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Rajasthan: 7 सीटों के चुनावी दंगल पर टिकी सियासी नजर, यहां जानिये सीटवार समीकरण और दावेदार - RAJASTHAN BY ELECTION

7 सीटों पर उपचुनाव होने हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जीत का दंभ भर रहे हैं. हर सीट का गणित देखिए इस रिपोर्ट में.

विधानसभा उपचुनाव 2024
विधानसभा उपचुनाव 2024 (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 17, 2024, 5:15 PM IST

जयपुर : राजस्थान की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद अब टिकट के दावेदारों को लेकर सक्रियता बढ़ गई है. कांग्रेस और बीजेपी के साथ अन्य राजनीतिक दल भी गुणा-भाग में लगे हैं. बीजेपी अपना होमवर्क पहले ही पूरा कर चुकी है, जबकि कांग्रेस आलाकमान के भरोसे है. टिकट की दौड़ में शामिल नेता जयपुर से दिल्ली तक पूरी जोर आजमाइश में लगे हैं. ऐसे में कौन होगा दावेदार देखिए इस रिपोर्ट में.

इस उपचुनाव में भाजपा के पास खोने को कम और पाने को ज्यादा है. राजस्थान की सत्ता में भाजपा सरकार है, तो ऐसे में इन सात सीटों पर भाजपा को प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. हालांकि, इन सात सीटों में से भाजपा के पास खोने को कम और पाने को बहुत कुछ है. इन 7 सीटों में भाजपा के पास केवल सलूंबर सीट थी. भाजपा लगातार कांग्रेस की सीट छीनने की बात करती रही है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा कि उनकी तैयारी पहले से ही चल रही थी. इस बार जो कांग्रेस और अन्य राजनीतक पार्टियों के पास सीटें हैं, उन्हें भी छीनकर सभी 7 सीटों पर जीत दर्ज करेंगे.

दोनों ही पार्टियों ने किए जीत के दावे (ETV Bharat Jaipur)

इसे भी पढ़ें- सात सीटों पर उपचुनाव: कांग्रेस ने किया कमेटियों का गठन, संगठन और चुनाव प्रभारी बनाए

राठौड़ ने उपचुनाव में किसी भी तरह के गठबंधन को लेकर साफ इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि हम अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे. प्रत्याशियों के नामों का पैनल केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दिया है, अब वो जल्द ही निर्णय लेंगे. बीजेपी हरियाणा में मिली जीत से उत्साहित है, जबकि कांग्रेस को लगता है कि हरियाणा का फार्मूला राजस्थान में काम नहीं करेगा. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह ने कहा कि उपचुनाव को लेकर पार्टी की सभी तैयारी पूरी है. प्रत्याशियों को लेकर अंतिम निर्णय आलाकमान को करना है. विधानसभा उपचुनाव में समझौता होना या नहीं होना, और किसी दल के साथ समझौता होना या नहीं होना, यह सब बातें पार्टी आलाकमान तय करेगा. आलाकमान गठबंधन पर कोई फैसला लेगा तो हम उस फैसले के साथ जाएंगे अन्यथा हमारी तैयारी है. हम चुनाव मजबूती से लड़ेंगे भी और जीतेंगे भी.

यह है सीटवार गणित और दावेदार

1 खींवसर : 2023 के चुनाव में खींवसर विधानसभा सीट वैसे तो राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के खाते में गई थी. यहां से आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल विधायक बन कर विधानसभा पहुंचे थे. बेनीवाल का मुकाबला विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तक अपने ही करीबी रहे रेवंतराम डांगा से था. डांगा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हनुमान का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए और बेनीवाल को कड़ी टक्कर दी. दोनों के बीच हार-जीत का करीब 2 हजार वोट का ही अंतर रहा. अब इस सीट पर आरएलपी पूर्व में विधायक रहे हनुमान बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल पर ही दांव खेल सकती है, जबकि बीजेपी रेवंतराम डांगा पर ही दांव खेल सकती है. डांगा के साथ पूर्व सांसद सीआर चौधरी और ज्योति मिर्धा भी दावेदार माने जा रहे हैं, जबकि कांग्रेस हरेंद्र मिर्धा के बेटे रघुवेन्द्र मिर्धा और बिंदु चौधरी में से एक को उम्मीदवार बना सकती है.

इसे भी पढ़ें- राजस्थान विधानसभा उपचुनाव की समीक्षा: महाजन ने अधिकारी-कार्मिकों को अधिक संवेदनशील और सतर्क रहकर कार्य करने के दिए निर्देश

2 झुंझुनू : जाट बाहुल्य झुंझुनू विधानसभा सीट वैसे तो कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है, लेकिन इस बार बीजेपी हरियाणा चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले जाट नेता और पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया पर भी दांव खेल सकती है. माना जा रहा है कि हरियाणा चुनाव के बाद में केंद्रीय नेतृत्व की नजर में सतीश पूनिया का कद काफी बढ़ गया है. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस के गढ़ को ढहाने के लिए सतीश पूनिया को चुनाव मैदान में उतार सकती है. हालांकि, सतीश पूनिया अपने चुनाव लड़ने की दावेदारी को पहले खारिज कर चुके हैं. दूसरे दावेदार के रूप में देखें तो बीजेपी की तरफ से राजेंद्र भामू भी मजबूत कैंडिडेट के रूप में देखे जा रहे हैं. राजेंद्र भामू 2018 में भाजपा के प्रत्याशी थे. 2023 में उन्हें टिकट नहीं मिला. उनकी जगह बबलू चौधरी को टिकट दिया गया. झुंझुनू में बीजेपी को हमेशा अपने ही नेताओं की बगावत के कारण हार का सामना करना पड़ा. 2018 में जब भामू को टिकट मिला तो बबलू चौधरी निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और जब 2023 में बबलू चौधरी को टिकट मिला तो भामू निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतर गए, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला. हालांकि, झुंझुनूं विधानसभा सीट पर कांग्रेस के मजबूत दावेदार की बात करें तो बृजेन्द्र ओला की पत्नी राजबाला, बेटे अमित ओला और बहु आकांक्षा ओला का नाम माना जा रहा है.

3 दौसा : दौसा विधानसभा सीट वैसे तो बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा का गढ़ माना जाता है, लेकिन बीते दो चुनाव 2018 और 23 से कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया हुआ है. बीजेपी के सियासी समीकरण के हिसाब से देखें तो बीजेपी वहां से ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेलती आ रही है, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी कुछ बदलाव कर सकती है. यहां पर किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को बीजेपी मैदान में उतार सकती है. इसके साथ बीजेपी ब्राह्मण और एससी चेहरे पर भी दांव खेलने की तैयारी में है, जिसमें ब्राह्मण चेहरे के रूप में रतन तिवारी को भी मजबूत दावेदार माना जा रहा है. तिवारी संगठन के मजबूत नेताओं में माने जाते हैं. वहीं, पूर्व विधायक शंकर लाल शर्मा का भी नाम चर्चाओं में है. एससी फैक्टर के हिसाब से देखें तो नंदलाल बंशीवाल को भी पार्टी चुनाव मैदान में उतारने पर विचार कर रही है. वहीं, कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस पूर्व मंत्री और सांसद मुरारी लाल मीणा की पत्नी सविता मीणा या बेटी निहारिका मीणा को मैदान में उतार सकती है. इसके अलावा राजस्थान यूनिवर्सिटी के पूर्व महासचिव नरेश मीणा और पूर्व विधायक जीआर खटाणा की मजबूत दावेदारी मानी जा रही है.

इसे भी पढ़ें- देवली उनियारा में सचिन पायलट और हरीश मीणा की जोड़ी लगाएगी हैट्रिक या भाजपा लहराएगी जीत का परचम

4 देवली-उनियारा : ये विधानसभा सीट वैसे तो हमेशा परिवर्तित सीटों में से रही है. हालांकि, पिछले दो चुनाव से कांग्रेस के हरीश मीणा यहां से लगातार विधायक बनते आ रहे हैं. उससे पहले बीजेपी के प्रत्याशी राजेंद्र गुर्जर विधायक रहे हैं. बीजेपी ने 2023 के चुनाव में राजेंद्र गुर्जर का टिकट काटकर गुर्जर आंदोलन के अगवा रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी इस बार किसी ऐसे चेहरे पर दांव खेलना चाह रही है, जिससे गुर्जर और मीणा समीकरण का तोड़ निकाला जा सके. माना जा रहा है कि बीजेपी पूर्व में इसी सीट से विधायक और कैबिनेट मंत्री रहे प्रभु लाल सैनी को मैदान में उतार सकती है. वहीं, पार्टी पूर्व में विधायक रहे राजेंद्र गुर्जर को लेकर भी गंभीरता से विचार कर रही है. हालांकि, सीट पर पूर्व सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया भी दावेदारी जता रहे हैं. वहीं, महिला चेहरे के हिसाब से देखें तो राष्ट्रीय मंत्री अलका गुर्जर का नाम भी दावेदारी के रूप में सामने है. वहीं, कांग्रेस के लिहाज से पूर्व केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष रामनारायण मीणा और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व विधायक धीरज गुर्जर का नाम भी दावेदारों में है.

5 चौरासी : आदिवासी बाहुल्य सीटों में शामिल चौरासी विधानसभा सीट वैसे तो भारत आदिवासी पार्टी की मजबूत सीट मानी जाती है. यहां पर पिछले दो चुनाव से लगातार भारत आदिवासी पार्टी के नेता राजकुमार रोत जीतते आ रहे हैं. बीएपी इस बार यहां पोपट खोखरिया को टिकट दे सकती है. इसके अलावा बीएपी से जुड़े अनिल और दिनेश को भी मौका मिल सकता है. इसके अलावा 2 बार से हार रही बीजेपी और कांग्रेस इस सीट को फिर से अपने कब्जे में लेने का प्रयास कर रहे हैं. हालाकि, इस सीट पर कांग्रेस बीएपी के साथ गठबंधन की संभावना बन रही है. गठबंधन की स्थिति में ये सीट बीएपी अपने पास ही रखने का प्रयास करेगी. वहीं, गठबंधन नहीं होने पर कांग्रेस यहां से पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा को फिर से मैदान में उतार सकती है. इसके अलावा भगोरा के परिवार से ही रूपचंद भगोरा या निमिषा भगोरा को भी मौका मिल सकता है. वहीं, बीजेपी से पूर्व मंत्री सुशील कटारा के साथ सीमलवाड़ा के पूर्व प्रधान नानूराम परमार या चिखली क्षेत्र से पूर्व प्रधान महेंद्र बरजोड़ को टिकिट दे सकती है.

इसे भी पढ़ें- राजस्थान विधानसभा उपचुनाव-2024 की तारीखों का ऐलान, यहां देखें किस जिले के कितने क्षेत्र में लगी आचार सहिंता

6 सलूंबर : यह विधानसभा सीट से विधायक अमृत लाल मीणा के निधन के बाद खाली हुई है. यह सीट बीजेपी के लिहाज से मजबूत मानी जा सकती है. इस सीट पर बीजेपी अमृत लाल मीणा के परिवार के सदस्य को उम्मीदवार बना सकती है. इसके साथ अविनाश मीणा की दावेदारी मानी जा रही है. वहीं, कांग्रेस की बात करें तो 4 बार विधायक रह चुके रघुवीर मीणा या उनकी पत्नी बसंती मीणा पर कांग्रेस दांव खेल सकती है.

7 रामगढ़ : यह विधानसभा सीट कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन के बाद खाली हुई. यह सीट कांग्रेस के लिहाज से मजबूत मानी जा रही है. कांग्रेस इस सीट पर जुबेर खान की पत्नी और पूर्व विधायक साफिया जुबेर खान को प्रत्याशी बना सकती है. इसके साथ ही खान के बेटे आर्यन जुबेर खान को भी दावेदार माना रहा है, जबकि बीजेपी से सुखवंत सिंह, पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा, जय आहूजा और पूर्व विधायक बनवारी लाल सिंघल दावेदार माने जा रहे हैं.

जयपुर : राजस्थान की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद अब टिकट के दावेदारों को लेकर सक्रियता बढ़ गई है. कांग्रेस और बीजेपी के साथ अन्य राजनीतिक दल भी गुणा-भाग में लगे हैं. बीजेपी अपना होमवर्क पहले ही पूरा कर चुकी है, जबकि कांग्रेस आलाकमान के भरोसे है. टिकट की दौड़ में शामिल नेता जयपुर से दिल्ली तक पूरी जोर आजमाइश में लगे हैं. ऐसे में कौन होगा दावेदार देखिए इस रिपोर्ट में.

इस उपचुनाव में भाजपा के पास खोने को कम और पाने को ज्यादा है. राजस्थान की सत्ता में भाजपा सरकार है, तो ऐसे में इन सात सीटों पर भाजपा को प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. हालांकि, इन सात सीटों में से भाजपा के पास खोने को कम और पाने को बहुत कुछ है. इन 7 सीटों में भाजपा के पास केवल सलूंबर सीट थी. भाजपा लगातार कांग्रेस की सीट छीनने की बात करती रही है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा कि उनकी तैयारी पहले से ही चल रही थी. इस बार जो कांग्रेस और अन्य राजनीतक पार्टियों के पास सीटें हैं, उन्हें भी छीनकर सभी 7 सीटों पर जीत दर्ज करेंगे.

दोनों ही पार्टियों ने किए जीत के दावे (ETV Bharat Jaipur)

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राठौड़ ने उपचुनाव में किसी भी तरह के गठबंधन को लेकर साफ इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि हम अपने दम पर चुनाव लड़ेंगे. प्रत्याशियों के नामों का पैनल केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दिया है, अब वो जल्द ही निर्णय लेंगे. बीजेपी हरियाणा में मिली जीत से उत्साहित है, जबकि कांग्रेस को लगता है कि हरियाणा का फार्मूला राजस्थान में काम नहीं करेगा. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह ने कहा कि उपचुनाव को लेकर पार्टी की सभी तैयारी पूरी है. प्रत्याशियों को लेकर अंतिम निर्णय आलाकमान को करना है. विधानसभा उपचुनाव में समझौता होना या नहीं होना, और किसी दल के साथ समझौता होना या नहीं होना, यह सब बातें पार्टी आलाकमान तय करेगा. आलाकमान गठबंधन पर कोई फैसला लेगा तो हम उस फैसले के साथ जाएंगे अन्यथा हमारी तैयारी है. हम चुनाव मजबूती से लड़ेंगे भी और जीतेंगे भी.

यह है सीटवार गणित और दावेदार

1 खींवसर : 2023 के चुनाव में खींवसर विधानसभा सीट वैसे तो राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के खाते में गई थी. यहां से आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल विधायक बन कर विधानसभा पहुंचे थे. बेनीवाल का मुकाबला विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तक अपने ही करीबी रहे रेवंतराम डांगा से था. डांगा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हनुमान का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए और बेनीवाल को कड़ी टक्कर दी. दोनों के बीच हार-जीत का करीब 2 हजार वोट का ही अंतर रहा. अब इस सीट पर आरएलपी पूर्व में विधायक रहे हनुमान बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल पर ही दांव खेल सकती है, जबकि बीजेपी रेवंतराम डांगा पर ही दांव खेल सकती है. डांगा के साथ पूर्व सांसद सीआर चौधरी और ज्योति मिर्धा भी दावेदार माने जा रहे हैं, जबकि कांग्रेस हरेंद्र मिर्धा के बेटे रघुवेन्द्र मिर्धा और बिंदु चौधरी में से एक को उम्मीदवार बना सकती है.

इसे भी पढ़ें- राजस्थान विधानसभा उपचुनाव की समीक्षा: महाजन ने अधिकारी-कार्मिकों को अधिक संवेदनशील और सतर्क रहकर कार्य करने के दिए निर्देश

2 झुंझुनू : जाट बाहुल्य झुंझुनू विधानसभा सीट वैसे तो कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है, लेकिन इस बार बीजेपी हरियाणा चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले जाट नेता और पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया पर भी दांव खेल सकती है. माना जा रहा है कि हरियाणा चुनाव के बाद में केंद्रीय नेतृत्व की नजर में सतीश पूनिया का कद काफी बढ़ गया है. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस के गढ़ को ढहाने के लिए सतीश पूनिया को चुनाव मैदान में उतार सकती है. हालांकि, सतीश पूनिया अपने चुनाव लड़ने की दावेदारी को पहले खारिज कर चुके हैं. दूसरे दावेदार के रूप में देखें तो बीजेपी की तरफ से राजेंद्र भामू भी मजबूत कैंडिडेट के रूप में देखे जा रहे हैं. राजेंद्र भामू 2018 में भाजपा के प्रत्याशी थे. 2023 में उन्हें टिकट नहीं मिला. उनकी जगह बबलू चौधरी को टिकट दिया गया. झुंझुनू में बीजेपी को हमेशा अपने ही नेताओं की बगावत के कारण हार का सामना करना पड़ा. 2018 में जब भामू को टिकट मिला तो बबलू चौधरी निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और जब 2023 में बबलू चौधरी को टिकट मिला तो भामू निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतर गए, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला. हालांकि, झुंझुनूं विधानसभा सीट पर कांग्रेस के मजबूत दावेदार की बात करें तो बृजेन्द्र ओला की पत्नी राजबाला, बेटे अमित ओला और बहु आकांक्षा ओला का नाम माना जा रहा है.

3 दौसा : दौसा विधानसभा सीट वैसे तो बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा का गढ़ माना जाता है, लेकिन बीते दो चुनाव 2018 और 23 से कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया हुआ है. बीजेपी के सियासी समीकरण के हिसाब से देखें तो बीजेपी वहां से ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेलती आ रही है, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी कुछ बदलाव कर सकती है. यहां पर किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को बीजेपी मैदान में उतार सकती है. इसके साथ बीजेपी ब्राह्मण और एससी चेहरे पर भी दांव खेलने की तैयारी में है, जिसमें ब्राह्मण चेहरे के रूप में रतन तिवारी को भी मजबूत दावेदार माना जा रहा है. तिवारी संगठन के मजबूत नेताओं में माने जाते हैं. वहीं, पूर्व विधायक शंकर लाल शर्मा का भी नाम चर्चाओं में है. एससी फैक्टर के हिसाब से देखें तो नंदलाल बंशीवाल को भी पार्टी चुनाव मैदान में उतारने पर विचार कर रही है. वहीं, कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस पूर्व मंत्री और सांसद मुरारी लाल मीणा की पत्नी सविता मीणा या बेटी निहारिका मीणा को मैदान में उतार सकती है. इसके अलावा राजस्थान यूनिवर्सिटी के पूर्व महासचिव नरेश मीणा और पूर्व विधायक जीआर खटाणा की मजबूत दावेदारी मानी जा रही है.

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4 देवली-उनियारा : ये विधानसभा सीट वैसे तो हमेशा परिवर्तित सीटों में से रही है. हालांकि, पिछले दो चुनाव से कांग्रेस के हरीश मीणा यहां से लगातार विधायक बनते आ रहे हैं. उससे पहले बीजेपी के प्रत्याशी राजेंद्र गुर्जर विधायक रहे हैं. बीजेपी ने 2023 के चुनाव में राजेंद्र गुर्जर का टिकट काटकर गुर्जर आंदोलन के अगवा रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी इस बार किसी ऐसे चेहरे पर दांव खेलना चाह रही है, जिससे गुर्जर और मीणा समीकरण का तोड़ निकाला जा सके. माना जा रहा है कि बीजेपी पूर्व में इसी सीट से विधायक और कैबिनेट मंत्री रहे प्रभु लाल सैनी को मैदान में उतार सकती है. वहीं, पार्टी पूर्व में विधायक रहे राजेंद्र गुर्जर को लेकर भी गंभीरता से विचार कर रही है. हालांकि, सीट पर पूर्व सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया भी दावेदारी जता रहे हैं. वहीं, महिला चेहरे के हिसाब से देखें तो राष्ट्रीय मंत्री अलका गुर्जर का नाम भी दावेदारी के रूप में सामने है. वहीं, कांग्रेस के लिहाज से पूर्व केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष रामनारायण मीणा और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व विधायक धीरज गुर्जर का नाम भी दावेदारों में है.

5 चौरासी : आदिवासी बाहुल्य सीटों में शामिल चौरासी विधानसभा सीट वैसे तो भारत आदिवासी पार्टी की मजबूत सीट मानी जाती है. यहां पर पिछले दो चुनाव से लगातार भारत आदिवासी पार्टी के नेता राजकुमार रोत जीतते आ रहे हैं. बीएपी इस बार यहां पोपट खोखरिया को टिकट दे सकती है. इसके अलावा बीएपी से जुड़े अनिल और दिनेश को भी मौका मिल सकता है. इसके अलावा 2 बार से हार रही बीजेपी और कांग्रेस इस सीट को फिर से अपने कब्जे में लेने का प्रयास कर रहे हैं. हालाकि, इस सीट पर कांग्रेस बीएपी के साथ गठबंधन की संभावना बन रही है. गठबंधन की स्थिति में ये सीट बीएपी अपने पास ही रखने का प्रयास करेगी. वहीं, गठबंधन नहीं होने पर कांग्रेस यहां से पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा को फिर से मैदान में उतार सकती है. इसके अलावा भगोरा के परिवार से ही रूपचंद भगोरा या निमिषा भगोरा को भी मौका मिल सकता है. वहीं, बीजेपी से पूर्व मंत्री सुशील कटारा के साथ सीमलवाड़ा के पूर्व प्रधान नानूराम परमार या चिखली क्षेत्र से पूर्व प्रधान महेंद्र बरजोड़ को टिकिट दे सकती है.

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6 सलूंबर : यह विधानसभा सीट से विधायक अमृत लाल मीणा के निधन के बाद खाली हुई है. यह सीट बीजेपी के लिहाज से मजबूत मानी जा सकती है. इस सीट पर बीजेपी अमृत लाल मीणा के परिवार के सदस्य को उम्मीदवार बना सकती है. इसके साथ अविनाश मीणा की दावेदारी मानी जा रही है. वहीं, कांग्रेस की बात करें तो 4 बार विधायक रह चुके रघुवीर मीणा या उनकी पत्नी बसंती मीणा पर कांग्रेस दांव खेल सकती है.

7 रामगढ़ : यह विधानसभा सीट कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन के बाद खाली हुई. यह सीट कांग्रेस के लिहाज से मजबूत मानी जा रही है. कांग्रेस इस सीट पर जुबेर खान की पत्नी और पूर्व विधायक साफिया जुबेर खान को प्रत्याशी बना सकती है. इसके साथ ही खान के बेटे आर्यन जुबेर खान को भी दावेदार माना रहा है, जबकि बीजेपी से सुखवंत सिंह, पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा, जय आहूजा और पूर्व विधायक बनवारी लाल सिंघल दावेदार माने जा रहे हैं.

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