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छिंदवाड़ा में अनोखा गोदड़देव मंदिर, भक्त के नाम से है मंदिर की पहचान, जमीन के भीतर विराजित हैं बाबा भोलेनाथ

Chhindwara Godaddev Temple Shiv: छिंदवाड़ा में भगवान शिव का अनोखा मंदिर है. अनोखा इसलिए की क्योंकि यह मंदिर एक भक्त गोदड़देव के नाम पर है. मंदिर में जमीन के भीतर बाबा भोलेनाथ विराजित हैं.

Chhindwara Godaddev Temple Shiv
छिंदवाड़ा में अनोखा गोदड़देव मंदिर
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 21, 2024, 9:37 AM IST

Updated : Jan 21, 2024, 10:31 AM IST

छिंदवाड़ा में अनोखा गोदड़देव मंदिर

छिंदवाड़ा। आमतौर पर मंदिर भगवान के नाम से पहचाने जाते हैं, लेकिन छिंदवाड़ा जिले का एक ऐसा शिव मंदिर है जो भक्त के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर को गोदड़देव कहा जाता है. बताया जाता है कि यहां पर महान संत गोदड़देव हुआ करते थे. जो भगवान शिव की आराधना करते थे और उन्हीं के नाम से मंदिर का नाम गोदड़देव पड़ गया. जो भी भगवान के दर्शन को आता है वह भक्त के भी दर्शन करता है.

Chhindwara Godaddev Temple Shiv
जमीन के भीतर विराजित हैं बाबा भोलेनाथ

कलचुरी कालीन है मंदिर

मंदिर में लिखे ऐतिहासिक विवरण के अनुसार, विदर्भ देवगिरी जो अब दौलतबाद के नाम से जाना जाता है. यहां के राजाओं ने इस क्षेत्र में राज किया है जो त्रिपुरी कलचुरी राजाओं के समकालीन थे. यादव राजा महादेव (जिनकी मृत्यु 1241 ईस्वी में हुई) एवं रामचंद्र के मंत्री हिमाद्री ने विदर्भ राज में कई स्थानों पर अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था. हिमाद पंथी शैली के नाम से इन मंदिरों को पहचान मिलती है. कल्चुरियों के समकालीन एवं राज्य सीमा से लगे होने के कारण इस मंदिर का वास्तु शिल्प कल्चुरियन स्थापत्य से मिलता जुलता है. इसका निर्माण लगभग 13वीं सदी ईस्वी में हुआ होगा. इस मंदिर में एक गोदड़देव नाम के भक्त पूजा करते थे और वे यही समाधि में लीन हुआ करते थे. इसी वजह से इस मंदिर का नाम गोदड़देव हो गया.

भूमित्र शैली का है शिव मंदिर

भगवान शंकर का यह मंदिर भूमित्र शैली का है. जमीन के नीचे गर्भ ग्रह बीच में मंडप तथा मंदिर मध्य तक का पृष्ठ भाग अपने मूल स्वरूप में है. जमीन से करीब 10 से 15 फीट नीचे शिवलिंग स्थापित है. जिसके दर्शन के लिए सीढ़ियों के सहारे जाना पड़ता है. बीच में माता गौरी और भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं. गर्भ गृह एवं मंडप के ध्वस्त होने पर स्थानीय लोगों ने जीर्णोद्धार कराया है. मंदिर में देवनागरी व संस्कृत भाषा के शिलालेख अभी भी मौजूद हैं.

Chhindwara Godaddev Temple
मंदिर में विराजे नंदी महाराज

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भक्त कहते हैं विश्वकर्मा ने बनाया मंदिर

मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी और भक्तों का मानना है कि मंदिर का निर्माण किसी भी आम व्यक्ति के द्वारा नहीं कराया गया है. बल्कि यह मंदिर खुद भगवान विश्वकर्मा की कलाकारी से बनाया गया है. यहां पर भगवान शंकर स्वयं प्रकट हुए थे. जिस तरह से सतपुड़ा की पहाड़ियां पचमढ़ी में भक्त चौरागढ़ और भूरा भगत ने भगवान शंकर की आराधना की वैसे ही गोदड़देव ने भगवान की आराधना नीलकंठी गांव के जंगलों में की थी और भगवान यहां पर प्रकट हुए थे.

मकर संक्रांति और सावन में लगता है मेला

वैसे तो भगवान शंकर के दर्शन के लिए साल भर यहां भक्त आते हैं. लेकिन मकर संक्रांति और सावन के महीने में यहां पर बड़ा मेला लगता है. जिसमें लाखों की संख्या में भक्त भगवान के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. अब राज्य सरकार के संस्कृति विभाग ने भी गोदड़देव मंदिर को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया है.

छिंदवाड़ा में अनोखा गोदड़देव मंदिर

छिंदवाड़ा। आमतौर पर मंदिर भगवान के नाम से पहचाने जाते हैं, लेकिन छिंदवाड़ा जिले का एक ऐसा शिव मंदिर है जो भक्त के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर को गोदड़देव कहा जाता है. बताया जाता है कि यहां पर महान संत गोदड़देव हुआ करते थे. जो भगवान शिव की आराधना करते थे और उन्हीं के नाम से मंदिर का नाम गोदड़देव पड़ गया. जो भी भगवान के दर्शन को आता है वह भक्त के भी दर्शन करता है.

Chhindwara Godaddev Temple Shiv
जमीन के भीतर विराजित हैं बाबा भोलेनाथ

कलचुरी कालीन है मंदिर

मंदिर में लिखे ऐतिहासिक विवरण के अनुसार, विदर्भ देवगिरी जो अब दौलतबाद के नाम से जाना जाता है. यहां के राजाओं ने इस क्षेत्र में राज किया है जो त्रिपुरी कलचुरी राजाओं के समकालीन थे. यादव राजा महादेव (जिनकी मृत्यु 1241 ईस्वी में हुई) एवं रामचंद्र के मंत्री हिमाद्री ने विदर्भ राज में कई स्थानों पर अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था. हिमाद पंथी शैली के नाम से इन मंदिरों को पहचान मिलती है. कल्चुरियों के समकालीन एवं राज्य सीमा से लगे होने के कारण इस मंदिर का वास्तु शिल्प कल्चुरियन स्थापत्य से मिलता जुलता है. इसका निर्माण लगभग 13वीं सदी ईस्वी में हुआ होगा. इस मंदिर में एक गोदड़देव नाम के भक्त पूजा करते थे और वे यही समाधि में लीन हुआ करते थे. इसी वजह से इस मंदिर का नाम गोदड़देव हो गया.

भूमित्र शैली का है शिव मंदिर

भगवान शंकर का यह मंदिर भूमित्र शैली का है. जमीन के नीचे गर्भ ग्रह बीच में मंडप तथा मंदिर मध्य तक का पृष्ठ भाग अपने मूल स्वरूप में है. जमीन से करीब 10 से 15 फीट नीचे शिवलिंग स्थापित है. जिसके दर्शन के लिए सीढ़ियों के सहारे जाना पड़ता है. बीच में माता गौरी और भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं. गर्भ गृह एवं मंडप के ध्वस्त होने पर स्थानीय लोगों ने जीर्णोद्धार कराया है. मंदिर में देवनागरी व संस्कृत भाषा के शिलालेख अभी भी मौजूद हैं.

Chhindwara Godaddev Temple
मंदिर में विराजे नंदी महाराज

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भक्त कहते हैं विश्वकर्मा ने बनाया मंदिर

मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी और भक्तों का मानना है कि मंदिर का निर्माण किसी भी आम व्यक्ति के द्वारा नहीं कराया गया है. बल्कि यह मंदिर खुद भगवान विश्वकर्मा की कलाकारी से बनाया गया है. यहां पर भगवान शंकर स्वयं प्रकट हुए थे. जिस तरह से सतपुड़ा की पहाड़ियां पचमढ़ी में भक्त चौरागढ़ और भूरा भगत ने भगवान शंकर की आराधना की वैसे ही गोदड़देव ने भगवान की आराधना नीलकंठी गांव के जंगलों में की थी और भगवान यहां पर प्रकट हुए थे.

मकर संक्रांति और सावन में लगता है मेला

वैसे तो भगवान शंकर के दर्शन के लिए साल भर यहां भक्त आते हैं. लेकिन मकर संक्रांति और सावन के महीने में यहां पर बड़ा मेला लगता है. जिसमें लाखों की संख्या में भक्त भगवान के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. अब राज्य सरकार के संस्कृति विभाग ने भी गोदड़देव मंदिर को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया है.

Last Updated : Jan 21, 2024, 10:31 AM IST
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