भोपाल। कबड्डी की तरह दूसरी टीम की बाउंड्री लाईन छू कर भाग आए कमलनाथ की बैक टू कांग्रेस की कहानी में कितने ट्विस्ट हैं. कमलनाथ की बीजेपी की देहरी से ही लौट जाना आत्मा की आवाज पर ही हुआ या नए दरवाजे के भीतर घुसने की ही गुंजाइश नहीं बन पाई. सवाल है कि क्या कमलनाथ कांग्रेसियों के मान मनौव्वल पर या अपने मान की वजह से वापिस लौट आए. बताया जा रहा है कि कमलनाथ ने जो शर्तें बीजेपी आलाकमान के सामने रखी थीं उन पर बीजेपी ने मंजूरी नहीं दी. सिंधिया खेमे की एंट्री के बाद अब बीजेपी ने कमलनाथ की एंट्री के पहले नफा और नुकसान दोनों देखा. इसी के बाद कमलनाथ के लिए बीजेपी में बड़ी हां ना में बदल गई. वहीं हैदराबाद पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ के बीजेपी में शामिल नहीं होने पर अपनी प्रतिक्रिया दी.
कमलनाथ अब बीजेपी में नहीं जाएंगे
कमलनाथ को लेकर फिलहाल ये तस्वीर साफ हो चुकी है कि वो अब बीजेपी में नहीं जाएंगे. ये सवाल अब भी बना हुआ है कि 72 घंटों में कांग्रेस में लौट जाने की वजह क्या थी. जानकारी ये है कि कमलनाथ का बीजेपी के दरवाजे से लौट आने का फैसला मजबूरी में लिया फैसला था. वजह ये थी कि कार्पोरेट के खिलाड़ी कमलनाथ बीजेपी में दाखिले के पहले लंबी चौड़ी नियमावली और शर्तें बनाकर बीजेपी में गए थे. बताया जाता है कि जो नियम शर्तें उन्होंने पार्टी के सामने रखी थी उन्हीं से बात बिगड़ी. कमलनाथ शायद इस भ्रम में थे कि सिंधिया की तरह उन्हें भी मय शर्तों के बीजेपी स्वीकार कर लेगी, लेकिन अपने और अपने बेटे के पुनर्वास के साथ कमलनाथ अपने समर्थकों का भी पार्टी में उचित मान सममान चाहते थे.
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'बीजेपी ने नहीं उठाया जोखिम'
वरिष्ठ रानजीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं "कमलनाथ आए नहीं लौटाए गए हैं सियासी गलियारों में ये हवा बहुत तेज है. असल में 2018 का विधानसभा चुनाव छोड़ दिया जाए तो 22 सीटों का उपचुनाव और 2023 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ वन मैन शो चलाने के बाद भी खुद को साबित नहीं कर पाए. कांग्रेस में उनके लिए वानप्रस्थ के अलावा कुछ नहीं बचा. बीजेपी की मध्यप्रदेश इकाई भी उन्हें लेकर बहुत सहज नहीं थी. बताया जा रहा है कि इसी वजह से पार्टी ने जोखिम नहीं लिया."
कमलनाथ की एंट्री पर क्यों लगा ब्रेक
2020 में सिंधिया समर्थकों की एंट्री के बाद मूल बीजेपी और सिंधिया बीजेपी की जो लकीर खिंची उससे तय था कि कमलनाथ की एंट्री के बाद एक और लकीर खिंच जानी थी. बीजेपी में सिंधिया के आने के बाद ग्वालियर चंबल इलाके में अपनी ही पार्टी में बढ़ती गुटबाजी देख चुकी है,अब कमलनाथ के आने के बाद ये तस्वीर महाकौशल से लेकर बाकी हिस्सों में भी बनती.
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'महाकौशल में बढ़ जाती गुटबाजी'
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं "जिस तरह की हवा थी कि कमलनाथ अपने साथ 22 विधायकों को लेकर जा रहे हैं जाहिर है एमपी के अलग अलग हिस्सों के ये विधायक आगे चलकर बीजेपी की राजनीति में उनके नेताओं के लिए मुश्किल बनते. इस बार पार्टी ने ये जोखिम नहीं लिया क्योंकि फायदा केवल छिंदवाड़ा की एक सीट से ज्यादा दिख नहीं रहा था. ऐसा होने से महाकौशल में गुटबाजी बढ़ जाती. जहां वैसे भी नतीजे बदलने में बीजेपी पहले से जुटी हुई है.