दमोह। दशहरा और दीपावली के बीच का समय सिद्धियों, जादू टोना के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. ऐसे में किसी के किए कराए को उतारने की भी परंपरा है. ऐसी ही कुछ विशिष्ट परंपराएं बुंदेलखंड में सदियों से चली आ रही हैं. उन्हीं में से एक परंपरा है जाल फेंककर लोगों को फंसाने की. दरअसल, यह वह जाल नहीं है जिसमें लोगों को फंसाकर लूटा जाता है. बल्कि यह तो मछली फंसाने वाला जाल है, जो रैकवार माझी समाज के युवा घर-घर जाकर लोगों पर फेंकते हैं और उनसे दस्तूर के स्वरूप कुछ शगुन के रुपए लेते हैं. यह परंपरा लोगों की सुख समृद्धि, खुशहाली के साथ ही नजर उतारने की मानी जाती है.
रैकवार माझी समाज के लोग निकलते हैं जाल लेकर
बुंदेलखंड के समूचे अंचल में रैकवार माझी समाज द्वारा दीपावली के दूसरे दिन घर-घर जाकर परिवार के सभी सदस्यों के लिए मछली पकड़ने वाला जाल ओढ़ाया जाता है. इसी के तहत समाज के युवाओं ने शनिवार को मालिया मिल परिसर पहुंचकर पूर्व मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता जयंत मलैया को जाल फेंककर फंसाया. यह परम्परा विलुप्त हो रही थी जिसे सहेजने के लिए दमोह में मांझी समाज के संभागीय अध्यक्ष राकेश धुरिया, जिला अध्यक्ष राकेश रैकवार, ग्रामीण जिला अध्यक्ष मोंटी रैकवार, समाज के वरिष्ठ लेखराम रैकवार, पवन रैकवार, नरेश रैकवार, लकी रैकवार द्वारा विभिन्न परिवारों की आल बलाएं नज़र उतारकर तालाब में विसर्जित की गई.
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मछली का जाल ओढ़ाने की ये है मान्यता
इस दौरान रैकवार माझी समाज के ग्रामीण जिला अध्यक्ष मोंटी रैकवार ने बताया "बरसों पुरानी ये परम्परा आज भी जारी है. बुजुर्गों ने हमें बताया है कि गांव-गांव में रैकवार माझी समाज के लोग मछली पकड़ने का जाल लेकर लोगों के घरों में जाते हैं. परिवार के लोगों को यह जाल ओढ़ाया जाता है और माना जाता है कि इसके बाद उस घर परिवार के लोगों के जीवन की समस्याएं इस जाल में फंसकर बाहर आ जाती हैं." मछली के जाल को शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इसे डालने से घर में शुभता और समृद्धि आती है. इससे नकारात्मक ऊर्जा का निवारण होता है. इसके साथ ही मछली के जाल को स्वास्थ्य और सुख का प्रतीक भी माना जाता है.