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गणेश महोत्सव को लेकर देहरादून में सजे बाजार, इको फ्रेंडली मूर्तियों की बढ़ी डिमांड - Ganesh Mahotsav 2024

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 4, 2024, 4:19 PM IST

Updated : Sep 4, 2024, 6:25 PM IST

Ganesh Mahotsav 2024, Dehradun Statue Market, Clay Idol of Ganesha उत्तराखंड में गणेश महोत्सव की तैयारियां तेज हो गई हैं. गणपति की मूर्ति के लिए कारीगरों के पास ऑर्डर भी आने लगे हैं. इस बार पीओपी की मूर्ति के मुकाबले मिट्टी की मूर्तियों की डिमांड ज्यादा है.

Clay idol of Ganesha
गणेश महोत्सव को लेकर देहरादून में सजा बाजार (PHOTO- ETV Bharat)
गणेश महोत्सव को लेकर देहरादून में सजे बाजार (VIDEO- ETV Bharat)

देहरादूनः देशभर में गणेश महोत्सव की धूम देखी जा रही है. 7 सितंबर से शुरू हो रहे गणेश महोत्सव के लिए देहरादून में भगवान गणेश की मूर्तियों का बाजार सज चुका है. देहरादून के चकराता रोड स्थित कुम्हार मंडी में भगवान गणेश की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं. देहरादून में अन्य राज्यों से कलाकार आकर हर साल मूर्तियां बनाने का काम करते हैं. देहरादून के करनपुर स्थित बंगाली लाइब्रेरी में कोलकाता से कलाकार आकर पिछले 40 सालों से मूतियां बना रहे हैं. खास बात यह है कि ये कलाकार इको फ्रेंडली यानी मिट्टियों से बनी मूर्तियां ही तैयार करते हैं, जिनकी डिमांड बढ़ती जा रही है.

दरअसल, राज्य और केंद्र सरकार पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर दे रही है. ताकि लोग अपने त्योहारों को मनाने के साथ ही त्योहारों के दौरान उन वस्तुओं का इस्तेमाल करें, जिसका असर पर्यावरण पर ना पड़े. गणेश महोत्सव के अवसर पर देशभर में करोड़ों मूर्तियां बनाई जाती हैं, जिसमें अधिकांश प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियां शामिल होती हैं. क्योंकि पीओपी से बनी मूर्तियां काफी सस्ती होती हैं. जबकि मिट्टी से बनी मूर्तियां काफी महंगी होती हैं. यही कारण है कि लोग पर्यावरण संरक्षण का ध्यान न रखते हुए पीओपी से बनी मूर्तियों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से पर्यावरण संरक्षण के प्रति बड़ी जागरूकता के लिहाज से लोग मिट्टी से बनी मूर्तियों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं.

Ganesh Mahotsav 2024
उत्तराखंड में गणेश महोत्सव की धूम (PHOTO- ETV Bharat)

15 दिन में एक मूर्ति: कोलकाता से आकर देहरादून के धर्मपुर में मूर्ति बनाने का काम कर रहे कारीगर पांचू गोपाल ने बताया कि वो पिछले 40 सालों से देहरादून में मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. वे सिर्फ चिकनी मिट्टी से मूर्तियां बनाते हैं. हालांकि, मूर्ति में लकड़ी, कपड़ा और अन्य चीजों का भी इस्तेमाल किया जाता है. एक मूर्ति को तैयार करने में कम से कम 15 दिन का समय लगता है. क्योंकि मूर्ति के सूखने में काफी समय लग जाता है. जिसके बाद मूर्ति को पेंट कर उसका श्रृंगार किया जाता है. कारीगर ऑर्डर पर मूर्ति बनाने के साथ ही एडवांस में भी मूर्ति बनाकर रखते हैं. ऐसे में ग्राहक को जो मूर्ति पसंद आती है, वो उसको खरीद लेते हैं.

Ganesh Mahotsav 2024
पीओपी के मुकाबले मिट्टी की मूर्तियों की बढ़ी डिमांड (PHOTO- ETV Bharat)

दूषित नहीं होती मिट्टी की मूर्तियां: कारीगर ने बताया कि हर साल मूर्तियों का रुझान अलग-अलग रहता है. किसी साल सारी मूर्तियां बिक जाती हैं, तो किसी साल कई मूर्तियां नहीं बिक पाती हैं. ऐसे में उनके पास इन मूर्तियों को रखने की जगह न होने के चलते बनाई गई मूर्तियों को डिस्ट्रॉय करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं. लेकिन पीओपी से बनी मूर्तियां पानी में जल्दी से नहीं घुलती हैं. ऐसे में जब इन मूर्तियों का जल में विसर्जन किया जाता है तो उस दौरान पीओपी की मूर्तियां वैसे ही पानी में पड़ी रहती हैं, इससे नदी दूषित होती है.

मिट्टी की मूर्ति महंगी और अधिक मेहनत: उन्होंने कहा कि, वो पिछले 40 सालों से सिर्फ मिट्टी की ही मूर्ति बना रहे हैं. लेकिन तमाम ग्राहक आते हैं जो पीओपी से बनी मूर्तियां भी मांगते हैं. क्योंकि पीओपी से बनी मूर्तियों की कीमत काफी कम होती है. उसको बनाना भी काफी आसान होता है. क्योंकि मूर्ति बनाने के सांचे में पीओपी डालकर एक ही बार में मूर्ति तैयार कर दी जाती है. जबकि मिट्टी से मूर्ति बनाने में काफी समय लग जाता है. क्योंकि मिट्टी से मूर्ति बनाने में उन्हें सूखने समेत उसके श्रृंगार करने में काफी बारीकी से काम करना पड़ता है. जिसके चलते मिट्टी से बनी मूर्तियों की कीमत बढ़ जाती है.

Ganesh Mahotsav 2024
मिट्टी की मूर्ति बनाने से पर्यावरण को दूषित होने से बचाने का भी काम (PHOTO- ETV Bharat)

ऐसे बनती है मिट्टी की मूर्ति: कारीगर ने बताया कि पिछले 40 सालों से वो चिकनी मिट्टी की ही मूर्तियां बना रहे हैं. लेकिन एक बड़ी समस्या यही है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में मिट्टी उपलब्ध नहीं हो पाती है. अगर मिट्टी मिलती भी है तो उसके लिए उन्हें काफी अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है. मिट्टी की मूर्तियां बनाने में तीन-चार बार काम करना पड़ता है. क्योंकि पहले लकड़ी का स्टैंड तैयार किया जाता है. इसके बाद उस पर मिट्टी से डिजाइन बनाया जाता है. इसके बाद मिट्टी जब सूख जाती है तो उस पर कपड़ा लगाकर दोबारा से मिट्टी लगायी जाती है. फिर उसे सुखाया जाता है. लेकिन कई बार मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं. जिसके बाद फिर मिट्टी से उसकी फाइनल फिनिशिंग की जाती है. फिर सूखने के बाद पेंटिंग और श्रृंगार का काम शुरू होता है.

Ganesh Mahotsav 2024
भगवान गणेश के अलावा अन्य मूर्तियां भी डिमांड पर (PHOTO- ETV Bharat)

मिट्टी की मूर्ति की बढ़ी डिमांड: कारीगर पांचू गोपाल बताते हैं कि वे हर साल 150 से 200 मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं. अभी तक मूर्तियां दूकान से निकलनी शुरू नहीं हुई हैं. लेकिन खास बात है कि इस साल 150 मिट्टी की मूर्तियों का ऑर्डर पहले ही आ चुका है. जबकि इस साल 200 से अधिक मूर्तियों के बिकने की उम्मीद है. हमारे पास 2 हजार से लेकर 20 हजार तक कीमत की मूर्तियों का ऑर्डर आ चुका है. वहीं, देहरादून की कुम्हार मंडी में ही पीओपी की मूर्तियां बेचने वाले दुकानदार बताते हैं कि इस साल पीओपी की बनी मूर्तियों की डिमांड कम है. लिहाजा, जो लोग मिट्टी की मूर्ति के मुकाबले सस्ती मूर्तियां लेना चाहते हैं, वे ही पीओपी की मूर्ति की मांग कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः सितंबर महीने में कौन-कौन से प्रमुख त्योहार हैं, कब शुरू होगा पितृपक्ष, कब पधारेंगे गणपति बप्पा, जानें

गणेश महोत्सव को लेकर देहरादून में सजे बाजार (VIDEO- ETV Bharat)

देहरादूनः देशभर में गणेश महोत्सव की धूम देखी जा रही है. 7 सितंबर से शुरू हो रहे गणेश महोत्सव के लिए देहरादून में भगवान गणेश की मूर्तियों का बाजार सज चुका है. देहरादून के चकराता रोड स्थित कुम्हार मंडी में भगवान गणेश की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं. देहरादून में अन्य राज्यों से कलाकार आकर हर साल मूर्तियां बनाने का काम करते हैं. देहरादून के करनपुर स्थित बंगाली लाइब्रेरी में कोलकाता से कलाकार आकर पिछले 40 सालों से मूतियां बना रहे हैं. खास बात यह है कि ये कलाकार इको फ्रेंडली यानी मिट्टियों से बनी मूर्तियां ही तैयार करते हैं, जिनकी डिमांड बढ़ती जा रही है.

दरअसल, राज्य और केंद्र सरकार पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर दे रही है. ताकि लोग अपने त्योहारों को मनाने के साथ ही त्योहारों के दौरान उन वस्तुओं का इस्तेमाल करें, जिसका असर पर्यावरण पर ना पड़े. गणेश महोत्सव के अवसर पर देशभर में करोड़ों मूर्तियां बनाई जाती हैं, जिसमें अधिकांश प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियां शामिल होती हैं. क्योंकि पीओपी से बनी मूर्तियां काफी सस्ती होती हैं. जबकि मिट्टी से बनी मूर्तियां काफी महंगी होती हैं. यही कारण है कि लोग पर्यावरण संरक्षण का ध्यान न रखते हुए पीओपी से बनी मूर्तियों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से पर्यावरण संरक्षण के प्रति बड़ी जागरूकता के लिहाज से लोग मिट्टी से बनी मूर्तियों पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं.

Ganesh Mahotsav 2024
उत्तराखंड में गणेश महोत्सव की धूम (PHOTO- ETV Bharat)

15 दिन में एक मूर्ति: कोलकाता से आकर देहरादून के धर्मपुर में मूर्ति बनाने का काम कर रहे कारीगर पांचू गोपाल ने बताया कि वो पिछले 40 सालों से देहरादून में मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. वे सिर्फ चिकनी मिट्टी से मूर्तियां बनाते हैं. हालांकि, मूर्ति में लकड़ी, कपड़ा और अन्य चीजों का भी इस्तेमाल किया जाता है. एक मूर्ति को तैयार करने में कम से कम 15 दिन का समय लगता है. क्योंकि मूर्ति के सूखने में काफी समय लग जाता है. जिसके बाद मूर्ति को पेंट कर उसका श्रृंगार किया जाता है. कारीगर ऑर्डर पर मूर्ति बनाने के साथ ही एडवांस में भी मूर्ति बनाकर रखते हैं. ऐसे में ग्राहक को जो मूर्ति पसंद आती है, वो उसको खरीद लेते हैं.

Ganesh Mahotsav 2024
पीओपी के मुकाबले मिट्टी की मूर्तियों की बढ़ी डिमांड (PHOTO- ETV Bharat)

दूषित नहीं होती मिट्टी की मूर्तियां: कारीगर ने बताया कि हर साल मूर्तियों का रुझान अलग-अलग रहता है. किसी साल सारी मूर्तियां बिक जाती हैं, तो किसी साल कई मूर्तियां नहीं बिक पाती हैं. ऐसे में उनके पास इन मूर्तियों को रखने की जगह न होने के चलते बनाई गई मूर्तियों को डिस्ट्रॉय करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं. लेकिन पीओपी से बनी मूर्तियां पानी में जल्दी से नहीं घुलती हैं. ऐसे में जब इन मूर्तियों का जल में विसर्जन किया जाता है तो उस दौरान पीओपी की मूर्तियां वैसे ही पानी में पड़ी रहती हैं, इससे नदी दूषित होती है.

मिट्टी की मूर्ति महंगी और अधिक मेहनत: उन्होंने कहा कि, वो पिछले 40 सालों से सिर्फ मिट्टी की ही मूर्ति बना रहे हैं. लेकिन तमाम ग्राहक आते हैं जो पीओपी से बनी मूर्तियां भी मांगते हैं. क्योंकि पीओपी से बनी मूर्तियों की कीमत काफी कम होती है. उसको बनाना भी काफी आसान होता है. क्योंकि मूर्ति बनाने के सांचे में पीओपी डालकर एक ही बार में मूर्ति तैयार कर दी जाती है. जबकि मिट्टी से मूर्ति बनाने में काफी समय लग जाता है. क्योंकि मिट्टी से मूर्ति बनाने में उन्हें सूखने समेत उसके श्रृंगार करने में काफी बारीकी से काम करना पड़ता है. जिसके चलते मिट्टी से बनी मूर्तियों की कीमत बढ़ जाती है.

Ganesh Mahotsav 2024
मिट्टी की मूर्ति बनाने से पर्यावरण को दूषित होने से बचाने का भी काम (PHOTO- ETV Bharat)

ऐसे बनती है मिट्टी की मूर्ति: कारीगर ने बताया कि पिछले 40 सालों से वो चिकनी मिट्टी की ही मूर्तियां बना रहे हैं. लेकिन एक बड़ी समस्या यही है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में मिट्टी उपलब्ध नहीं हो पाती है. अगर मिट्टी मिलती भी है तो उसके लिए उन्हें काफी अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है. मिट्टी की मूर्तियां बनाने में तीन-चार बार काम करना पड़ता है. क्योंकि पहले लकड़ी का स्टैंड तैयार किया जाता है. इसके बाद उस पर मिट्टी से डिजाइन बनाया जाता है. इसके बाद मिट्टी जब सूख जाती है तो उस पर कपड़ा लगाकर दोबारा से मिट्टी लगायी जाती है. फिर उसे सुखाया जाता है. लेकिन कई बार मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं. जिसके बाद फिर मिट्टी से उसकी फाइनल फिनिशिंग की जाती है. फिर सूखने के बाद पेंटिंग और श्रृंगार का काम शुरू होता है.

Ganesh Mahotsav 2024
भगवान गणेश के अलावा अन्य मूर्तियां भी डिमांड पर (PHOTO- ETV Bharat)

मिट्टी की मूर्ति की बढ़ी डिमांड: कारीगर पांचू गोपाल बताते हैं कि वे हर साल 150 से 200 मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं. अभी तक मूर्तियां दूकान से निकलनी शुरू नहीं हुई हैं. लेकिन खास बात है कि इस साल 150 मिट्टी की मूर्तियों का ऑर्डर पहले ही आ चुका है. जबकि इस साल 200 से अधिक मूर्तियों के बिकने की उम्मीद है. हमारे पास 2 हजार से लेकर 20 हजार तक कीमत की मूर्तियों का ऑर्डर आ चुका है. वहीं, देहरादून की कुम्हार मंडी में ही पीओपी की मूर्तियां बेचने वाले दुकानदार बताते हैं कि इस साल पीओपी की बनी मूर्तियों की डिमांड कम है. लिहाजा, जो लोग मिट्टी की मूर्ति के मुकाबले सस्ती मूर्तियां लेना चाहते हैं, वे ही पीओपी की मूर्ति की मांग कर रहे हैं.

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Last Updated : Sep 4, 2024, 6:25 PM IST
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