लखनऊ : सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने हाईकोर्ट के आदेश पर ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunal) यानि डीआरटी के रिटायर पीठासीन अधिकारी के खिलाफ FIR दर्ज की है. आरोप है कि उन्होंने बैंक से लोन लेकर भागने वाली कंपनी के पक्ष में रिटायरमेंट के बाद आदेश जारी किया था. सीबीआई अब इस मामले में विस्तृत जांच करेगी.
सीबीआई के इंस्पेक्टर अखिलेश त्रिपाठी ने यह FIR दर्ज कराई है. इसके मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बैंक ऑफ बड़ौदा की याचिका पर डीआरटी के पूर्व पीठसीन अधिकारी के खिलाफ FIR दर्ज कर सीबीआई जांच के आदेश दिए थे.
जांच करने पर पता चला कि वर्ष 2012 में मेसेर्स सागा इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड ने बैंक ऑफ बड़ौदा से टर्म लोन लिया था. इसके एवज में 2 संपत्तियों को बंधक रखा था. दिसंबर 2017 को लोन NPA (Non Performing Asset) हो गया. इस दौरान कंपनी पर एक करोड़ से अधिक की रकम बकाया थी.
बैंक की ओर से दोनों संपत्तियों को कब्जे में लेकर उनकी नीलामी कर दी गई. सीबीआई के इंस्पेक्टर के अनुसार बैंक द्वारा संपत्तियों की नीलामी करने के विरोध में लोन लेने वाली कंपनी की डायरेक्टर सुमित्रा देवी ने ऋण वसूली न्यायाधिकरण, लखनऊ (डीआरटी ) के समक्ष वाद दायर किया था.
इसमें बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा बिक्री के संबंध में की गई कार्रवाई को चुनौती दी गई थी. जांच में सामने आया कि, डीआरटी के तत्कालीन पीठासीन अधिकारी एजाज हुसैन खान ने 18 सितंबर 2024 को निर्णय दे दिया. यह लोन लेने वाली कंपनी के पक्ष में था.
खास बात ये है कि जिस दिन यह आदेश पारित किया गया था, उस दिन पीठासीन अधिकारी छुट्टी पर थे. वह उस दौरान रिटायर भी हो चुके थे. जांच में सामने आया कि, इसी मामले में 27 सितंबर 2022 को एक शुद्धि आदेश पारित किया. बताया कि इस आदेश को 18 के बजाय 24 सितंबर को पारित किया गया था. गलती से 18 सितंबर लिखा गया.
जबकि यह केस 24 सितंबर को सूचिबद्ध था ही नहीं. सीबीआई के अनुसार तत्कालीन पीठासीन अधिकारी एजाज हुसैन ने यह आदेश रिटायर होने के बाद पारित किया. इसके बाद तारीखों में हेरफेर करने की कोशिश की. कंपनी के अधिवक्ता सैय्यद मोहम्मद फुरकान ने भी उनका साथ दिया. सीबीआई ने दोनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है.
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