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गढ़वाली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग, श्रीनगर में गहन मंथन, नेगी दा ने समझाया 'सार' - Garhwali Eighth Schedule

श्रीनगर गढ़वाल में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन, साहित्यकारों ने लिया हिस्सा, गढ़वाली पर किया गहन मंथन

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 3 hours ago

Updated : 2 hours ago

GARHWALI EIGHTH SCHEDULE
गढ़वाली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग (ETV BHARAT)

श्रीनगर गढ़वाल: उत्तराखंड में लंबे समय से गढ़वाली को आठवीं सूची में शामिल करने की मांग की जा रही है. इसे लेकर साहित्यकार समय समय पर कार्यक्रमों, सेमिनार का आयोजन करते हैं. इसी कड़ी में श्रीनगर गढ़वाल के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के शैक्षणिक प्रशिक्षण केन्द्र चौरास में उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली तथा भाषा प्रयोगशाला गढ़वाल विवि द्वारा अखिल भारतीय गढ़वाली भाषा व्याकरण व मानकीकरण पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस सेमिनार में गढ़वाली को आठवीं सूची में शामिल करने की मांग को दोहराया गया.

क्या बोले गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी: कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा हमें नई पीढ़ी को अपनी भाषा भी विरासत में सौंपनी होगी, तभी हमारी संस्कृति बचेगी. नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा गढ़वाली बोली में विविधता है, जिसका एकीकरण करना साहित्यकारों के बड़ी चुनौती है. इसके लिए सभी को मिलजुल कर काम करने की जरूरत है. इस दौरान गढ़वाल विवि के अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो महावीर सिंह नेगी और कला संकाय की डीन प्रो मंजुला राणा ने गढ़वाली की बारीकियों के बारें में बताया. कार्यक्रम विशिष्ठ अतिथि गढ़वाली कुमाऊंनी, जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष मनवर सिंह रावत ने कहा हमें अपनी भाषा बचाने के लिए काम करना होगा. भाषा तभी बचेगी जब संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होगी. सभी ने एक मत में कहा नई पीढ़ी अपनी बोली से दूर होती जा रही है, सरकार को कोशिश करनी चाहिए की शिक्षा व्यवस्था में भी गढ़वाली को पाठ्यक्रम में लाया जाये.

गढ़वाली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग (ETV BHARAT)

ऑनलाइन क्लासेस के जरिये प्रवासियों को सिखाई जाएगी गढ़वाली: साहित्यकार डॉ. नंद किशोर हटवाल ने व्याख्यान के माध्यम से गढ़वाली के मानकीकरण को समझाया. उन्होंने कहा गढ़वाली में क्षेत्र भौगोलिक स्थिति के अनुसार बदलाव देखने को मिलते हैं. ऐसे में उस प्रारूप को व्यवहार में लाना होगा. इसे आसानी से हर कोई समझ व अपना सके. उन्होंने कहा श्रीनगरी गढ़वाली भाषा प्रारूप को व्यवहार में लाना सबसे बेहतर है. उन्होंने कहा मानकीकरण के बिना गढ़वाली का आधुनिकीकरण नहीं हो सकता है. उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने कहा 12 अक्तूबर से इंग्लैंड में रहने वाले प्रवासियों के लिए ऑनलाइन माध्यम से गढ़वाली सीखने की कक्षाओं का आयोजन किया जाएगा.

क्या है आठवीं अनुसूची: भारत विविधताओं वाला देश है. यहां हर राज्य, कस्बे, जिलों में विभिन्न प्रकार की बोलियां , भाषाएं बोली जाती हैं. ऐसे में भारतीय संविधान ने देश की 22 भाषाओं को आठवीं अनुसूची में रखा है. इसमें असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू शामिल हैं. इन 22 भाषाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है. लंबे समय से उतराखंड के भीतर भी कुमाऊनी और गढ़वाली बोली को आठवीं अनुसूची में रखे जाने की मांग की जा रही है. देश भर में 40 ऐसी भाषाएं हैं जिनको आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है.

पढ़ें- आठवीं अनुसूची में शामिल हों उत्तराखंडी बोली, सांसद तीरथ ने लोकसभा में उठाया मुद्दा

श्रीनगर गढ़वाल: उत्तराखंड में लंबे समय से गढ़वाली को आठवीं सूची में शामिल करने की मांग की जा रही है. इसे लेकर साहित्यकार समय समय पर कार्यक्रमों, सेमिनार का आयोजन करते हैं. इसी कड़ी में श्रीनगर गढ़वाल के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के शैक्षणिक प्रशिक्षण केन्द्र चौरास में उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली तथा भाषा प्रयोगशाला गढ़वाल विवि द्वारा अखिल भारतीय गढ़वाली भाषा व्याकरण व मानकीकरण पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस सेमिनार में गढ़वाली को आठवीं सूची में शामिल करने की मांग को दोहराया गया.

क्या बोले गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी: कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा हमें नई पीढ़ी को अपनी भाषा भी विरासत में सौंपनी होगी, तभी हमारी संस्कृति बचेगी. नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा गढ़वाली बोली में विविधता है, जिसका एकीकरण करना साहित्यकारों के बड़ी चुनौती है. इसके लिए सभी को मिलजुल कर काम करने की जरूरत है. इस दौरान गढ़वाल विवि के अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो महावीर सिंह नेगी और कला संकाय की डीन प्रो मंजुला राणा ने गढ़वाली की बारीकियों के बारें में बताया. कार्यक्रम विशिष्ठ अतिथि गढ़वाली कुमाऊंनी, जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष मनवर सिंह रावत ने कहा हमें अपनी भाषा बचाने के लिए काम करना होगा. भाषा तभी बचेगी जब संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होगी. सभी ने एक मत में कहा नई पीढ़ी अपनी बोली से दूर होती जा रही है, सरकार को कोशिश करनी चाहिए की शिक्षा व्यवस्था में भी गढ़वाली को पाठ्यक्रम में लाया जाये.

गढ़वाली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग (ETV BHARAT)

ऑनलाइन क्लासेस के जरिये प्रवासियों को सिखाई जाएगी गढ़वाली: साहित्यकार डॉ. नंद किशोर हटवाल ने व्याख्यान के माध्यम से गढ़वाली के मानकीकरण को समझाया. उन्होंने कहा गढ़वाली में क्षेत्र भौगोलिक स्थिति के अनुसार बदलाव देखने को मिलते हैं. ऐसे में उस प्रारूप को व्यवहार में लाना होगा. इसे आसानी से हर कोई समझ व अपना सके. उन्होंने कहा श्रीनगरी गढ़वाली भाषा प्रारूप को व्यवहार में लाना सबसे बेहतर है. उन्होंने कहा मानकीकरण के बिना गढ़वाली का आधुनिकीकरण नहीं हो सकता है. उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने कहा 12 अक्तूबर से इंग्लैंड में रहने वाले प्रवासियों के लिए ऑनलाइन माध्यम से गढ़वाली सीखने की कक्षाओं का आयोजन किया जाएगा.

क्या है आठवीं अनुसूची: भारत विविधताओं वाला देश है. यहां हर राज्य, कस्बे, जिलों में विभिन्न प्रकार की बोलियां , भाषाएं बोली जाती हैं. ऐसे में भारतीय संविधान ने देश की 22 भाषाओं को आठवीं अनुसूची में रखा है. इसमें असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू शामिल हैं. इन 22 भाषाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है. लंबे समय से उतराखंड के भीतर भी कुमाऊनी और गढ़वाली बोली को आठवीं अनुसूची में रखे जाने की मांग की जा रही है. देश भर में 40 ऐसी भाषाएं हैं जिनको आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है.

पढ़ें- आठवीं अनुसूची में शामिल हों उत्तराखंडी बोली, सांसद तीरथ ने लोकसभा में उठाया मुद्दा

Last Updated : 2 hours ago
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