बिलासपुर: छत्तीसगढ़ आर्म्ड फोर्स के एक आरक्षक ने अपनी प्रमोशन से संबंधति याचिका हाईकोर्ट में दायर की है. इस याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए डीजीपी और डीआईजी को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में सीएएफ आरक्षक किरण कुमार निषाद और पूर्णानंद ने याचिका दायर की थी. इस पीटिशन पर ही कोर्ट ने यह एक्शन लिया है.
क्या है पूरा केस समझिए: आरक्षक किरण कुमार निषाद और पूर्णानंद ने जो याचिका दायर की है. छत्तीसगढ़ विशेष सशस्त्र बल 1973 के नियम 58 में एक प्रावधान है. जिसके तहत अगर कोई आरक्षक बुनियादी प्रशिक्षण के बाद प्रथम स्थान प्राप्त कर ऑल राउन्ड बेस्ट घोषित किया जाता है. तो उसे ज्वाइनिंग दिनांक से एक पद उच्च प्रधान आरक्षक के पद पर प्रमोशन प्रदान किया जाएगा. जबकि किरण कुमार निषाद और पूर्णानंद के साथ ऐसा नहीं हुआ. बेसिक ट्रेनिंग में दोनों ने प्रथम स्थान हासिल किया, उसके बावजूद भी उपपुलिस महानिरीक्षक छत्तीसगढ़ सुरक्षाबल ने उन्हें प्रधान आरक्षक यानी की हेड कॉन्स्टेबल के पद पर प्रमोशन नहीं दिया. इसी वजह से उन्हें कोर्ट का रुख करना पड़ा.
कोर्ट ने केस में लिया संज्ञान: याचिका की सुनवाई के बाद कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश के डीजीपी और डीआईजी को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. दोनों आरक्षकों ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वकील अभिषेक पांडेय और दुर्गा मेहर के जरिए रिट याचिका दायर की थी. जिसमें यह उल्लेख किया गया कि छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल सीएएफ में कॉन्सटेबल के पद पर पहली नियुक्ति हुई थी. छत्तीसगढ़ विशेष सशस्त्र बल नियम 1973 के नियम 58 में यह प्रावधान है कि यदि कोई आरक्षक बुनियादी प्रशिक्षण के बाद प्रथम स्थान प्राप्त कर ऑल राउन्ड बेस्ट घोषित किया जाता है. तो उसकी ज्वाइनिंग डेट से एक पोस्ट ऊपर का प्रमोशन दिया जाएगा. इस केस में आरक्षक के ऊपर प्रधान आरक्षक पद होता है इसिलए उन्हें यह पद मिलना चाहिए. इस केस में दूसरे पक्ष से यह कहा गया कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की तरफ से 31.07.2007 और 16.11.2007 को आदेश जारी कर आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिये जाने का प्रावधान खत्म कर दिया गया है.
पीड़ित पक्ष के वकील ने क्या कहा: इस पर पीड़ित पक्ष यानी कि दोनों आरक्षकों की तरफ से कहा गया कि छत्तीसगढ़ विशेष सशस्त्र बल नियम, 1973 के नियम 58 में ऑल राउन्ड बेस्ट कॉन्सटेबल को आउट ऑट टर्न प्रमोशन प्रदान किये जाने का प्रावधान है. इस नियम में संशोधन का अधिकार सिर्फ छत्तीसगढ़ शासन को राज्यपाल के अनुमोदन बाद प्रदान किया गया है. पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को नियम 58 में संशोधन का कोई अधिकार नहीं है. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद हाईकोर्ट ने डीजीपी और डाआईजी को नोटिस जारी किया है.