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इंटरनेशनल फेंसिंग चैंपियन हरिहर सिंह राजपूत तंंगहाली में जीवन जीने को मजबूर, सरकार से मदद की आस - पैरालंपिक फेंसिंग कॉम्पिटिशन

bilaspur International fencing champion: बिलासपुर के रहने वाले फेंसिंग चैंपियन हरिहर सिंह राजपूत नौकरी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. पैसों की तंगी के कारण हरिहर कर्ज लेकर अपना परिवार चला रहे हैं. हरिहर सिंह को सरकार से मदद की आस है.

Bilaspur Fencing champion Harihar Singh Rajput
फेंसिंग चैंपियन हरिहर सिंह राजपूत
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Mar 3, 2024, 10:20 PM IST

नौकरी से लिए जद्दोजहद कर रहे हरिहर सिंह राजपूत

बिलासपुर: बिलासपुर में तलवारबाजी पिछले 20 सालों से खेली जा रही है. शहर ने कई अच्छे तलवारबाजों को तैयार किया है. दरअसल, बिलासपुर शहर के विजयापुरम अटल आवास में रहने वाले हरिहर सिंह राजपूत एक दिव्यांग खिलाड़ी हैं. हालांकि ये पैदाइशी दिव्यांग नहीं हैं. डॉक्टर के गलत इंजेक्शन देने के कारण इनका एक पैर काम करना बंद कर दिया. इन्होंने तलवारबाजी में अपनी अलग ही पहचान बनाई है. हरिहर नेशनल, इंटरनेशनल पैरालंपिक फेंसिंग कॉम्पिटिशन में हिस्सा ले चुके हैं. ये कई पदक अपने नाम भी कर चुके हैं.

चैंपियन हरिहर सिंह राजपूत तंगहाली में जीवन जीने को मजबूर: दरअसल, हरिहर बिलासपुर के जिला खेल परिसर में प्रैक्टिस करते हैं. हरिहर अपने खेल के दम पर देश के कई बड़े शहरों में अपना बेहतर प्रदर्शन दे चुके हैं. 12 नेशनल और इटली में आयोजित 1 इंटरनेशनल पैरालंपिक फेंसिंग कॉम्पिटिशन में ये हिस्सा ले चुके हैं. इन्होंने अपने प्रदर्शन से दर्शकों और पैरालंपिक एसोसिएशन का दिल जीत लिया है. हरिहर पढ़ाई में भी काफी होनहार रहे हैं. इंग्लिश लिटरेचर में इन्होंने एमए किया है. साथ ही पीजीडीसीए सहित इलेक्ट्रिशियन में आईटीआई की ट्रेनिंग की है. वावजूद इसके इनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. ये अपने लिए एक सरकारी नौकरी चाहते हैं. इसके लिए वे कई बार प्रयास भी किए हैं. हालांकि उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई है. नौकरी न होने से ये हरिहर को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

गोलगप्पा बेचकर चलाते हैं परिवार: बिलासपुर के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी हरिहर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि इनको अपना परिवार चलाने के लिए लोगों से कर्ज लेना पड़ रहा है. पिता पानीपुरी बेचते हैं. इससे परिवार के 8 सदस्यों का पेट भरता है. हरिहर का एक भाई भी था, जो घर की आर्थिक सहायता करता था लेकिन उसका भी निधन हो गया. अब उसके दो बच्चों की जिम्मेदारी हरिहर और उसके पिता पर आ गई है. हरिहर अपने खेल के माध्यम से एक सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं. वह इसके लिए कई बार प्रयास भी किए हैं लेकिन अब तक उनको नौकरी नहीं मिल पाई है. हरिहर आज भी बेरोजगार है. फिलहाल हरिहर 16वीं पैरालंपिक नेशनल फेंसिंग कॉम्पिटिशन में तमिलनाडु के कोंयबटूर जाने वाले हैं. हालांकि हरिहर का खेल उसे कुछ दिला नहीं पा रहा है. ऐसे में वह अब इस खेल को छोड़ने तक की बात कहने लगे हैं.

अब छोड़ दूंगा खेलना: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान हरिहर सिंह राजपूत कहते हैं कि, " अब खेलना छोड़ देंगे. लाखों रुपए लगाकर पिछले 18 सालों से खेल रहे हैं. कई नेशनल और इंटरनेशनल गेम्स खेलने के बाद भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा. इतनी पढ़ाई की है कि उसके दम पर छोटी सी सरकारी नौकरी मिल सकती थी. हालांकि अब तक मुझे कुछ हासिल नहीं हुआ है. परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी पिता के भरोसे है. पिता भी इतना कम कमाते हैं कि वह सब का पेट नहीं भर सकते. यही कारण है कि कई बार लोगों से कर्ज भी लेना पड़ रहा है." हरिहर के पिता ने बताया कि, " मेरे दूसरे बेटे की मौत हो चुकी है. उसकी पत्नी अपने मायके चली गई. उसके दो बच्चे 8 लोग परिवार में हैं. सबका पेट पाल रहे हैं, अब और हरिहर के खेल का खर्च नहीं उठा सकते हैं."

नौकरी में दिव्यंगों के लिए मात्र एक दो पद: बता दें कि हरिहर की दिव्यांगता 65 फीसदी है. वह एक पैर से कमजोर हैं. पिछले साल हरिहर का एक्सीडेंट हो गया था. हादसे में पैर की हड्डी टूट गई थी. उसमें रॉड लगा हुआ है. वह कई बार केंद्र और राज्य सरकार की वैकेंसी पर नौकरी के लिए आवेदन किए हैं, लेकिन दिव्यांगों के लिए वैकेंसी कम निकलती है. इसमें उनका चयन नहीं हो पाता है. यही कारण है कि आर्थिक तंगी से वो जूझ रहे हैं. अगर नौकरी नहीं मिली तो ये खेल भी छोड़ देंगे.अगर ऐसा हुआ तो एक अच्छा खिलाड़ी गुमनामी के अंधेरे में खो जाएगा.

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चैंपियन हरिहर सिंह राजपूत तंगहाली में जीवन जीने को मजबूर: दरअसल, हरिहर बिलासपुर के जिला खेल परिसर में प्रैक्टिस करते हैं. हरिहर अपने खेल के दम पर देश के कई बड़े शहरों में अपना बेहतर प्रदर्शन दे चुके हैं. 12 नेशनल और इटली में आयोजित 1 इंटरनेशनल पैरालंपिक फेंसिंग कॉम्पिटिशन में ये हिस्सा ले चुके हैं. इन्होंने अपने प्रदर्शन से दर्शकों और पैरालंपिक एसोसिएशन का दिल जीत लिया है. हरिहर पढ़ाई में भी काफी होनहार रहे हैं. इंग्लिश लिटरेचर में इन्होंने एमए किया है. साथ ही पीजीडीसीए सहित इलेक्ट्रिशियन में आईटीआई की ट्रेनिंग की है. वावजूद इसके इनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. ये अपने लिए एक सरकारी नौकरी चाहते हैं. इसके लिए वे कई बार प्रयास भी किए हैं. हालांकि उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई है. नौकरी न होने से ये हरिहर को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

गोलगप्पा बेचकर चलाते हैं परिवार: बिलासपुर के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी हरिहर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि इनको अपना परिवार चलाने के लिए लोगों से कर्ज लेना पड़ रहा है. पिता पानीपुरी बेचते हैं. इससे परिवार के 8 सदस्यों का पेट भरता है. हरिहर का एक भाई भी था, जो घर की आर्थिक सहायता करता था लेकिन उसका भी निधन हो गया. अब उसके दो बच्चों की जिम्मेदारी हरिहर और उसके पिता पर आ गई है. हरिहर अपने खेल के माध्यम से एक सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं. वह इसके लिए कई बार प्रयास भी किए हैं लेकिन अब तक उनको नौकरी नहीं मिल पाई है. हरिहर आज भी बेरोजगार है. फिलहाल हरिहर 16वीं पैरालंपिक नेशनल फेंसिंग कॉम्पिटिशन में तमिलनाडु के कोंयबटूर जाने वाले हैं. हालांकि हरिहर का खेल उसे कुछ दिला नहीं पा रहा है. ऐसे में वह अब इस खेल को छोड़ने तक की बात कहने लगे हैं.

अब छोड़ दूंगा खेलना: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान हरिहर सिंह राजपूत कहते हैं कि, " अब खेलना छोड़ देंगे. लाखों रुपए लगाकर पिछले 18 सालों से खेल रहे हैं. कई नेशनल और इंटरनेशनल गेम्स खेलने के बाद भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा. इतनी पढ़ाई की है कि उसके दम पर छोटी सी सरकारी नौकरी मिल सकती थी. हालांकि अब तक मुझे कुछ हासिल नहीं हुआ है. परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी पिता के भरोसे है. पिता भी इतना कम कमाते हैं कि वह सब का पेट नहीं भर सकते. यही कारण है कि कई बार लोगों से कर्ज भी लेना पड़ रहा है." हरिहर के पिता ने बताया कि, " मेरे दूसरे बेटे की मौत हो चुकी है. उसकी पत्नी अपने मायके चली गई. उसके दो बच्चे 8 लोग परिवार में हैं. सबका पेट पाल रहे हैं, अब और हरिहर के खेल का खर्च नहीं उठा सकते हैं."

नौकरी में दिव्यंगों के लिए मात्र एक दो पद: बता दें कि हरिहर की दिव्यांगता 65 फीसदी है. वह एक पैर से कमजोर हैं. पिछले साल हरिहर का एक्सीडेंट हो गया था. हादसे में पैर की हड्डी टूट गई थी. उसमें रॉड लगा हुआ है. वह कई बार केंद्र और राज्य सरकार की वैकेंसी पर नौकरी के लिए आवेदन किए हैं, लेकिन दिव्यांगों के लिए वैकेंसी कम निकलती है. इसमें उनका चयन नहीं हो पाता है. यही कारण है कि आर्थिक तंगी से वो जूझ रहे हैं. अगर नौकरी नहीं मिली तो ये खेल भी छोड़ देंगे.अगर ऐसा हुआ तो एक अच्छा खिलाड़ी गुमनामी के अंधेरे में खो जाएगा.

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