली खेली गई. इस उत्सव का समापन चारभुजा नाथ की शोभायात्रा के वापस चांग गेट स्थित मंदिर पर पहुंचने पर हुआ. बुजुर्गों की ओर से शुरू की गई कोड़ा मार होली की परंपरा को अभी की पीढ़ी पूरी शिद्दत के साथ निभा रही है. वहीं, अगली पीढ़ी भी इस परंपरा को निभाने के लिए तैयार हो रही है.

देवरों ने जमकर लगाए रंग तो भाभियों ने बरसाए कोड़े

ब्यावर. जिले की ऐतिहासिक देवर भाभी की कोड़ा मार होली मंगलवार को खेली गई. धूलंडी के दूसरे दिन जीनगर समाज की ओर से वर्षों से देवर भाभी की होली खेली जाती रही है. इसमें नटखट देवर भाभियों पर रंग डालते हैं. वहीं, भाभियां कपड़े का कोड़ा पानी में भिगोकर देवरों पर बरसाती हैं. इस अनूठी होली को देखने के लिए दूर दराज से बड़ी संख्या में लोग ब्यावर आए हैं.

जीनगर समाज के पदाधिकारी जवरी लाल सिसोदिया ने बताया कि देवर भाभी की होली धुलंडी के दूसरे दिन खेली जाती है. परंपरा के अनुसार कोड़ा मार होली से पहले दोपहर को चांग गेट स्थित चारभुजा नाथ मंदिर से शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा पाली बाजार और मुख्य बाजार से होते हुए मंगल बाजार के सामने पहुंची. यहां पहले से ही बड़े कड़ाव में सात तरह के रंग घोलकर रखे जाते हैं. सिसोदिया ने बताया कि कड़ाव में ठाकुर जी को भी रंग लगाया जाता है. इसके बाद देवर भाभी की प्रसिद्ध कोड़ा मार होली शुरू होती है. करीब 160 वर्षों से ब्यावर में कोड़ा मार होली खेली जा रही है. आजादी से पहले भी जीनगर समाज की ओर से इसी तरह से कोड़ा मार होली खेली जाती रही है. जीनगर समाज की इस वर्षों पुरानी परंपरा को जीवंत रखने के लिए समाज का प्रत्येक पुरुष और नारी सहयोग करते हैं.

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7 कड़ाव 7 रंग : मंगल बाजार के बीचों-बीच प्रसिद्ध देवर भाभी कोड़ा मार होली का आयोजन हुआ. रंग से भरे 7 बड़े कड़ाव होली खेलने के लिए रखे गए. इन कड़ाव में नीला, पीला, लाल, गुलाबी, हरा, केसरिया और गुलाबी रंग पानी में मिलाया जाता है. देवर इस रंग की बौछार भाभियों पर करते हैं और भाभियां बदले में नटखट देवरों की पिटाई कोड़े मारकर करती हैं.

भाभियां 2 दिन पहले से बनाकर रखती हैं कोड़ा : सिसोदिया ने बताया कि भाभियां कोड़ा बनाने की तैयारी चार दिन पहले से करतीं हैं. सूती लहरिया रंग के कपड़े को कोड़ा बनाने में उपयोग लिया जाता है. इस कपड़े को घुमाव देकर (बट) लगाया जाता है. इसके बाद दो दिन तक इस कपड़े को पानी में भिगो कर रखा जाता है. मंगलवार को जब देवर भाभी की होली शुरू हुई तो भाभियों ने देवरों पर जमकर कोड़े बरसाए. खास बात यह है कि देवर कोड़ों की मार को भाभियों का स्नेह और आशीर्वाद समझते हैं. नटखट देवर भाभियों को रंगों से भिगोते हैं, यानी देवर की शरारत पर भाभी की मार मिलती है. सही मायने में यह उत्सव देवर भाभी के स्नेह का प्रतीक है.

केवल जीनगर समाज के लोग ही होते है शामिल : देवर भाभी की कोड़ा मार होली में केवल जीनगर समाज के लोग ही शामिल रहते हैं. अन्य समाज के लोग इसमें शामिल नहीं होते. देवर भाभी की कोड़ा मार होली को देखने के लिए दूर-दराज से लोग ब्यावर आते हैं. 25 मिनट तक यह होली खेली गई. इस उत्सव का समापन चारभुजा नाथ की शोभायात्रा के वापस चांग गेट स्थित मंदिर पर पहुंचने पर हुआ. बुजुर्गों की ओर से शुरू की गई कोड़ा मार होली की परंपरा को अभी की पीढ़ी पूरी शिद्दत के साथ निभा रही है. वहीं, अगली पीढ़ी भी इस परंपरा को निभाने के लिए तैयार हो रही है.

Last Updated : Mar 26, 2024, 9:44 PM IST
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