रायपुर: दलहनी फसलों में मटर एक महत्वपूर्ण फसल है. मटर की खेती कर कम खर्च में ज्यादा मुनाफा लिया जा सकता है. किस तरह के मौसम में मटर की खेती की जानी चाहिए. जलवायु कैसा होना चाहिए. कैसी मिट्टी और जगह होनी चाहिए. इससे जुड़ी जानकारी महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुल सचिव आरएल खरे से जानते हैं.
मटर की खेती के लिए कैसी हो जमीन: महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुल सचिव आरएल खरे ने बताया कि दलहनी फसल में मटर की खेती करने के लिए जमीन अम्लीय होनी चाहिए. काली या कन्हार मिट्टी को उपयुक्त माना गया है. जल जमाव वाली जगह पर मटर की खेती नहीं करनी चाहिए.
जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं दलहनी फसलें: कुलसचिव बताते हैं कि मटर की जड़ों में पाया जाने वाला बैक्टीरिया जमीन की उर्वरा शक्ति को अगली फसल के लिए बनाए रखता है. ये बैक्टीरिया मिट्टी के लिए काफी महत्वपूर्ण माना गया है. दलहनी फसल लगाने से अगली फसल के लिए खाद का निर्माण अपने आप हो जाता है यानी मिट्टी अगली फसल के लिए अपने आप ही तैयार हो जाती है. इससे दलहनी फसलों को खाद की मात्रा भी कम देनी होती है. जमीन में केवल 20 प्रतिशत खाद डालने से ही फसल का अच्छा उत्पादन होने लगाता है.
किसान ऐसे करें मटर की खेती: महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुल सचिव आरएल खरे ने आगे बताया कि मटर की खेती करते समय एक हेक्टेयर जमीन में 80 से 100 किलोग्राम मटर के बीज की जरूरत पड़ती है. प्रदेश के किसान मटर की खेती करते समय बीज निगम के माध्यम से प्रमाणित बीज के साथ ही बोनविले और रचना जैसी किस्म लगा सकते हैं. बीज का उपचार करना भी जरूरी है. बीज का उपचार करने के लिए राईजोबियम कल्चर का इस्तेमाल करना चाहिए.
कितने दिन में मिलने लगते हैं मटर: मटर की खेती करने पर 30 से 40 दिनों में मटर में फूल और फलिया आने लग जाती हैं.मटर की खेती अच्छे से करने पर किसानों को काफी मुनाफा मिलता है. किसानों को अच्छा लाभ के साथ ही अच्छा उत्पादन भी मिलता है. मटर, सब्जी फसल के साथ ही बीज के काम में भी आता है.
मटर में गुण: वानिकी विश्वविद्यालय के कुल सचिव बताते हैं कि मटर में 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है जो शरीर और हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना गया है.