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पेट का बैक्टीरिया सांस की बीमारी के उपचार में मददगार, दिल्ली AIIMS के अध्ययन में निकला निष्कर्ष - Delhi AIIMS research

Delhi AIIMS study: दिल्ली AIIMS के चूहों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि पेट का बैक्टीरिया सांस और फेफड़ों की बीमारी से लड़ने में काफी मददगार होती है.

दिल्ली AIIMS
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Mar 9, 2024, 10:44 PM IST

नई दिल्ली: पेट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया सांस और फेफड़ों की बीमारी से लड़ने में मददगार होता है. इसके जरिए आईसीयू में भर्ती रहने के दौरान एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) की चपेट में आने वाले मरीजों का भी उपचार किया जा सकता है. दिल्ली एम्स के ताजा अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला है.

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले एम्स के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के डॉ. रूपेश श्रीवास्तव ने बताया कि यह अध्ययन प्रयोगशाला में चूहों पर किया गया है. शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रोबायोटिक के इस्तेमाल से सांस की बीमारी से पीड़ित आईसीयू में भर्ती इंसान भी जल्द ठीक हो सकते हैं. अध्ययन के मुताबिक, पेट यानी गट में पाया जाने वाला बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस रमनोसस फेफड़ों की बीमारी को जल्दी ठीक करने में मददगार है.

डॉ रूपेश ने आगे बताया कि आईसीयू में भर्ती होने वाले 10 प्रतिशत मरीज एआरडीएस की चपेट में आ जाते हैं. इसमें 40 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है. ऐसे में यह खोज काफी महत्वपूर्ण है. शोधकर्ताओं ने देखा कि चूहों में इस बैक्टीरिया की मात्रा गट में मौजूद होने से यह संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं न्यूट्रोफिल की मात्रा को सही से नियंत्रित करते हैं. यह न्यूट्रोफिल दोधार तलवार की तरह है.

ये फेफड़ों की कोशिकाओं को भरने में में मदद करते हैं. लेकिन, फेफड़ों से इनके लंबे समय तक भरे रहने से फेफड़ों के वायु कोष की क्षमता कम हो जाती है और फेफड़ों में पानी भरने लगता है. ये पेट में पाए जाने वाले यह अच्छे बैक्टीरिया फेफड़ों में न्यूट्रोफिल की मात्रा को सही से नियंत्रित रखते हैं. इस अध्ययन में पता चला कि सांस की गंभीर स्थिति एआरडीएस और सेप्टिक वाले 50 फीसदी चूहे बैक्टीरिया के इस्तेमाल से जिंदा रह सके. अब इस प्रयोग को इंसानों पर करने की तैयारी की जा रही है.

नई दिल्ली: पेट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया सांस और फेफड़ों की बीमारी से लड़ने में मददगार होता है. इसके जरिए आईसीयू में भर्ती रहने के दौरान एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) की चपेट में आने वाले मरीजों का भी उपचार किया जा सकता है. दिल्ली एम्स के ताजा अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला है.

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले एम्स के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के डॉ. रूपेश श्रीवास्तव ने बताया कि यह अध्ययन प्रयोगशाला में चूहों पर किया गया है. शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रोबायोटिक के इस्तेमाल से सांस की बीमारी से पीड़ित आईसीयू में भर्ती इंसान भी जल्द ठीक हो सकते हैं. अध्ययन के मुताबिक, पेट यानी गट में पाया जाने वाला बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस रमनोसस फेफड़ों की बीमारी को जल्दी ठीक करने में मददगार है.

डॉ रूपेश ने आगे बताया कि आईसीयू में भर्ती होने वाले 10 प्रतिशत मरीज एआरडीएस की चपेट में आ जाते हैं. इसमें 40 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है. ऐसे में यह खोज काफी महत्वपूर्ण है. शोधकर्ताओं ने देखा कि चूहों में इस बैक्टीरिया की मात्रा गट में मौजूद होने से यह संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं न्यूट्रोफिल की मात्रा को सही से नियंत्रित करते हैं. यह न्यूट्रोफिल दोधार तलवार की तरह है.

ये फेफड़ों की कोशिकाओं को भरने में में मदद करते हैं. लेकिन, फेफड़ों से इनके लंबे समय तक भरे रहने से फेफड़ों के वायु कोष की क्षमता कम हो जाती है और फेफड़ों में पानी भरने लगता है. ये पेट में पाए जाने वाले यह अच्छे बैक्टीरिया फेफड़ों में न्यूट्रोफिल की मात्रा को सही से नियंत्रित रखते हैं. इस अध्ययन में पता चला कि सांस की गंभीर स्थिति एआरडीएस और सेप्टिक वाले 50 फीसदी चूहे बैक्टीरिया के इस्तेमाल से जिंदा रह सके. अब इस प्रयोग को इंसानों पर करने की तैयारी की जा रही है.

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