नई दिल्ली: मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ चल रही जांच में एक साल के बाद भी कोई आरोप साबित नहीं हो पाता है, तो उस व्यक्ति की जब्त संपत्ति ईडी को वापस करनी होगी. जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने ये आदेश दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि संपत्ति जब्त होने के बाद 365 दिनों तक अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप साबित नहीं होते, तो जब्ती की अवधि स्वयं ही खत्म हो जाती है.
दरअसल हाईकोर्ट भूषण स्टील एंड पावर के महेंद्र खंडेलवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में महेंद्र खंडेलवाल की तरफ से कहा था कि फरवरी 2021 में ईडी ने उनके घर छापा मारकर ज्वैलरी और कई दस्तावेज जब्त किए थे. ईडी महेंद्र खंडेलवाल के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं कर पाई है. उसके बावजूद उनके घर से मिली ज्वैलरी और दस्तावेज वापस नहीं किए हैं. साथ ही यह भी कहा गया था कि याचिकाकर्ता की संपत्ति को 11 फरवरी, 2022 को ही जब्ती प्रक्रिया से बाहर कर देना चाहिए.
इसपर हाईकोर्ट ने साफ किया कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में लंबित अवधि की गिनती उस समय से शुरु होती है, जब से अदालत में केस चल रहा हो, लेकिन इसके तहत ईडी के समन को चुनौती देना, जब्ती प्रक्रिया को चुनौती देना शामिल नहीं है. ऐसे में एक साल के अंदर अगर जांच पूरी नहीं हो या आरोप साबित नहीं हो तो जब्त की गई संपत्ति वापस लौटानी होगी. कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत संपत्ति जब्त करने का प्रावधान काफी कड़ा है. इसलिए जांच एजेंसी को जब्ती कार्रवाई शुरू करने से पहले सोच विचार कर आगे बढ़ना चाहिए.
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